अश्लेषा नक्षत्र का फल

ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों के क्रम में आश्लेषा नक्षत्र का नौवां स्थान है। राशिचक्र में 106:40 डिग्री से 120:00 डिग्री तक का विस्तार आश्लेषा नक्षत्र में आता है। इस नक्षत्र के गण्डमूल को "सर्पमूल" भी कहा जाता है, यह नक्षत्र विषैला होता है। यह कुंडलित साँप की तरह दिखायी देता है। इस नक्षत्र के नागास/सरपस और लिंग स्री है। आश्लेषा नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता सर्प हैं। राशि स्वामी चंद्रमा हैं, नक्षत्र स्वामी बुध हैं। इस नक्षत्र का स्वामी बुध होने से इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर बुध व चंद्र का विशेष प्रभाव पड़ता है। नक्षत्रों में यह सबसे भयानक माना जाता है। इसके तारों की संख्या में भी मतभेद है, खंडकातक इसके तारे छह और आकृति चक्र या पहिया मानते है। जबकि वराहमिहिर इसके पांच तारे और आकृति सर्पाकार मानते है। आश्लेषा नक्षत्र पांच तारों का एक समूह है, यह दिखने में चक्र के समान प्रतीत होता है। आश्लेषा नक्षत्र सूर्य के समीप होने के कारण इसे प्रातः के समय देखा जा सकता है।

ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में सबसे खौफनाक और डरावना नक्षत्र है। यह आनंदीशीशा या अनंत अथवा शेषनाग (विष्णु का सर्प या विष्णु शय्या) और वासुकी (शिव का सर्प) नामक दोनों सर्पो का जन्म नक्षत्र है। इसके देवता सर्प है। नाग: अर्थात सांप (विशेषकर काला सांप) एक काल्पनिक नाग पातालवासी दैत्य जिसका मुख मनुष्य जैसा और पूंछ सांप जैसी होती है। सर्प ऊर्जा, रूपान्तरण, परिवर्तन, रचनात्मकता का प्रतीक है। भारत मे सांप को नाग देवता कहते है और श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग की पूजा करते है। दक्षिण भारत में इस नक्षत्र को अयल्यिम कहते है। कलियुग का प्रारम्भ भी इसी नक्षत्र से हुआ है।

विशेषताएँ -

यह एक गुप्त रहश्यमय नक्षत्र है। इस नक्षत्र में जन्मे जातक की आंखे सांप जैसी होती है। जातक शत्रु को परास्त करने वाला होता है, इनमें विश्लेषण शक्ति की प्रबलता होती है। वैदिक ज्योतिष में 9 वा भाव धर्म का होता है और इस नौवे नक्षत्र में जन्मा जातक धर्म विरोधियो को नुकसानप्रद, अपराजितो को पराजित करने वाला होता है। इस नक्षत्र का गण राक्षस है इसी समूह के नक्षत्र मघा और विशाखा जातको का विवाह जन्मांग का अध्ययन कर करना उपयुक्त होता है। इसके अनुकूल अश्विनी, श्रवण, मघा और विशाखा नक्षत्र है। मूल प्रतिकूल नक्षत्र है।

आश्लेषा नक्षत्र के जातक का व्यक्तित्व -

बुध के नक्षत्र और चन्द्रमा की राशि (कर्क) में उत्पन्न जातक शीघ्र ही प्रसन्न हो जाने वाले, चतुर बुद्धि, शीघ्र ही बदल जाने वाले दूसरों की अनुकृति करने वाले कलात्मक अभिरुचियों वाले होते हैं। ये भाग्यशाली व हृष्ट-पुष्ट शरीर के स्वामी हैं और इनकी वाणी में लोगों को मंत्र-मुग्ध करने की ग़ज़ब की शक्ति छुपी हुई होती है। इन्हें बातचीत करना पसंद होता है, किसी भी विषय पर ये घंटों बैठकर चर्चा कर सकते हैं। इनका चेहरा वर्गाकार, मुख-मंडल बहुत सुन्दर और आँखें छोटी होती हैं। इनके चेहरे पर कोई तिल अथवा दाग़-धब्बा हो सकता है। इनकी बुद्धिमानी और पहल करने की क्षमता इनको हमेशा शीर्ष पर पहुँचने की प्रेरणा देती रहती है। अपनी स्वतंत्रता में इनको किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं होता इसलिए इनसे बात करते वक़्त इस बात का ख़ास ख्याल रखा जाना चाहिए कि इनकी किसी भी बात को काटा न जाए। इनमें एक विशेषता यह है कि जिन लोगों से इनकी पक्की मित्रता होती है उनके हित के लिए ये किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। कभी-कभी ये उन व्यक्तियों के लिए कृतज्ञता व्यक्त करना भूल जाते हैं जिन्होंने इनकी किसी-न-किसी रूप में मदद की होती है, ऐसी स्थिति में इनके सम्बन्ध बिगड़ने की भी संभावना है। कभी-कभार इनका क्रोध करना भी लोगों को इनके ख़िलाफ़ कर देता है इसलिए अपने क्रोध पर हमेशा क़ाबू रखना चाहिए। वैसे ये काफ़ी मिलनसार हैं।

