वैदिक ज्योतिष में शुक्र का क्या महत्व है? जाने

By: Future Point | 14-Feb-2019
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वैदिक ज्योतिष में शुक्र का क्या महत्व है? जाने

नवग्रहों में शुक्र ग्रह भोग-विलास और सांसारिक सुखों से सबंधित ग्रह माना गया है। सौंदर्य और सौंदर्यवर्धन में प्रयुक्त होने वाली सभी वस्तुओं का कारक ग्रह शुक्र है। शुक्र जन्मकुंडली में सुस्थिर हों तो जातक को भोग विलास के विषयों में अधिक रुचि लेता है। शुक्र को स्त्री लिंग ग्रह के रुप में स्वीकार किया गया है। विशेष रुप से शुक्र महिला प्रधान ग्रह माना जाता है। स्वयं की सुंदरता को बेहतर करने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले सभी उत्पादों के लिए ज्योतिष में शुक्र का विचार किया जाता है।

शुक्र ग्रह देव गुरु की मीन राशि में उच्च स्थान प्राप्त करते है। शुक्र को तुला और वॄषभ राशि का स्वामित्व प्रदान किया गया है। जिन व्यक्तियों का जन्म तुला या वृषभ राशि में होता हैं उनमें आकर्षण शक्ति सामान्य से अधिक होती है। यह गुण विशेष रुप से स्त्री जातकों में पाया जाता है। शुक्र जन्म पत्री में जितना अधिक बली और शुभ होगा, जातक का व्यक्तित्व और सुंदरता उतनी ही दर्शनीय और चुम्बकीय होगी। इसके अतिरिक्त शुक्र प्रधान जातकों की ओर विपरीत लिंग जल्द सम्मोहित होता है और इनकी सुंदरता की डोर में खिंचा चला आता है। भोगविलास का कारक ग्रह होने के कारण शुक्र हर प्रकार की साज सज्जा में प्रयोग होने वाली वस्तुओं का कारक ग्रह है।

शुक्र मनोरंजन और फिल्म जगत से प्रत्यक्ष संबंध रखता है। पूरा फिल्म जगत शुक्र ग्रह के कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत आता है। वैदिक ज्योतिष कहता है कि शुक्र प्रेमिका है। काव्य, प्रेम और भावनाओं की अभिव्यक्ति के कारक ग्रह शुक्र ही है। दुनिया में जहां भी प्रेम है वहां शुक्र अपना काम कर रहा है। किसी व्यक्ति विशेष को उसका प्रेम मिलेगा या नहीं इसके लिए जन्मपत्री में पंचम भाव, भावेश के साथ साथ शुक्र ग्रह का विश्लेषण किया जाता है। वैवाहिक जीवन और विवाह के बाद वैवाहिक सुख के लिए भी शुक्र का ही विचार किया जाता है। हर प्रकार की कलाएं जिसमें गायन, वादन, संगीत, चित्रकारी, अभिनय, नाचना, फैशन डिजाईंनिग सब शुक्र ग्रह से ही देखे जाते हैं।

वैसे तो शुक्र ग्रह असुरों के गुरु हैं, फिर भी इन्हें शुभ ग्रह का स्थान दिया गया है। सूर्य, चंद्र, गुरु और मंगल इनके शत्रु ग्रह है। बुध, शनि और राहु/केतु इनके मित्र ग्रह है। शुक्र को एक मात्र दृष्टि प्रदान की गई है। वह अपने से सातवीं राशि पर दृष्टि देता है अर्थात अपने से सातवें भाव को प्रभावित करता है। शुभ ग्रह होने के कारण इसका देखना शुभ माना गया है। सप्तम भाव विवाह का भाव है। इस भाव का कारक ग्रह शुक्र है। बुध की कन्या राशि में शुक्र नीच स्थान प्राप्त करते है। जन्मपत्री में शुक्र ग्रह जितना अधिक पाप ग्रहों के प्रभाव में होते हैं, यह माना जाता है कि व्यक्ति का वैवाहिक जीवन उतना ही कष्टमय रहता है। इस ग्रह का अशुभ ग्रहों से युक्त होना प्रेम संबंधों में असफलता और भावनाओं के आहत होने का कारण बनता है।

महिलाओं की प्रजनन शक्ति की जांच और स्त्री पुरुष दोनों के प्रजनन प्रणाली के सुचारु रुप से काम करने के लिए कुंडली में शुक्र का सुस्थिर होना आवश्यक है। शुक्र ग्रह की महादशा अवधि २० वर्ष की होती है। शुक्र के तीन नक्षत्र चित्रा, स्वाति और विशाखा है। शुक्र ग्रह के सभी शुभ फल पाने के लिए हीरा रत्न धारण करना चाहिए। इसके उपरत्न के रुप में जर्कन रत्न धारण करना चाहिए। ग्रहों में शुक्र को आनंद और सुख देने वाला ग्रह माना जाता है। यह नैसर्गिक रुप से शुभ ग्रह है। अंगों में शुक्र को जीभ और जननांग अंगों का अधिकार दिया गया है। एक से एक स्वादिष्ट भोजन का कारक ग्रह भी शुक्र ही है।

गोचर में शुक्र जब अस्त होता है, तो हर प्रकार के शुभ कार्य रोक दिए जाते है। अस्त शुक्र को तारा डूबना भी कहा जाता है। शुक्र के अस्त अवधि में मुहूर्त और अन्य सभी शुभ मुहूर्त प्रयोग में नहीं लाये जाते है। शुक्र का अस्त होना वैवाहिक जीवन से जुड़े रोगों को बढ़ोतरी देता है, वीर्य विकार देता है। शुक्र विभिन्न ग्रहों के साथ होने पर अन्य प्रकार की परेशानियां देता हैं। जैसे - सूर्य और शुक्र अंशों में निकटतम हों तो संतान सुख प्राप्त काफी दिक्कतों के बाद ही प्राप्त होती है। ऐसे में गर्भपात की स्थिति भी सामने आती है। शुक्र के साथ यदि मंगल हो तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण रहता है। पति-पत्नी दोनों में लड़ाई झगड़े होना आम बात होती है। ऐसे में विवाह तो होता है परंतु दोनों को एक-दूसरे का साथ नहीं मिल पाता है। या फिर पति पत्नी दोनों अलग अलग रहते हैं परन्तु इस स्थिति में तलाक नहीं होता है। जन्मपत्री में शुक्र का अस्त होना, मानसिक शांति को भंग करता है।


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