वास्तु शास्त्र मानव जीवन के लिए अति महत्पूर्ण

By: Future Point | 18-Jan-2021
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वास्तु शास्त्र मानव जीवन के लिए अति महत्पूर्ण

वास्तु का मूल अर्थ है। निवास स्थान, वास्तु के सिद्धांत, वातावरण में पंच तत्वों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। जल, अग्नि, पृथ्वी, वायु और आकाश इन पाँचों तत्वों का प्रभाव हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के सभी पहलुओं पर पड़ता है। 

यह विद्या भारत की प्राचीनतम विद्याओं में से एक है जिसका संबंध दिशाओं और ऊर्जाओं से है। इसके अंतर्गत दिशाओं को आधार बनाकर आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को कुछ इस तरह सकारात्मक किया जाता है, ताकि वह मानव जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव न डाल सकें। 

वास्तु शास्त्र हमारे जीवन को सुगम बनाने एवं कुछ अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षा करने में हमारी मदद करता है। एक तरह से वास्तु शास्त्र हमें नकारात्मक ऊर्जा से दूर सुरक्षित वातावरण में रखता है। उत्तर भारत में मान्यता अनुसार वास्तु शास्त्र वैदिक निर्माण विज्ञान है, जिसकी नींव विश्वकर्मा जी ने रखी है। जिसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन सम्मिलित हैं, जो किसी भवन निर्माण में अत्यधिक महत्व रखते हैं।

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वास्तु शिल्पज्ञान के बिना निवास करने का संसार मे कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय है। वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे आसपास की सृष्टि में व्याप्त अनिष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा के उद्देश्य से इस विज्ञान का विकास किया। वास्तु का उद्भव स्थापत्य वेद से हुआ है, जो अथर्ववेद का अंग है। इस सृष्टि के साथ-साथ मानव शरीर भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है तथा वास्तु शास्त्र के अनुसार यही तत्व जीवन तथा जगत को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक है।

वास्तुशास्त्री भूखंड की शुभ-अशुभ दशा का अनुमान आसपास उपस्थित वस्तुओं को देखकर लगा लेता है। भूखंड की किस दिशा की ओर क्या स्थित है और उसका भूखंड पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस बात की जानकारी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के विश्लेषण से प्राप्त होती है। यदि वास्तु सिद्धांतों व नियमों के अनुरूप भवन निर्माण करवाया जाए तो भवन में रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय होने की संभावना प्रबल हो जाती है। प्रत्येक मनुष्य की इच्छा होती है कि उसका घर सुंदर, सुखदायी व सकारात्मक ऊर्जा का वास हो, जहां रहने वालों का जीवन सुखद एवं शांतिमय हो। इसलिए आवश्यक है कि भवन वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप निर्मित हो और उसमें कोई वास्तु दोष न हो। यदि घर की दिशाओं में या भूमि में दोष है तो उस पर कितनी भी लागत लगाकर मकान क्यों न खड़ा किया जाए, फिर भी उसमें रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय नहीं होगा। मुगल कालीन भवनों, मिस्र के पिरामिड आदि के निर्माण-कार्य में भी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों व नियमों का सहारा लिया गया था।

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यह भौतिक पदार्थ स्थित ऊर्जा है। जब वास्तु पुरूष चारों मुख्य दिशाओं , उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम की ओर मुख करता है तो उसे जागा हुआ माना जाता है। और जब यह कोणीय दिशाओं यानी ईशान, आग्नेय, नैऋृत्य व वायव्य की ओर मुख करता है, तो उसे सोया हुआ माना जाता है।

वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र में संबंध-

वास्तु और ज्योतिष शास्त्र दोनों एक-दूसरे के पूरक व अभिन्न अंग हैं। जैसे मानवीय शरीर का अपने अंगों के साथ अटूट संबंध होता है। ठीक वैसे ही ज्योतिष शास्त्र का अपनी सभी शाखायें प्रश्न शास्त्र, अंक शास्त्र, वास्तु शास्त्र आदि के साथ अटूट संबंध है। ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र के बीच निकटता का कारण यह है कि दोनों शास्त्रों का उद्देश्य मानव को प्रगति एवं उन्नति की राह पर अग्रसर एंव सुरक्षा प्रदान कराना है। वास्तु सिद्धांत के अनुरूप निर्मित भवन में वास्तुसम्मत दिशाओं में सही स्थानों पर रखी गई वस्तुओं के परिणामस्वरूप भवन में रहने वाले लोगों का जीवन शांतिपूर्ण और सुखमय होता है। इसलिए भवन निर्माण से पहले किसी वास्तुविद से परामर्श लेकर वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए।

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वास्तु शास्त्र  कराता है सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह -

ऊर्जा स्रोत में चुंबकीय, थर्मल और विद्युत ऊर्जा भी शामिल होगी। जब हम इन सभी ऊर्जाओं का आनन्दमय उपयोग करते हैं, तो यह हमें अत्यंत आंतरिक खुशी, मन की शांति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए धन प्रदान करती हैं।

भाग्य वृद्धि के लिए वास्तु शास्त्र के नियमों का महत्व भी कम नहीं है। घर या ऑफिस का वास्तु ठीक न हो तो भाग्य बाधित होता है।

वास्तु को किसी भी प्रकार के कमरे, घर, वाणिज्यिक या आवासीय संपत्ति, बंगले, मंदिर, नगर, नियोजन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

वास्तु छोटी एवं बड़ी परियोजनाओं एवं उपक्रमों पर भी लागू होता है।

वास्तुविद्या मकान को एक शांत , सुसंस्कृत और सुसज्जित घर में तब्दील करती है। यह घर परिवार के सभी सदस्यों को एक हर्षपूर्ण , संतुलित और समृद्धि जीवन शैली की ओर ले जाता है।

मकान में अपनी ज़रूरत से अधिक अनावश्यक निर्माण और फिर उन फ्लोर या कमरों को उपयोग में न लाना ,बेवजह के सामान से कमरों को ठूंसे रखना भवन के आकाश तत्व को दूषित करता है। नकारात्मक शक्तियों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए सुझाव है कि भवन में उतना ही निर्माण करें जितना आवश्यक हो।

वास्तु सिद्धांत के अनुरूप निर्मित भवन एवं उसमें वास्तुसम्मत दिशाओं में सही स्थानों पर रखी गई वस्तुओं के फलस्वरूप उसमें रहने वाले लोगो का जीवन शांतिपूर्ण और सुखमय होता है। इसलिए उचित यह है कि भवन का निर्माण किसी वास्तुविद से परामर्श लेकर वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप ही करना चाहिए।

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मुख्य द्वार की स्थिति का सीधा संबंध उस घर में रहने वाले लोगों की सामाजिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति से होता है। घर का मुख्य द्वार वास्तु दोषों से मुक्त हो, तो घर में सुख-समृद्धि, रिद्धी-सिद्धि रहती है, सभी प्रकार के मंगल कार्यों में वृद्धि होती है और परिवार के लोगों में आपसी समंजस्य बना रहता है। इसलिए घर का मुख्य द्वार वास्तु दोष से मुक्त होना अत्यंत आवश्यक है। यदि इसमें कोई दोष हो, तो इसे तुरंत वास्तु उपायों के द्वारा ठीक कर लेना चाहिए।

पूर्ण सामंजस्य बनाने के लिए तीन बल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनमें जल, अग्नि एवं वायु शामिल हैं। वास्तु के अनुसार, वहां पूर्ण सद्भाव और शांति होगी, जहां यह तीनों बल अपनी सही जगह पर स्थित होंगे। अगर इन तीन बलों की जगह में आपसी परिवर्तन यानी गड़बड़ी होती है, जैसे कि जल की जगह वायु या अग्नि को रखा जाए तथा अन्य ताकत का गलत स्थानांतरण हो तो इस गलत संयोजन का जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण सद्भाव की कमी एवं अशांति पैदा होती है।

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