पुष्य नक्षत्र का फल

भचक्र में नक्षत्रों की श्रृंखला में पुनर्वसु नक्षत्र का आठवां स्थान है। भचक्र में 93:20 डिग्री से 106:40 डिग्री के विस्तार का क्षेत्र पुष्य नक्षत्र कहलाता है। पुष्य नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता बृहस्पति हैं, राशि स्वामी चंद्रमा, स्वामी ग्रह शनि है। पुष्य नक्षत्र का अर्थ होता है- पोषण करने वाला, ऊर्जा एवं शक्ति देने वाला, कुछ के अनुसार इसे सुंदर पुष्प माना जाता है। पुष्य का एक अन्य प्राचीन नाम तिष्य है जो शुभ एवं सुख संपदा देने वाला होता है। इस नक्षत्र को महानक्षत्र और अत्यंत शुभ नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति (गुरु - बृहस्पति) और लिंग पुरुष है। यह चक्र या पहिया की तरह दिखायी देता है। तीन तारों वाला यह नक्षत्र एक सीध में स्थित तारों से बाण का आकार प्रदर्शित करता है। कुछ विद्वान तीन तारों में चक्र की गोलाई को देखते हैं। वे चक्र को प्रगति का चक्का मानते हैं। तो कुछ प्राचीन विद्वान इसे गाय का थन मानते हैं उनके अनुसार गाय का दूध अमृत रूप है जो पृथ्वी के लोगों का भरण पोषण करता है।

पवित्र है पुष्य नक्षत्र -

सत्ताइस नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र को सबसे अच्छा माना जाता है। सभी नए सामान की खरीदारी, सोना, चांदी की खरीदारी के लिए पुष्य नक्षत्र को सबसे पवित्र माना जाता है। ऐसा क्यों हैं? चंद्रमा धन का देवता है, चंद्र कर्क राशि में स्वराशिगत माना जाता हैं। बारह राशियों में एकमात्र कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा है और पुष्य नक्षत्र के सभी चरणों के दौरान ही चंद्रमा कर्क राशि में स्थित होता है। इसके अलावा चंद्रमा अन्य किसी राशि का स्वामी नहीं है। इसलिए पुष्य नक्षत्र को धन के लिए अत्यन्त पवित्र माना जाता है। पुष्य नक्षत्र में किए गए कार्यों का उत्तम फल प्राप्त होता है। यदि आप कोई वस्तु खरीदना चाहते हैं और फलदायी बनाना चाहते हैं तो उसे गुरुवार को खरीद लीजिए। गुरुवार को पुष्य नक्षत्र का योग हो तो गुरु-पुष्य योग कहा जाता है। हिन्दू धर्म में व्रत, पर्व और त्योहार हैं और सबका अपना महत्व है। इन सभी पर्वों में मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। वैसे तो हर किसी शुभ कार्य के लिए अलग-अलग मुहूर्त होते हैं, लेकिन कुछ मुहूर्त हर कार्य के लिए विशेष होते हैं। इन्हीं में एक है, पुष्य नक्षत्र जिसे खरीदारी से लेकर अन्य शुभ कार्यों तक महामुहूर्त का स्थान प्राप्त है।

पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति देव माने गए हैं और शनि को इस नक्षत्र का दिशा प्रतिनिधि‍ माना जाता है। चूंकि बृहस्पति शुभता, बुद्धि‍मत्ता और ज्ञान का प्रतीक हैं, तथा शनि स्थायि‍त्व का, इसलिए इन दोनों का योग मिलकर पुष्य नक्षत्र को शुभ और चिर स्थायी बना देता है। पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों का राजा भी कहा जाता है। ऋगवेद में पुष्य नक्षत्र को मंगलकर्ता भी कहा गया है। इसके अलावा यह समृद्धिदायक, शुभ फल प्रदान करने वाला नक्षत्र माना गया है। पुष्य नक्षत्र को खरीदारी के लिए विशेष मुहूर्त माना जाता है, क्योंकि यह नक्षत्र स्थायी माना जाता है और इस मुहूर्त में खरीदी गई कोई भी वस्तु अधिक समय तक उपयोगी और अक्षय होती है। इसके अलावा इस मुहूर्त में खरीदी गई वस्तु हमेशा शुभ फल प्रदान करती है। पुष्य नक्षत्र में खास तौर से स्वर्ण की खरीदी का महत्व होता है। लोग इस दिन स्वर्ण की खरीदी भी इसलिए करते हैं, क्योंकि इसे शुद्ध, पवित्र और अक्षय धातु के रूप में माना जाता है और पुष्य नक्षत्र पर इसकी खरीदी अत्यधिक शुभ होती है। इस दिन खास तौर पर इलेक्ट्रानिक्स गुड्स, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, कम्प्यूटर, लैपटाप, स्कूटर, बाइक, कार, भूमि, भवन, बर्तन, सोना, चांदी आदि की खरीरदारी का विशेष महत्व है।

