ज्योतिषीय विश्लेषण: किन गुणों और ग्रहों के प्रभाव से गांधी बने राष्ट्रपिता | Future Point

ज्योतिषीय विश्लेषण: किन गुणों और ग्रहों के प्रभाव से गांधी बने राष्ट्रपिता

By: Future Point | 30-Jan-2020
Views : 4703ज्योतिषीय विश्लेषण: किन गुणों और ग्रहों के प्रभाव से गांधी बने राष्ट्रपिता

किसी के आचार और व्यवहार ही उसे महान बनाते हैं। गांधी अपने सत्य व अहिंसा के सिद्धांत और सादगी भरे जीवन के लिए सारी दुनिया में जाने जाते हैं। भौतिकता से परे वे आत्मिक सुख में यकीन करते थे। उनका मानना था कि इनसान जितनी कम सुविधाओं में जीवन जीता है उतना ही अधिक मज़बूत बनता है। बेहद साधारण से दिखने वाले गांधी किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लिया करते थे। सादगी, कोमलता और विनम्रता को वे मनुष्य का गहना मानते थे। वे मानते थे कि “विनम्रता से सारी दुनिया को हिलाया जा सकता है।” उन्होंने ऐसा किया भी। बिना हथियारों के सत्य और अहिंसा के बल पर उन्होंने भारत को आज़ादी दिलाई।

वे एक ऐसी शख़्सियत थे जिन पर हर कोई मोहित हो जाया करता था। अंग्रेज़ भी गांधी की शख़्सियत के कायल थे। कहा जाता है कि एक दफ़ा ब्रिटिश अफ़सरों से मिलने गांधी लंदन गए थे। वहां सभी ब्रिटिश अधिकारियों को हिदायत दी गई कि कोई भी अधिकारी इस शख़्स से अकेले में न मिले, वरना यह उसको मोहित कर लेगा! उन दिनों अमेरिकी समाचार पत्र-पत्रिकाओं में गांधी को एक ऐसे नायक के रूप में दिखाया जाता था जिसने भारत में सत्य और अहिंसा की ऐसी आंधी ला दी कि अंग्रेज़ भयभीत हो गएं! उस दौर के कुछ व्यंग्य चित्रों में गांधी को अहिंसा के भूत के रूप में दर्शाया गया है जिससे अंग्रेज़ डर रहे हैं। लेकिन गांधी में ऐसा क्या था कि हर कोई उनकी ओर आकर्षित हो जाता था! वे कौन सी खूबियां थीं जिन्होंने उन्हें भारत का राष्ट्रपिता बना दिया! आइए ज्योतिष के माध्यम से समझते हैं गांधी की शख़्सियत! लेकिन उससे पहले प्रस्तुत है गांधी का संक्षिप्त जीवन परिचय...

प्रारंभिक जीवन

महात्मा गांधी यानी मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर,1869 को पोरबंदर (गुजरात) में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी (1882-1885) अंग्रेज़ी सरकार में पोरबंदर के दीवान (मुख्यमंत्री जैसा पद) थे। उनकी मां पुतलीबाई एक वैष्णव परिवार से ताल्लुक रखती थीं। मोहनदास अपने 3 भाईयों और 1 बहन में सबसे छोटे थे। उन पर अपनी मां का बहुत अधिक प्रभाव था। इसका ज़िक्र वे अपनी आत्मकथा “सत्य के प्रयोग” (My Experiments with Truth) में करते हुए कहते हैं कि उनकी मां बचपन में उन्हें पौराणिक कथाएं सुनाया करती थीं। श्रवण और राजा हरीश्चंद्र की कहानियों से वे बेहद प्रभावित थे। उन्हीं के विचारों से प्रभावित होकर वे सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलें।

