योगिनी एकादशी विशेष- महत्व, कथा एवं पूजा विधि

By: Future Point | 08-Jun-2019
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योगिनी एकादशी विशेष- महत्व, कथा एवं पूजा विधि

हिन्दू धर्म के अनुसार आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है और इस शुभ दिन पर भगवान श्री विष्णु जी के साथ- साथ पीपल के पेड़ की पूजा का भी विशेष महत्व होता है, योगिनी एकादशी के व्रत को करने से व्रती के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

योगिनी एकादशी का महत्व -

शास्त्रों के मुताबिक योगिनी एकादशी का व्रत करने का फल 88 सहस्त्र ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान माना गया है. और इस व्रत को करने से व्रती के समस्त पाप दूर होते है. भगवान श्री विष्णु जी की मूर्ति को स्नान कराकर पुष्प, धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए तथा भोग लगाना चाहिए. इस दिन गरीब ब्राह्माणों को दान देना कल्याणकारी माना जाता है.


2019 में योगिनी एकादशी तिथि एवं मुहूर्त -

  • इस वर्ष 2019 में योगिनी एकादशी तिथि 29 जून को पड़ रही है।
  • पारण का समय – 30 जून को प्रातः 05:30 से 06:11 बजे तक ।
  • पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त – 30 जून को 06:11 बजे ।
  • एकादशी तिथि आरंभ – 28 जून को 06:36 बजे से ।
  • एकादशी तिथि समाप्त – 29 जून को 06:45 बजे ।

योगिनी एकादशी की कथा -

पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वर्ग धाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहाँ फूल लाया करता था हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा, इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा, यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया, हेम माली राजा के भय से काँपता हुआ उपस्थित हुआ राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी!

तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इस‍लिए मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा, कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया, भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया, उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा, रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा, घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था, हेम माली वहाँ जाकर उनके पैरों में पड़ गया, उसे देखकर मारर्कंडेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई, हेम माली ने सारा वृत्तांत कह सुनाया, यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूँ, यदि तू ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएँगे, यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया, मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया, हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया, इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।


योगिनी एकादशी व्रत विधि -

  • दशमी तिथि को शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
  • एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन को शांत एवं स्थिर रखें. किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लायें और परनिंदा से बचें.
  • प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे तथा स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं.
  • भगवान् विष्णु जी की पूजा में तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें।
  • व्रत के दिन अन्न वर्जित होता है अतः निराहार रहें और शाम में पूजा के बाद चाहें तो फल ग्रहण कर सकते है.
  • यदि आप किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए।
  • एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है अतः संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें।
  • एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।

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