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Since the constellation or nakshatra where moon finds its presence is known as the Janma Nakshatra and as moon influences the mental aspects of the native, nakshatra of the moon thus casts its indelible influence on moon. If one is born under Mars's nakshatra, it is likely to influence the aspects governed by Mars such as marriage and younger siblings.
वैदिक ज्योतिष के अनुसार अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार और लिंग पुरुष है। अश्विनी नक्षत्र आकाश मंडल में सर्वप्रथम नक्षत्र है। यह 3-3 तारों का समूह है, जो आकाश मंडल में जनवरी के प्रारंभ में सूर्यास्त के बाद आकाश में दिखाई देता है।
भरणी अकाश मंडल में स्थित एक नक्षत्र है जिसका आकार त्रिकोण की तरह होता है, इस नक्षत्र का रंग लाल और प्रतीक चिन्ह त्रिकोण ही है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार भरणी नक्षत्र का स्वामी ग्रह शुक्र है। भरणी नक्षत्र आकाश मंडल में दूसरा नक्षत्र है। ‘भरणी‘ का अर्थ ‘धारक‘ होता है। दक्ष प्रजापति की एक पुत्री का नाम भरणी है जिसका विवाह चन्द्रमा से हुआ था।
ज्योतिष के अनुसार कृत्तिका नक्षत्र का स्वामी ग्रह सूर्य है। यह आकाश में अग्निशिखा की तरह दिखाई देता है। यह लौ, छुरे की धार, कुल्हाड़ी, या चाकू की तरह दिखायी देता है। इस नक्षत्र के देवता अग्नि और लिंग स्री है। 27 नक्षत्रों में कृतिका नक्षत्र तीसरे स्थान पर आता है।
रोहिणी नक्षत्र भचक्र के 27 नक्षत्रों में चौथे स्थान पर है। इस नक्षत्र का देवता ब्रह्मा अर्थात प्रजापति को माना गया है, और लिंग स्री है। इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह चन्द्रमा है। यह भचक्र के चमकीले तारों में से एक तारा समूह् है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मृगशिरा नक्षत्र का स्वामी मंगल ग्रह है। यह हिरन के सर की तरह दिखायी देता है। इस नक्षत्र के देवता सोमा और लिंग स्री है। 27 नक्षत्रों में मृगशिरा नक्षत्र पांचवें स्थान पर आता है। मृगशिरा नक्षत्र में तीन तारों से हिरण के सिर के समान आकार बनता है, इसलिए वेदों में इसे मृगशीर्ष कहा जाता है।
भचक्र में 27 नक्षत्रों की श्रृंखला में आर्द्रा नक्षत्र का स्थान छठा है। ज्योतिष के अनुसार आर्द्रा नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु है। यह आँसू की तरह दिखायी देता है।
पुनर्वसु नक्षत्र का अर्थ होता है पुन: शुभ। आकाश मंडल के 27 नक्षत्रों में पुनर्वसु नक्षत्र का स्थान 7वां है। ज्योतिष के अनुसार पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी गुरु ग्रह है और राशि स्वामी बुध है। यह तरकश की तरह दिखायी देता है।
भचक्र में नक्षत्रों की श्रृंखला में पुनर्वसु नक्षत्र का आठवां स्थान है। भचक्र में 93:20 डिग्री से 106:40 डिग्री के विस्तार का क्षेत्र पुष्य नक्षत्र कहलाता है। पुष्य नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता बृहस्पति हैं, राशि स्वामी चंद्रमा, स्वामी ग्रह शनि है। पुष्य नक्षत्र का अर्थ होता है- पोषण करने वाला, ऊर्जा एवं शक्ति देने वाला, कुछ के अनुसार इसे सुंदर पुष्प माना जाता है। पुष्य का एक अन्य प्राचीन नाम तिष्य है
ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों के क्रम में आश्लेषा नक्षत्र का नौवां स्थान है। राशिचक्र में 106:40 डिग्री से 120:00 डिग्री तक का विस्तार आश्लेषा नक्षत्र में आता है। इस नक्षत्र के गण्डमूल को "सर्पमूल" भी कहा जाता है, यह नक्षत्र विषैला होता है। यह कुंडलित साँप की तरह दिखायी देता है।
वैदिक ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में मघा नक्षत्र का दसवां स्थान है, मघा नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है। राशिचक्र में 120:00 डिग्री से 133:20 डिग्री तक का विस्तार मघा नक्षत्र में आता है। मघा नक्षत्र के तारों की संख्या को लेकर मतभेद रहे हैं। कुछ के अनुसार यह छ: सितारों से बनता है।
27 नक्षत्रों की श्रृंखला में पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का ग्यारहवां नक्षत्र होता है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र नक्षत्र राशिचक्र में 133:20 डिग्री से 146.40 डिग्री तक के विस्तार क्षेत्र में आता है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र सिंह राशि में 13 डिग्री 20 कला से 26 डिग्री 40 कला तक होता है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता भग हैं जो सूर्य की माता अदिति के बारह पुत्रों में से एक हैं। सूर्य राशि स्वामी और नक्षत्र स्वामी शुक्र हैं।
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र 27 नक्षत्रों में 12 वें स्थान पर आता है। राशिचक्र में 146.40 डिग्री से 160:00 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में आता है। उत्तराफाल्गुनी में चार तारे होते हैं। यह तारे इस प्रकार से विद्यमान होते हैं जो दिखने में सिरहाने व पायताने से युक्त पलंग का स्वरुप दर्शाते हैं। इन्हें शय्या के समान कहा जाता है।
आकाश मण्डल के 27 नक्षत्रों में हस्त नक्षत्र को 13वां नक्षत्र माना जाता है। यह नक्षत्र चन्द्रमा का नक्षत्र है, इस नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता आदित्य है। हस्त नक्षत्र पांच तारों से बनी हथेली के समान आकृति को दर्शाता है। इस नक्षत्र से बनने वाली आकृति के नाम पर ही इसे हस्त कहा जाता है। हस्त का अर्थ हाथ से है जिसे हम हाथ बांटना, हाथ बढा़ना या हाथ थामना जैसे अनेक अर्थों से जोड़ कर भी देख सकते हैं।
आकाश मण्डल के 27 नक्षत्रों में चित्रा नक्षत्र का 14वां स्थान है। इस नक्षत्र में एक प्रधान तारा होता है जिसकी आकृति मोती या मणि के समान दिखाई पड़ती है। यह चमकता हुआ तारा होता है। इस नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता विश्वकर्मा और लिंग स्री है। इस नक्षत्र के स्वामी ग्रह मंगल हैं, तथा यह नक्षत्र बुध ग्रह की राशि में आता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार स्वाति नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु है। भचक्र के 27 नक्षत्रों की श्रृंखला में स्वाति नक्षत्र का 15वां स्थान है। यह कई तारों का समूह ना होकर केवल एक तारा है। यह आकाश में अपने आकार और फैलाव के कारण अंडाकार मूंगे, मोती या मणी के समान चमकता दिखाई देता है।
विशखा नक्षत्र को नक्षत्र मंडल में सौलहवां स्थान प्राप्त है। इस नक्षत्र का स्वामी बृहस्पति को माना जाता है। विशाखा नक्षत्र तुला राशि में 20 अंश से लेकर वृश्चिक राशि में 3 अंश 20 कला तक रहता है। यह नक्षत्र कुम्हार के चाक की तरह दिखायी देता है।