13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह 14 वर्षीय कस्तूरबा (कस्तूरबाई माखनजी कपाड़िया) से हुआ जिनसे उनके चार पुत्र हुए। सन् 1888 में कानून की पढ़ाई के लिए वे लंदन चले गएं। पढ़ाई पूरी करने के बाद सन् 1891 में वे भारत लौटे। उसके बाद उन्होंने बॉम्बे (Bombay) में लॉ प्रेक्टिस शुरु की लेकिन अपनी मां की मृत्य (1891) से वे इतने आहत थे कि केस हार गएं। उसके बाद 1893 में उन्होंने दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी (Dada Abdulla & Co.) से 1 साल का कॉन्ट्रेक्ट साइन किया और इस केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका चले गएं। यहीं उन्होंने सत्याग्रह का पहला प्रयोग किया।

दक्षिण अफ्रीका और गांधी

दक्षिण अफ्रीका में गांधी 21 साल तक रहें जहां उनकी राजनीतिक चेतना का विकास हुआ। उन्होंने यहां पर ब्रिटिश सरकार द्वारा अश्वेतों और प्रवासी भारतीयों पर हो रहे अत्याचार को देखा और स्वयं भी इसका अनुभव किया। इसके विरोध में उन्होंने 1894 में नेटल इंडियन कांग्रेस (Natal Indian Congress) की स्थापना की और सभी भारतीयों को एकजुट किया। सन् 1906 में उन्होंने सत्याग्रह (निष्क्रिय प्रतिरोध) का पहला प्रयोग किया और एक लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार सरकार को गांधी के साथ समझौता करने पर मजबूर होना पड़ा और भारतीयों को कुछ अधिकार देने पड़ें।

गांधी और स्वतंत्रता की लड़ाई

दक्षिण अफ्रीका में अपने आंदोलन के बाद गांधी एक ग्लोबल हीरो बन चुके थे। 1915 में गोपाल कृष्ण गोखले के आग्रह पर वे भारत लौटते हैं। यहां उन्होंने सत्याग्रह को लेकर अपना पहला प्रयोग 1917 में चंपारण में किया। उसके बाद उन्हें दूसरी सफलता 1918 में खेड़ा में और अहमदाबाद में गुजरात मिल मालिकों के विरुद्ध मिली। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इन दो आंदलनों का काफ़ी महत्व रहा। इनकी सफलता से यह सुनिश्चित हो गया था कि सत्याग्रह एक बेहद कारगर नीति है जिसके बल पर भारत ब्रिटिशों के दमनकारी शासन से छुटकारा पा सकता है।

इसके बाद अगला महत्वपूर्ण आंदोलन 1920 में असहयोग आंदोलन होता है जिसमें आम जन से ब्रिटिश सरकार की सभी नीतियों का असहयोग करने को कहा गया। गांधी ने लोगों से चरखा कातने और विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने और स्वदेशी चीज़ों को अपनाने को कहा गया। सभी नौजवानों से कहा गया कि वे सरकारी विश्वविद्यालयों में दाखिला न लें और सरकारी पदों का त्याग करें। ये पहला ऐसा आंदोलन था जिसमें हर क्षेत्र और वर्ग के लोग शामिल थे। काफ़ी बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी इस आंदोलन में हिस्सा लिया। लेकिन फरवरी 1922 में चौरी-चौरा (उत्तर प्रदेश) की हिंसक घटना के चलते गांधी को यह आंदोलन वापिस लेना पड़ा।

गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 6 वर्ष कैद की सज़ा सुनाई गई लेकिन बढ़ते प्रतिरोध और गांधी की बिगड़ती सेहत के चलते उन्हें 1924 में 2 वर्ष बाद ही रिहा कर दिया गया। उसके बाद 1930 में उन्होंने ऐतिहासिक नमक आंदोलन चलाया। नमक आंदोलन में हजरों लोगों को हिरासत में लिया गया लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिला दिया था। इसलिए लॉर्ड इरविन को मजबूरन गांधी जी के साथ समझौता (5 मार्च, 1931) करना पड़ा। एक रिपोर्ट के अनुसार समझौते पर हस्ताक्षर को लेकर जब गांधी इरविन से मिले तो उन्हें चाय पीने के लिए दी गई। जब उनसे पूछा गया कि वे कितनी चम्मच चीनी लेंगे तो उन्होंने कहा कि मैं चीनी नहीं नमक वाली चाय पीना चाहूंगा। उन्होंने चाय में नमक मिलाया और पी गए। इस तरह इरविन के सामने ही उन्होंने नमक कानून का उल्लंघन किया।