ये धनवान, खाने-पिने के शौकीन, हंसमुख, साहित्य एवं संगीत के जानकार एवं भ्रमणप्रिय होते हैं। ये किसी भी संकट का पूर्वानुमान लगाने में कुशल हैं इसलिए ये पहले से ही हर संकट या समस्या का हल खोज कर रखते हैं। आँखें मूंद कर किसी पर विश्वास कर लेना इनकी फ़ितरत नहीं है इसलिए ये अक्सर धोखा खाने से बच जाते हैं। स्वादिष्ट और राजसी भोजन करना इनको पसंद है परन्तु मादक पदार्थों के सेवन से हमेशा बचना चाहिए। इनका मन निरंतर किसी न किसी उधेड़बुन में लगा रहता है और ये रहस्यमय ढंग से कार्य करना पसंद करते हैं। अपने शब्दों के जादू से लोगों को वश में करने में आप माहिर हैं इसलिए ये राजनीति के क्षेत्र में विशेष सफल हो सकते हैं। वैसे भी आपमें नेतृत्व तथा शिखर पर पहुँचने के पैदायसी गुण छुपे हुए हैं। शारीरिक मेहनत की बजाय आप दिमाग़़ से ज़्यादा कार्य करने वाले होते हैं। लोगों से घनिष्ठता ये तब तक बनाये रखेंगे जब तक इनको लाभ मिलता रहेगा। किसी भी व्यक्ति को परखकर अपना काम निकालने में आप माहिर हैं और एक बार जो निश्चय कर लेंगे तो उस पर अटल रहेंगे। भाषण कला में भी ये प्रवीण हैं, जब आप बोलना शुरू करते हैं तो अपनी बात पूरी करके ही शब्दों को विराम देते हैं। 33वें वर्ष की आयु में इनका भाग्योदय होता है।

कार्य-व्यवसाय -

आश्लेषा नक्षत्र का स्वामी ग्रह बुध है और बुध को ज्ञान व बुद्धि का कारक माना गया है। वाणिक प्रवृति का विचार भी इसी ग्रह से किया जाता है जिसके फलतः इस नक्षत्र में जन्मे जातक सफल व्यापारी, चतुर अधिवक्ता, भाषण कला में निपुण होते हैं। आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक योग्य व्यवसायी होते हैं। इन्हें नौकरी की अपेक्षा व्यापार करना ज्यादा भाता है और इस कारण यदि यह जातक नौकरी करता भी है। उसमें ज्यादा समय तक टिक नही पाता और यदि नौकरी करते भी हैं तो साथ ही साथ किसी व्यवसाय से भी जुड़े रहते हैं। ये अच्छे लेखक हैं। अगर ये अभिनय के क्षेत्र में जाते हैं तो सफल अभिनेता बन सकते हैं। और नौकरी की बजाय व्यवसाय में अधिक सफल हो सकते हैं। भौतिक दृष्टि से ये काफ़ी समृद्ध होंगें तथा धन-दौलत से परिपूर्ण होंगे।

इस नक्षत्र में जन्मा जातक अच्छा एवं गुणी लेखक भी होता है। अपने चातुर्य के कारण यह श्रेष्ठ वक्ता भी होता है। भाषण कला में प्रवीण अपने इस गुण के कारण यह दूसरों पर अपनी छाप छोड़ते हैं और लोग इनसे जल्द ही प्रभावित होते हैं। इन्हें अपनी प्रशंसा सुनने की भी बड़ी चाहत रहती है। यह धन दौलत से परिपूर्ण होते हैं तथा इनका जीवन वैभव से युक्त होता है इनमें अच्छी निर्णय क्षमता पायी जाती है जो इन्हें सफलता तक पहुँचाती है। ये विक्रीकर्ता, सेल्समैन, अकाऊंट्स, बैंकिग, लेखक आदि होते हैं। आप रबड़ प्लास्टिक के कार्य करने वाले, कीटनाशक और विष सम्बन्धी व्यवसाय, पेट्रोलियम उद्योग, रसायन शास्त्र, सिगरेट व तम्बाकू सम्बन्धी व्यवसाय, योग प्रशिक्षक, मनोविज्ञान, साहित्य, कला व पर्यटन से जुड़े कार्य, पत्रकारिता, लेखन, टाइपिंग, वस्त्र निर्माण, नर्सिंग, स्टेशनरी के सामान उत्पादन और बिक्री करके सफल होने की अधिक संभावना होती है। ये ज्योतिष, गणितज्ञ, चिकित्सक, अध्यापन, कॉमर्स, कम्प्यूटर इंजीनियरिंग आदि के कार्यों से सम्बन्ध रखते हैं।

