ग्रहों का गोचर (Planetary Transit)

ग्रहों का गोचर (Planetary Transit)

ज्योतिष विज्ञान में ग्रह गोचर शब्द अक्सर सुनने को मिलता है। इसका मूल अर्थ है नक्षत्र में ग्रहों का गमन। ग्रह-गोचर की मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका है और ज्योतिष भविष्यवाणियों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। इस पृष्ठ पर, हम बताएंगे कि ग्रह गोचर क्या है। ग्रहों के गोचर की क्या अहमियत है, ग्रह गोचर कब होते हैं? नियमित ग्रह गोचर के बारे में किस प्रकार जानें और आज के लिए इसके बारे में जानकर किस प्रकार लाभान्वित हुआ जा सकता है। आइये ज्योतिष के नियमित ग्रह गोचर के विषय में हम एक-एक करके समझते हैं।

ग्रहों के गोचर का महत्व -

ज्योतिष में गोचर का अर्थ होता है गमन यानी चलना, गो अर्थात तारा जिसे आप नक्षत्र या ग्रह के रूप में समझ सकते हैं और चर का मतलब होता है चलना, इस तरह गोचर का सम्पूर्ण अर्थ निकलता है ग्रहों का चलना। ज्योतिष की दृष्टि में सूर्य से लेकर राहु केतु तक सभी ग्रहों की अपनी गति है। अपनी-अपनी गति के अनुसार ही सभी ग्रह राशिचक्र में गमन करने में अलग-अलग समय लेते हैं। नवग्रहों में चन्द्र का गोचर सबसे कम अवधि का होता है क्योंकि इसकी गति तेज है। जबकि, शनि की गति मंद होने के कारण शनि का गोचर सबसे अधिक समय का होता है।

ब्रह्माण्ड में स्थित सभी ग्रह अपनी-अपनी धुरी पर अपनी गति से निरंतर भ्रमण करते रहते हैं, सभी नौ ग्रह सदा सर्वदा गतिमान रहते हैं, या दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सभी ग्रह गोचर कर रहे हैं। ग्रहों की इस गति को नियमित ग्रह गोचर या "गोचर" कहा जाता है। इस भ्रमण के दौरान वे एक राशि से दूसरी राशि में और एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र में प्रवेश करते हैं। ग्रहों के इस प्रकार राशि परिवर्तन करने के उपरान्त दूसरी राशि में उनकी स्थिति को ही गोचर कहा जाता है। प्रत्येक ग्रह का जातक की जन्मराशि गोचर भावानुसार शुभ-अशुभ फल देता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रह के एक विशिष्ट गोचर का अर्थ है उस ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि और एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र में गमन। जब यह किसी नक्षत्र या राशि से संबंधित होता है तो यह लाभकारी या हानिकारक प्रभाव देता है। यदि यह प्रभाव लाभकारी हो तो यह किसी व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। इसके विपरीत, हानिकारक प्रभाव दुष्परिणाम लाता है।

ज्योतिष विज्ञान में जो कुंडली होती है, असल में वह हमारा आकाश-मंडल होता है और उस आकाश-मंडल को 12 भागों में बांटा गया है। आपने कुंडली में देखा होगा कि कुंडली में 12 भावों में 12 नंबर लिखे होते हैं। यह नंबर राशिओं के नंबर होते हैं और इससे हमें पता चलता है कि कुंडली के किस भाव में कौन सी राशि विराजमान है।

इस आकाश-मंडल में सभी ग्रह अपनी कक्षा में 360° अंश में भ्रमण करते हैं और इस आकाश-मंडल को 12 राशियों में बांटा गया है तो प्रत्येक राशि में ग्रह 360°/12=30° अंश तक चलता है। सभी ग्रह आकाश मंडल में 360°अंश का अपना एक चक्कर अलग-अलग समय में पूरा करते हैं। जैसा आपने ऊपर पढ़ा कि इस आकाश मंडल के 360° डिग्री के चक्कर को 12 राशियों में बांटा गया है और इस तरह से सभी ग्रह एक राशि में 30° अंश(Degree) तक चलते हैं और फिर अगली राशि में 0° डिग्री से 30° डिग्री तक चलते हैं और सभी ग्रह कुंडली या आकाश-मंडल में अपना एक चक्कर 360° का लगाते हैं।

गोचर से फल ज्ञात करना-

वैदिक ज्योतिष में नौ ग्रहों की गणना की गई है। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि के साथ-साथ दो छाया ग्रह राहु और केतु, इनमे से इन ग्रहों में गुरु, शुक्र, बुध और चन्द्रमा शुभ ग्रह, सूर्य-मंगल क्रूर ग्रह तथा शनि, राहु व केतु पाप ग्रह माने जाते हैं। ग्रह विभिन्न राशियों में भ्रमण करते हैं। ग्रहों के भ्रमण का जो प्रभाव राशियों पर पड़ता है उसे गोचर का फल या गोचर फल कहते हैं। गोचर फल ज्ञात करने के लिए एक सामान्य नियम यह है कि जिस राशि में जन्म के समय चन्द्रमा हो यानी आपकी अपनी जन्म राशि को पहला घर मान लेना चाहिए, उसके बाद क्रमानुसार राशियों को बैठाकर कुण्डली तैयार कर लेनी चाहिए। इस कुण्डली में जिस दिन का फल देखना हो उस दिन ग्रह जिस राशि में हों उस अनुरूप ग्रहों को बैठा देना चाहिए। इसके पश्चात ग्रहों की दृष्टि एवं युति के आधार पर उस दिन का गोचर फल ज्ञात किया जा सकता है।

दूसरी ओर, ग्रहों का गोचर-बुध और चंद्रमा- किसी व्यक्ति के जीवन में तीव्र परिवर्तन लाते हैं। एक जातक की जन्म कुंडली में ग्रहों के गोचर और उनके प्रभावों का सदा गहन अध्ययन किया जाता है।

ग्रह गोचर कब होता है?

यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। किसी व्यक्ति की कुंडली उसके जन्म के समय गोचर ग्रहों की राशि के अनुसार स्थिति को दर्शाती है। इसलिए जन्म कुंडली उस व्यक्ति के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाती है क्योंकि जन्म कुंडली का प्रत्येक भाव एक विशिष्ट क्षेत्र या जीवन के पहलू से संबंधित होता है। कुंडली में सभी ज्योतिषीय संकेत संभावनाएं दर्शाती हैं, कुछ प्रबल और कुछ कमज़ोर। किसी व्यक्ति के जन्म से ही, ग्रहों की अवधि या दशा एक के बाद एक संचालित होती हैं। हमारे जीवन में होने वाली सभी मुख्य घटनाएं इन ग्रहों के चाल के ऊपर ही निर्भर करती हैं। ग्रहों की यह चाल हमारे जीवन में कुछ बड़े तो कभी कुछ छोटे बदलाव लेकर आने वाली साबित होती है। इसके अलावा यह सभी ग्रह हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करने की भी क्षमता रखते हैं।

कुंडली में सभी ग्रह एक राशि से दूसरी राशि तक के सफर को अलग-अलग समय में पूरा करते हैं। कुंडली में चंद्र सबसे तेज़ गति से चलने वाला ग्रह होता है। यह एक राशि से दूसरी राशि अर्थात 30° डिग्री का सफर सवा दो दिन में पूरा कर लेता है। वहीं शनि सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह कुंडली में एक राशि से दूसरी राशि अर्थात 30°अंश(Degree) का सफर 2.5 वर्ष(30 माह) में पूरा करता है। जब किसी राशि में शनि प्रवेश करता है तो 2.5 वर्ष तक वहां रहता है, तब कहा जाता है कि इस राशि वाले के ऊपर शनि का ढैया शुरू हो चुका है। हम आपको नीचे बताते हैं कि सभी ग्रह गोचर में एक राशि से दूसरी राशि तक पहुँचने में कितना समय लगाते हैं।

ग्रहों का गोचर और भविष्यवाणियां-

ज्योतिष की दुनिया में गोचर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि सभी नवग्रह हमारे आपके जीवन को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, और केतु ऐसे प्रमुख ग्रह हैं जिन्हें ज्योतिष की दुनिया में काफी गंभीरता से लिया जाता है। ऐसे में यह बात तो साफ है कि इन ग्रहों के गोचर या राशि परिवर्तन से देश, दुनियां और हमारे जीवन पर प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। ग्रहों का गोचर भविष्यवाणियों को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं। प्रत्येक ग्रह जब एक राशि में गोचर करता है तो उसके व्यवहार में परिवर्तन आता है और इस प्रकार प्रत्येक ग्रह गोचर भविष्यवाणियों को प्रभावित करता है।

आज का गोचर क्या है?

वैदिक ज्योतिष की बुनियाद ग्रहों पर टिकी हुई है और बिना ग्रह व नक्षत्र के ज्योतिष विद्या की कल्पना नहीं की जा सकती है। आपने अक्सर जन्म कुंडली में 12 भागों में बंटी एक तालिका देखी होगी। दरअसल ये तालिका कुंडली के 12 भावों में बैठे ग्रहों की स्थिति को दर्शाती है। इससे पता चलता है कि कौन सा ग्रह किस भाव में बैठा है और वह कैसा फल देगा। चूंकि ग्रहों की चाल में निरंतर परिवर्तन होते हैं और इसी आधार पर राशिफल या भविष्यफल की गणना की जाती है।

आज का गोचर जानना क्यों है जरूरी?

ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों का बड़ा महत्व है। इन्हीं ग्रहों की दशा व दिशा के आधार पर किसी भी व्यक्ति के आने वाले कल का अनुमान लगाया जा सकता है। आज होने वाली ग्रहों की गोचरीय स्थिति की जानकारी मिलने से आप विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली हलचलों का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। मान लीजिये आप अगर यह जानना चाहते हैं कि नौकरी के लिहाज से आज का दिन मेरे लिए कैसा रहेगा, तो आप शनि की गोचरीय स्थिति से इसका अंदाजा लगा सकते हैं। क्योंकि वैदिक ज्योतिष में शनि को सेवा और कर्म का कारक कहा गया है और यह नौकरी में होने वाले परिवर्तन को दर्शाता है। ठीक इसी प्रकार दूसरे ग्रह भी जिन-जिन विषयों के कारक हैं, उनके कारकत्व को समझते हुए उनसे सम्बंधित क्षेत्रों को जान सकते हैं।

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