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरु होने के बाद अंग्रेज़ों ने भारत का सहयोग मांगा तो कांग्रेस ने आज़ादी मांग ली। भारत के पूर्ण सहयोग के बावजूद अंग्रेज़ों ने भारत के साथ धोखा किया। लिहाज़ा 8 अगस्त 1942 को गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ दिया। आंदोलन शुरु होने के अगले दिन ही गांधी समेत कई बड़े नेताओं को गिरफ्त्तार कर लिया गया। लेकिन गांधी के गिरफ्तार होते ही आंदोलन धीमा पड़ने की बजाए और तेज़ हो गया। देश में अराजकता का माहौल हो गया। गांधी जब जेल में थे तो इसी दौरान कस्तूरबा का निधन हो गया और गांधी जी की भी सेहत बिगड़ गई जिसके चलते उन्हें रिहा कर दिया गया। 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने पर आम चुनाव के बाद हेनरी एटली प्रधानमंत्री चुने गएं। उन्होंने गांधी से वादा किया कि वे भारत को आज़ाद कराने में उनकी मदद करेंगे। लेकिन भारत के हिंदू और मुसलमानों को एक न किया जा सका। अंतत: भारत-पाकिस्तान विभाजन के फलस्वरूप भारत को 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिली। लेकिन कुछ लोगों ने गांधी को इसके लिए ज़िम्मेदार माना और 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई।

ज्योतिषीय विश्लेषण: वे गुण जिन्होंने गांधी को बनाया राष्ट्रपिता

फ्यूचर पॉइंट के एस्ट्रोलॉजर कुलदीप कुमार (Kuldeep Kumar) ज्योतिष के माध्यम से आपको समझा रहे हैं कि ग्रहों की किन स्थितियों के चलते गांधी को इतना अधिक जनसमर्थन मिला कि वे भारत के राष्ट्रपिता बन गएं...