पुष्य नक्षत्र के जातक का व्यक्तित्व-

पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातक का शरीर पुष्ट व सुडौल होता है। इनका चेहरा गोलाकार एवं कांति से युक्त होता है। 'शान्तात्मा सुभगः पण्डितो धनी धर्मसंयुतः पुष्ये' ये शांतस्वभाव, धनी, धार्मिक, दयालु, ममतापूर्ण और उदार प्रवृत्ति के होते हैं। इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति माने गए हैं जिसके फलस्वरूप इनका व्यक्तित्व गंभीर, आस्थावान, सत्यनिष्ठ, सदाचारी और देवता सरीखा प्रतापी है। इनकी देह मांसल अच्छी होती है और शरीर कुछ भरा हो सकता है। साथ ही चेहरा गोलाकार व चमकदार होता है। अभिमान तो आपमें लेशमात्र भी नहीं है। जीवन में सुख, शान्ति व आनंद प्राप्त करना आपका परम लक्ष्य है। आप कर्तव्यनिष्ठ, विश्वसनीय, मिलनसार व बुरे समय में लोगों का साथ देने वाले हैं। स्वादिष्ट भोजन के आप रसिया हैं और लौकिक सुख में आसक्त रहते हैं। प्रशंसा इनको फुला देती है जबकि आलोचना असहाय जान पड़ती है, इसलिए मीठा बोलकर ही इनसे अच्छा कार्य करवाया जा सकता है। सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं को जुटाना इनको अच्छा लगता है। दृढ़निश्चयी और आस्थावान होना भी आपके व्यक्तित्व में शामिल है। अपने इन्हीं गुणों के कारण यदि आप लोकप्रिय और सभी से स्नेह व सम्मान प्राप्त करने वाले हों तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी।

आपका स्वभाव धार्मिक है और दान-पुण्य करने तथा धार्मिक यात्राएँ करने से भी आप पीछे नहीं रहेंगे। योग शास्त्र , तंत्र-मंत्र, ज्योतिष आदि शास्त्रों में भी आपकी गहन रुचि रहेगी। माता व माता समान स्त्रियों का आप विशेष आदर करेंगे। आपकी कार्यशैली रचनात्मक है और जन्मजात प्रतिभा भी आपमें है। यदि आपको कोई काम सौंपा जाए तो यह निश्चित होकर कहा कहा जा सकता है कि वह कार्य अवश्य संपूर्ण होगा, क्योंकि आप हर काम को निहायत ही ईमानदारी और संपूर्ण कुशलता से करने का प्रयत्न करते हैं। काम के सिलसले में कभी-कभी आपको अपनी पत्नी व बच्चों से दूर जीवन बिताना भी पड़ सकता है, तथापि इससे परिवार के प्रति आपके लगाव में कोई कमी नहीं आती है। धन-वैभव प्राप्त करने के लिए आप निरंतर प्रयत्नशील रहेंगे। आपका स्वभाव शांतिप्रिय, सज्जनता से भरा हुआ और समर्पण की भावना से युक्त होगा। आप अक्सर सबके दबाव और दुर्व्यवहार का शिकार भी हो सकते हैं। आप ईश्वरभक्त और सबकी सहायता करने वाले हैं तथा अपने मन की बात मुश्किल से व्यक्त कर पाते हैं। वैवाहिक जीवन में भी आप जीवनसाथी तक से अपने मन की बात कहने में हिचकते हैं जिसके फलस्वरूप आपको कभी-कभार ग़लत समझ लिया जाता है और इसी कारण आप आत्म-पीड़ा के भी शिकार हो जाते हैं।

