विनायक चतुर्थी पर इस सरल विधि से करें भगवन श्री गणेश का पूजन | Future Point

विनायक चतुर्थी पर इस सरल विधि से करें भगवन श्री गणेश का पूजन

By: Future Point | 27-Jan-2021
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विनायक चतुर्थी पर इस सरल विधि से करें भगवन श्री गणेश का पूजन

विनायक चतुर्थी व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। विनायक चतुर्थी तिथि भगवान श्री गणेश जी को  बहुत प्रिय है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार श्री गणेश की कृपा प्राप्ति से जीवन के सभी असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक चान्द्रमास में दो चतुर्थी पड़ती है।

अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। सनातन धर्म में भगवान गणेश की पूजा किसी भी पूजा में सबसे पहले किये जाने का विधान बताया गया है। ऐसे में भगवान गणेश की खास पूजा के लिए विनायक चतुर्थी का व्रत समर्पित किया गया है। इस दिन गणेश जी का जन्मदिन मनाया जाता है। हर महीने में पड़ने वाली प्रत्येक चतुर्थी तिथि का अपना ही महत्व होता है।

विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को वरद कहते हैं। जो श्रद्धालु विनायक चतुर्थी का उपवास करते हैं। भगवन गणेश उसे ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण हैं जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है।

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विनायक चतुर्थी व्रत -

फ्यूचर पंचाग के अनुसार विनायक चतुर्थी के दिन गणेश पूजा दोपहर को मध्याह्न काल के दौरान की जाती है। दोपहर के दौरान भगवान गणेश की पूजा का मुहूर्त विनायक चतुर्थी के दिनों के साथ दर्शाया गया है। विनायक चतुर्थी के लिए उपवास का दिन सूर्योदय और सूर्यास्त पर निर्भर करता है और जिस दिन मध्याह्न काल के दौरान चतुर्थी तिथि प्रबल होती है उस दिन विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इसीलिए कभी कभी विनायक चतुर्थी का व्रत, चतुर्थी तिथि से एक दिन पूर्व, तृतीया तिथि के दिन भी पड़ जाता है।

विनायक चतुर्थी पूजन विधि -

इस दिन सुबह जल्दी उठकर सभी कामों से निवृत होकर स्नान करें। इसके बाद घर या मंदिर में भगवान गणेश जी की पूजा करने के लिए साफ कपड़े पहनें।

पूजा शुरु करते हुए साधक को गणेश मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

पूजा में पुष्प, धूप, चंदन, मिठाई, फल, और पान का पत्ता इत्यादि चढ़ाएं।

धूप दीप जलाकर भगवान गणेश की कथा का पाठ करें।

पाठ हो जाने के बाद आरती कर प्रसाद बांटें।

शाम के समय दोबारा गणेश भगवान की पूजा करें। प्रसाद बांटें और फलाहार कर अगले दिन व्रत पूरा करें।

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गणेश मंत्र -

प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम्।

तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो: शिवाय।।

प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोकदावानलं गणविभुं वरकुञ्जरास्यम्।

अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाहमुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य।।

चतुर्थी व्रत कथा -

गणेश चतुर्थी के सम्बन्ध में एक कथा जग प्रसिद्ध है। एक बार माता पार्वती के मन में ख्याल आता है कि उनका कोई पुत्र नहीं है। ऐसे में वे अपने मैल से एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जीव भरती हैं। इसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। परंतु जाने से पहले माता बालक को आदेश देती है कि किसी भी परिस्थिति में किसी को भी कंदरा में प्रवेश न करने देना।

बालक अपनी माता के आदेश के अनुसार कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। कुछ समय बीत जाने के बाद वहां भगवान शिव पहुंचते हैं। शिव जैसे ही कंदरा के भीतर जाने के लिए आगे बढ़ते हैं बालक उन्हें रोक देता है। शिव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं लेकिन वह उनकी एक न सुना, जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव अपनी त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर देते हैं। इस अनिष्ट घटना का आभास माता पार्वती को हो जाता है।