जन्म तिथि: 2 अक्टूबर, 1869
जन्म का समय: सुबह 7:45 बजे
जन्म स्थान: पोरबंदर
  • गांधी जी का जन्म लग्न तुला है। इस लग्न में पैदा हुए जातक न्याय, दया, क्षमा, शांति, कोमल स्वभाव के और अनुशासित होते हैं।
  • गांधी जी की कुंडली के लग्न भाव में बुध दृष्टिगोचर है और सप्तम भाव में बैठे गुरु की दृष्टि उस पर पड़ रही है। ये दोनों मिलकर कुंडली में राजयोग बना रहे हैं। राजयोग के चलते गांधी को इतनी प्रसिद्धि मिली और वे भारत के राष्ट्रपिता बनें।
  • शुक्र, बुध और मंगल लग्न भाव में हैं और उन पर गुरु की दृष्टि पड़ रही है। मंगल यहां शुभ ग्रहों के साथ है जो गांधी को साहसी और पराक्रमी बनाता है। शुभ ग्रहों की दृष्टि उन्हें आत्मबल देती है जिससे कि वे सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चल सकें और सत्य को लेकर उनका सत्याग्रह का प्रयोग सफल रहा।
  • कुंडली में शुक्र की शुभ स्थिति पंच महापुरुष योग (मालव्य योग) बना रही है। कुंडली में मालव्य योग उन्हें साहस और आत्मबल देता है और उन्हें इतनी बड़ी संख्या में जनसमर्थन मिलता है।
  • मंगल लड़ाई का कारक ग्रह है। गांधी जी की कुंडली में मंगल शुभ ग्रहों के साथ बैठा है जिसके कारण उनका सत्य और अहिंसा का शस्त्र उपयोगी साबित हुआ और उन्हें अपनी लड़ाई में विजय प्राप्त हुई।
  • लग्न भाव में बुध की स्थिति उन्हें प्रसिद्धि, सत्यता, प्रभावी, गहरी समझ और सादगी प्रदान करती है।
  • लग्न भाव में शुक्र की स्थिति उन्हें कोमल और मृदुभाषी बनाती है जिस कारण लोग उनकी ओर आकर्षित होते हैं और वे आसानी से किसी से भी अपनी बात मनवा लेते हैं।
  • कुंडली में बुध और शुक्र शुभ स्थिति में हैं। शुक्र का अपने घर में और बुध का अपने मित्र ग्रह (शुक्र) के घर में होना इसे और शुभ बनाता है। ग्रहों की यह स्थिति गांधी को आशावादी, उद्यमी, उत्साही, निडर और प्रभावी बनाती है। शुक्र और बुध की इस स्थिति के कारण उन्हें आम जन का सहयोग भी प्राप्त होता है।
  • शनि के दूसरे भाव में होने के कारण वे व्यक्तिगत सुख से वंचित रहें और अपनी पारिवारिक ज़िंदगी का वे लुत्फ़ नहीं उठा पाएं।
  • सूर्य इनकी कुंडली के द्वादश भाव में है जिसके कारण ये आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। गांधी अपने व्यक्तिगत जीवन में धर्म को बहुत अधिक महत्व देते थे। लेकिन बुध और महावीर की तरह सभी धर्मों को साथ लेकर चलते थे। हिंदू-मुस्लिम की एकता के लिए उन्होंने खूब प्रयास किए।
  • गांधी की जन्मपत्री (कुंडली) में चंद्रमा 10वें भाव में है। अपनी स्वराशि कर्क में होने के कारण वह गांधी को गर्वित महसूस कराता है और आत्मबल प्रदान करता है।
  • राहु राजनीति का कारक ग्रह है। राहु कर्म भाव में स्थित होकर गांधी को एक अच्छा राजनेता बनाता है।
  • गुरु कुंडली के सप्तम भाव में बैठा है जो उन्हें अध्यात्म की ओर ले जाता है। यह स्थिति जहां एक ओर गांधी को सोचने-समझने की गहरी समझ देती है तो वहीं दूसरी ओर उन्हें उनके व्यक्तिगत जीवन से दूर भी करती है।
  • गुरु, शुक्र, बुध और मंगल कुंडली के केंद्र में हैं। बुध यहां अपने मित्र ग्रहों के साथ हैं। मंगल शुभ ग्रहों के साथ है। जन्मपत्री में ग्रहों की यह स्थिति शुभ फल देती है।

क्या आप में भी हैं वे गुण जो गांधी में थे, जानने के लिए हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाएं।

मृत्यु के दिन ग्रहों की स्थिति

मृत्यु का दिन: 30 जनवरी, 1948
मृत्यु का समय: शाम के 5:17 बजे

इस दौरान गांधी की कुंडली में ग्रहों की निम्न स्थितियां मृत्यु योग बनाती हैं...

दूसरे भाव में अशुभ ग्रह मंगल मृत्यु भाव को दृष्ट कर रहा है।

जन्म कुंडली में मृत्यु के दिन गुरु की महादशा और शुक्र की अंतर्दशा चल रही थी। कुंडली में शुक्र अष्टमेश अर्थात् मृत्यु स्थान का स्वामी है। गोचर कुंडली में मृत्यु के दिन अष्टमेश शुक्र पर मंगल की दृष्टि पड़ रही थी। जिसके कारण इनकी मृत्यु का प्रबल योग बन रहा था। जन्म कुंडली में मृत्यु भाव पर शनि, मंगल, केतु इन सभी पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही थी जिसके कारण इनकी हत्या हुई।

गांधी जी का मानना था कि मनुष्य का जन्म मनुष्य के लिए होता है। “वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे!” वे कहा करते थे, “ऐसे जीएं जैसे कि आपको कल मरना है और सीखें ऐसे जैसे कि आपको हमेशा जीवित रहना है।” गांधी अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार हमेशा जीवित रहेंगे। ऐसा बहुत कुछ है जो हम बापू से सीख सकते हैं।