कार्य- व्यवसाय -

पुष्य नक्षत्र के जातक के लिए धर्म गुरु, राज्याध्यक्ष, सांसद, विधायक, राजनीतिज्ञ से संबंधित कार्य कर सकते हैं। धर्म व दान संस्थाओं से जुड़े हो सकते हैं भूमि व भवनों से आमदनी हो सकती है। निजी सचिव रुप में भी कार्य कर सकते हैं। अध्यापन के कार्य शिक्षण संस्थाओं में काम कर सकते हैं। आप थियेटर, कला और वाणिज्य व्यवसाय के क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। इसके साथ ही डेयरी से जुड़े कार्य, कृषि, बाग़वानी, पशुपालन, खाने-पीने की सामग्री के निर्माण व वितरण, सांसद, विधायक, परामर्शदाता, मनोचिकित्सक, धर्म व दान संस्था से जुड़े स्वयंसेवक के रूप में, अध्यापक, प्रशिक्षक, बच्चों की देखभाल के कार्य, प्ले स्कूल में कार्य, भवन निर्माण तथा आवास बस्ती से जुड़े कार्य, धार्मिक व सामाजिक उत्सवों के आयोजनकर्ता, शेयर बाज़ार, वित्त विभाग, जल प्रधान कार्य, सेवा से जुड़े काम, माल ढोने जैसे श्रमप्रधान कार्य करके जीवनयापन कर सकते हैं।

पारिवारिक जीवन-

पारिवारिक जीवन में इनको बहुत से उतार-चढा़वों का सामना करना पड़ता है। ये अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ रहना चाहेंगे, मगर नौकरी या व्यवसाय के चलते अपना अधिकतर समय अपने परिवार से दूर बिताएंगे। इसी वजह से इनका पारिवारिक जीवन कुछ समस्याग्रस्त रह सकता है, परन्तु आपका जीवनसाथी इनके प्रति समर्पित रहेगा और इनकी अनुपस्थिति में वह परिवार का ध्यान अच्छी प्रकार से रखेगा। 33 वर्ष की आयु तक इनके जीवन में कुछ संघर्ष होने की संभावना है, परन्तु 33 वर्ष की अवस्था से इनकी चतुर्मुखी प्रगति होगी।

स्वास्थ्य -

पुष्य नक्षत्र के अंतर्गत फेफ़ड़े, पेट तथा पसलियाँ आती हैं। अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इससे संबंधित शरीर के अंग में पीड़ा पहुंचती है। मुख और चेहरा पुष्य का अंग होता है। चेहरे के भावों का पुष्य से संबंध होता है। गैस्ट्रिक परेशानी अल्सर, पीलिया एग्जिमा, खांसी और कैंसर जैसे रोग प्रभाव डाल सकते हैं। वहीं श्वास से संबंधित दिक्कतें भी हो सकती हैं, त्वचा संबंधित कोई समस्या परेशान कर सकती है। जातक को सर्दी जुकाम भी अधिक जल्दी प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए स्वयं को मजबूत बनाए रखने का हर संभव प्रयास करें और आवश्यकता अनुसार योग और ध्यान करते रहें।

पुष्य नक्षत्र वैदिक मंत्र -

ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु ।

यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम ।। ‘‘ॐ बृहस्पतये नम:’’ उपाय -

पुष्य नक्षत्र के बुरे प्रभावों से बचने के लिए गाय की सेवा करें, गौशाला में चारा दान करें।

गुरु अथवा पंडित व ब्राह्मण को सामर्थ्य अनुरुप भेंट दीजिए।

माँ दुर्गा की उपासना करें, और दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

बृहस्पति के बीज मंत्र का जाप करें।

सफेद, पीले, नारंगी रंग के वस्त्रों को धारण करना अनुकूल होगा।

चंद्रमा के पुष्य नक्षत्र में गोचर करने पर दान एवं जाप करना शुभदायक माना जाता है।

अन्य तथ्य -

  • नक्षत्र - पुष्य
  • राशि - कर्क
  • वश्य - जलचर
  • योनी - मेढा़
  • महावैर - वानर
  • राशि स्वामी - चंद्र
  • गण - देव
  • नाडी़ - मध्य
  • तत्व - जल
  • स्वभाव(संज्ञा) - क्षिप्र
  • नक्षत्र देवता - गुरु
  • पंचशला वेध - ज्येष्ठा

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