शनि का गोचर
नवग्रहों में शनि के गोचर की अवधि सबसे अधिक होती है। क्योंकि यह ग्रह लगभग ढाई वर्ष में राशि परिवर्तन करता है इसलिए शनि के गोचर का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इन 30 महीनों की अवधि में शनि एक राशि में स्थित रहता है। इस दौरान वह वक्री गति भी करता है और पुनः मार्गी हो जाता है। शनि की वक्री अवस्था को सामान्यतः शुभ नहीं माना जाता है। क्योंकि इस समय में शनि अधिक संघर्ष करवाता है और इसके परिणामस्वरुप सफलता मिलने में देरी होती है। चलिए शनि गोचर को विस्तार में समझाते हैं और जानते हैं कि इस ग्रह के गोचर से आपकी राशि पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
शनि गोचर का क्या अर्थ होता है?
जब भचक्र में शनि एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे शनि गोचर कहते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि गोचर लगभग 2.5 साल तक एक राशि में होता है। यही कारण है कि शनि गोचर किसी भी व्यक्ति के जीवन काल में सबसे ज्यादा अवधि के लिए होता है।
कितने समय तक रहता है, शनि का गोचर?
शनि का एक राशि में गोचर लग-भग 2.5 वर्ष तक रहता है। इस अवधि के बाद शनि दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इससे आप यह समझ सकते हैं कि अगले दो वर्ष तक शनि किसी एक राशि में रहेंगे और आप इसके प्रभाव से दूर रहेंगे। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि का गोचर हर व्यक्ति के जीवन में बेहद महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह किसी भी एक व्यक्ति को लगभग 2.5 वर्ष तक प्रभावित करता है।
शनि गोचर का प्रभाव कब तक रहता है?
वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बड़ा महत्व है। भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में शनि को पापी ग्रह कहा गया है, इसलिए शनि की साढ़े साती, ढैया और पनौती का नाम सुनकर ही लोग कांपने लगते हैं। हालांकि सही मायनों में शनि का स्वभाव ऐसा नहीं है। शनि देव न्यायप्रिय हैं इसलिए उन्हें कलियुग का न्यायाधीश कहा जाता है। वे हर मनुष्य को उसके कर्मों के आधार पर फल देते हैं। बुरे कर्म करने वालों को शनि देव दंडित करते हैं, वहीं अच्छे कर्म करने वाले लोगों को शुभ फल देते हैं। ज्योतिष में शनि को कर्म और सेवा का कारक कहा जाता है, अतः नौकरी और व्यवसाय पर इसका गहरा प्रभाव होता है। शनि के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को लगातार सफलता और समृद्धि मिलती है, लेकिन वहीं कुंडली में शनि की कमजोर स्थिति से नौकरी में बाधा, लगातार संघर्ष, सफलता मिलने में देरी, नौकरी छूट जाने और तबादले का भय आदि बातों का डर बना रहता है। शनि का गोचर एक ऐसा गोचर है जो एक कहावत को सिद्ध करता है, “राजा को रंक बना देना”। जब यह अनुकूल राशि में गोचर करते हैं तो जबरदस्त दबाव और अवसाद से जूझ रहे लोगों को अच्छे परिणाम भी देते हैं। और जब यह प्रतिकूल स्थिति में हो तो इसका परिणाम जातक को घाटे से भुगतना पड़ सकता है।
चंद्र राशियों पर शनि के गोचर का प्रभाव -
शनि देव को मकर और कुंभ राशि का स्वामित्व प्राप्त है। तुला राशि में यह उच्च भाव में होता है और मेष राशि में शनि नीच का माना जाता है। गोचर का शनि तृतीय, षष्टम और एकादश भाव में शुभ फल देता है। वहीं प्रथम, द्वितीय, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम, दशम और द्वादश भाव में यह अशुभ फल प्रदान करता है। शनि जब अगली राशि में गोचर करते हैं तो वहां पर वह अलग प्रभाव डालते हैं। ज्योतिष के अनुसार, शनि गोचर सबसे धीमा और सबसे महत्वपूर्ण गोचर होता है जो किसी भी व्यक्ति को सबसे ज्यादा अवधि 2.5 वर्ष तक प्रभावित करता है। इस विषय में आप किसी योग्य ज्योतिषी से सलाह ले सकते हैं और जान सकते हैं कि इस ग्रह के गोचर के दौरान आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। आइये जानते हैं सभी 12 भावों में शनि के गोचर का फल-