वे स्नान कर कंदरा से बाहर आती हैं और देखती है कि उनका पुत्र धरती पर प्राण हीन पड़ा है और उसका शीश कटा है। यह दृश्य देख माता क्रोधित हो जाती हैं जिसे देख सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं। तब भगवान शिव गणों को आदेश देते हैं कि ऐसे बालक का शीश ले आओ जिसकी माता की पीठ उस बालक की ओर हो। गण एक हथनी के बालक का शीश लेकर आते हैं शिव गज के शीश को बाल के धड़ जोड़कर उसे जीवित करते हैं।

इसके बाद माता पार्वती शिव से कहती हैं कि यह शीश गज का है जिसके कारण सब मेरे पुत्र का उपहास करेंगे। तब भगवान शिव बालक को वरदान देते हैं कि आज से संसार इन्हें गणपति के नाम से जानेगा। इसके साथ ही सभी देव भी उन्हें वरदान देते हैं कि कोई भी मांगलिक कार्य करने से पूर्व गणेश की पूजा करना अनिवार्य होगा। यदि ऐसा कोई नहीं करता है तो उसे उसके अनुष्ठान का फल नहीं मिलेगा।

विनायक चतुर्थी व्रत पूजा तिथि व मुहूर्त 2021

विनायक चतुर्थी के दिन गणेश पूजा फ्यूचर पंचांग के अनुसार दोपहर में की जाती है। जो इस प्रकार है -

विनायक चतुर्थी व्रत - तिथि- 16 जनवरी 2021, दिन- (शनिवार) मुहूर्त समय – प्रातः 11:28 बजे से दोपहर 13:34 बजे तक,

विनायक चतुर्थी (गणेश जयन्ती) – तिथि- 15 फरवरी 2021, दिन- (सोमवार) मुहूर्त समय – प्रातः 11:28 बजे से दोपहर 13:43 बजे तक,

विनायक चतुर्थी – तिथि- 17 मार्च 2021, दिन– (बुधवार) मुहूर्त समय – प्रातः 11:17 बजे से दोपहर 13:42 बजे तक,

विनायक चतुर्थी – तिथि- 16 अप्रैल 2021, दिन- (शुक्रवार) मुहूर्त समय – प्रातः 11:04 बजे से दोपहर 13:38 बजे तक,

विनायक चतुर्थी – तिथि- 15 मई 2021, दिन– (शनिवार) मुहूर्त समय – प्रातः 10:56 बजे से दोपहर 13:39 बजे तक,

विनायक चतुर्थी – तिथि- 14 जून 2021, दिन– (सोमवार) मुहूर्त समय– प्रातः 10:58 बजे से दोपहर 13:45 बजे तक,

विनायक चतुर्थी – तिथि- 13 जुलाई 2021, दिन– (मंगलवार) मुहूर्त समय – प्रातः 11:04 बजे से दोपहर 13:50 बजे तक,

विनायक चतुर्थी – तिथि- 12 अगस्त 2021, दिन– (बृहस्पतिवार) मुहूर्त समय – प्रातः 11:06 बजे से दोपहर 13:45 बजे तक,

विनायक चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) – तिथि- 10 सितम्बर 2021, दिन– (शुक्रवार) मुहूर्त समय – प्रातः 11:03 बजे से दोपहर 13:33 बजे तक,

विनायक चतुर्थी – तिथि- 9 अक्टूबर 2021, दिन– (शनिवार) मुहूर्त समय – प्रातः 10:58 बजे से दोपहर 13:18 बजे तक,

विनायक चतुर्थी – तिथि- 8 नवम्बर 2021, दिन– (सोमवार) मुहूर्त समय – प्रातः 10:59 बजे से दोपहर 13:10 बजे तक,

विनायक चतुर्थी – तिथि- 7 दिसम्बर 2021, दिन– (मंगलवार) मुहूर्त समय – प्रातः 11:10 बजे से दोपहर 13:15 बजे तक,


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