नक्षत्रों की श्रृंखला में अनुराधा 17 वां मृदु संज्ञक नक्षत्र है अनुराधा नक्षत्र में तीन तारे होते हैं जो छतरी के समान आकृति दर्शाते हैं। ये इस तरह अवस्थित हैं मानो लड़ी में जड़ी चार मणिया हो। कुछ अन्य विचारकों के अनुसर यह चार तारों का समूह होता है
27 नक्षत्रों की श्रृंखला में ज्येष्ठा नक्षत्र का 19 वां स्थान है, मूल नक्षत्र में 11 तारे हैं, जो शेर की पूछ जैसे दिखाई पड़ते हैं। यह जड़ों के बांधे हुए गुच्छे की तरह दिखायी देता है। इस नक्षत्र निर्चर और लिंग स्री है। मूल नक्षत्र गण्डमूल में आते हैं, यह नक्षत्र धनु राशि के सून्य अंशों से 13 अंश 20 कला तक आता है, इसके अधिष्ठाता देवता नृति है। स्वामी ग्रह केतु है, मूल नक्षत्र का अर्थ जड़ से होता है।
27 नक्षत्रों की श्रृंखला में पूर्वाषाढा नक्षत्र 20वां नक्षत्र है। इस नक्षत्र की पहचान करने के लिए आकाश में 2-2 तारे मिलकर एक समकोण बनाते है। पूर्वाषाढा का आकार गज दंत अर्थात हाथी दांत के समान प्रतीत होता है।
उत्तराषाढा़ नक्षत्र इक्कीसवां नक्षत्र है, उत्तराषाढा़ नक्षत्र अप्रैल के महीने में आकाश की उत्तर-दक्षिण दिशा में देखा जाता है। इस नक्षत्र में एक मंच का आकार प्रतीत होता है अर्थात पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढा़ के 4-4 तारे मंजूषा की भांति एक तारे पर लटके हुए दिखाई देते हैं।
आकाश मंडल में श्रवण नक्षत्र बाईसवें स्थान पर आता है। भचक्र में मकर राशि में 10 अंश से 23 अंश 20 कला तक का विस्तार इस नक्षत्र के अधिकार में आता है।
नक्षत्र मंडल में धनिष्ठा नक्षत्र तेईसवें स्थान पर आता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार धनिष्ठानक्षत्र का स्वामी मंगल ग्रह है। यह ढपली की तरह दिखायी देता है। इस नक्षत्र का देवता वसुस और लिंग स्री है। यह नक्षत्र चार तारों से मिलकर बना होता है।
नक्षत्रों की श्रेणी में शतभिषा नक्षत्र 24वें स्थान पर है। यह नक्षत्र शनि की राशि कुम्भ में आता है। और इसका स्वामी ग्रह राहु है। 100 तारों का एक गोलाकार झुंड होता है। कुछ विद्वान इसे एक तारे वाला नक्षत्र मानते हैं तो अन्य आसपास के सौ तारों को मिलाकर इसे शतभिषा अर्थात सौ तारों वाला नक्षत्र मानते हैं।
नक्षत्र मंडल में पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र पच्चीसवां स्थान प्राप्त करता है, इस नक्षत्र का स्वामी बृहस्पति को माना जाता है। आकाश में कुंभ राशि में 20 अंश से मीन राशि में 3 अंश 20 कला तक पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र रहता है। यह नक्षत्र दो तारों वाला होता है, और नक्षत्रमण्डल जुड़वां बच्चों की भांति दिखाई पड़ता है। इस कारण इसे यमल सदृश भी कहा जाता है।
उत्तरा भाद्रपद आकाश मंडल में 26वाँ नक्षत्र है। यह मीन राशि के अंतर्गत आता है। इसे दू, थ, झ नाम से जाना जाता है। राशिचक्र में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की स्थिति मीन राशि में 3 अंश 20 कला से 16 अंश 40 कला तक आती है।
नक्षत्र मण्डल में रेवती नक्षत्र को 27वें नक्षत्र का स्थान प्राप्त है। यह नक्षत्रों में सबसे अंत में आता है, रेवती नक्षत्र 32 तारों के समूह से मिलकर बनता है जो दिखने में एक ढोल या मछली के जोड़े की तरह दिखायी देता है। रेवती मीन राशि में 16 अंश 40 कला से 30 अंश तक के विस्तार क्षेत्र में आता है।
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