पारिवारिक जीवन-

इनका कोई साथ दे या न दे, परन्तु भाइयों से पूरा सहयोग मिलेगा। ये परिवार में सबसे बड़े हो सकते हैं और परिवार में बड़ा होने के कारण परिवार की सारी ज़िम्मेदारी आप पर होने की संभावना है। जीवनसाथी की कमियों को अनदेखा करना ही उचित है अन्यथा वैचारिक मतभेद रह सकते हैं। इनका स्वभाव और व्यवहार सभी का मन मोह लेने वाला होता है। अगर इस नक्षत्र के अंतिम चरण में इनका जन्म हुआ है तो ये बहुत भाग्यशाली होते हैं। गृह प्रबंध को अच्छे से जानते हैं, इनको ससुराल पक्ष की ओर से इन्हें अधिक सावधान रहने की आवश्यकता होती है। क्योंकि इस ओर से संबंध छोटी से छोटी बात के चलते खराब हो सकते हैं।

स्वास्थ्य -

अश्लेषा नौवां नक्षत्र है और इसका स्वामी बुध है। इस नक्षत्र के अन्तर्गत फेफड़े, इसोफेगेस, जिगर, पेट का मध्य भाग, पेनक्रियाज आता है। इसके साथ ही जोड़ों में दर्द की शिकायत, हिस्टीरिया, जलोदर, पीलिया एवं अपच जैसी स्वास्थ्य संबंधी बीमारियाँ परेशान कर सकती हैं। अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से जुड़ी परेशानियाँ व्यक्ति को परेशान करती हैं। जातक को मानसिक आघात भी लगने का डर रहता है। अस्थि संधि, कोहनी, घुटना, नाखून व कान का संबंध आश्लेषा नक्षत्र से होता है। अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से जुड़ी परेशानियाँ व्यक्ति को होती हैं। इस नक्षत्र जन्मे जातक पेट से जुड़ी समस्याओं जातक हमेसा परेशान रहता है।

आश्लेषा नक्षत्र वैदिक मंत्र -

'ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:'

'ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम:'

”ॐ सर्पेभ्यो नम:”

उपाय -

अश्लेषा नक्षत्र के बुरे प्रभावों से बचने के लिए सर्प को दूध पिलाना चाहिए एवं सर्प पूजन करना चाहिए।

भगवान शिव का पूजन एवं भगवान विष्णू का पूजन करना भी शुभदायक होता है।

"ॐ नम: शिवाय" मंत्र का जाप अथवा आश्लेषा के बीज मंत्र "ॐ गं" का जाप करना भी उत्तम होता है।

आश्लेषा नक्षत्र जातक के लिए श्वेत वस्त्र, हल्का नीला, पीला व नारंगी रंग धारण करना लाभदायक होता है।

इन्हें नित्य गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए।

सात रत्ती का पन्ना सोने की अंगुठी में जड़वाकर बुधवार के दिन प्रात: काल बुध की होरा में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए।

आश्लेषा नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति गण्डमूल से प्रभावित होते हैं, इसलिए जिनका जन्म इस नक्षत्र में होता है उन्हें गण्डमूल नक्षत्र की शांति के लिए पूजा करवानी चाहिए।

आश्लेषा नक्षत्र अन्य तथ्य -

  • नक्षत्र - आश्लेषा
  • राशि - कर्क
  • वश्य - जलचर
  • योनी - मार्जार
  • महावैर - मूषक
  • राशि स्वामी - चंद्र
  • गण - राक्षस
  • नाडी़ - अन्त्य
  • तत्व - जल
  • स्वभाव(संज्ञा) - तीक्ष्ण
  • नक्षत्र देवता - सर्प
  • पंचशला वेध -धनिष्ठा

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