पूर्णिमा श्राद्ध पर इन मुहूर्त और विधि से करें पितरों को प्रसन्न
By: Future Point | 08-Sep-2018
Views : 11325
सनातन धर्म में पितृ ऋण से मुक्ति पाने और पितृ दोष को दूर करने के लिए अपने माता-पिता या परिवार के किसी मृत जन के निमित्त श्राद्ध करने की अनिवार्यता प्रतिपादित की गई है। श्राद्ध कर्म को पितृ कर्म भी कहा गया है और इसका अर्थ पितृ पूजा भी है।
शास्त्रों में पितरों एवं पूर्वजों को अत्यंत दयालु और कृपालु कहा गया है और मृत्यु के उपरांत वह अपने पुत्र-पौत्रों से पिंडदान व तर्पण की इच्छा रखते हैं। यदि पितृ पक्ष में आपके पितर आपसे प्रसन्न हो जाएं जो आपको दीर्घायु, सुख-संपत्ति, धन-धान्य, राजसुख, मान-सम्मान और यश-कीर्ति की प्राप्ति होती है।
हर साल भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से आश्विन अमावस्या तिथि तक 16 दिन के श्राद्ध यानि पिृत पक्ष होते हैं। इस साल पितृ पक्ष 24 सितंबर से आरंभ हो रहे हैं और से 8 अक्टूबर को समाप्त होंगें।
Read: श्राद्ध 2018, कब किनका श्राद्ध करें, श्राद्ध की महत्वपूर्ण जानकारी
पूर्णिमा तिथि पर किसका होता है श्राद्ध
ये पहला श्राद्ध होता है जोकि पूर्णिमा तिथि पर आता है। इस दिन उन लोगों का तर्पण किया जाना चाहिए जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो। अगर आपके किसी परिजन की मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई है तो आपको उनका तर्पण पितृ पक्ष में पूर्णिमा तिथि को करना चाहिए।
पूर्णिमा अमावस्या का मुहूर्त
24 सितंबर, 2018 को सोमवार
तिथि – पूर्णिमा
श्राद्ध करने का सही समय
कुतुप मुहूर्त : 11.48 से 12.36 तक
रौहिण मुहूर्त : 12.64 से 13.24 तक
अपराह्न काल : 13.24 से 15.48 तक
पूर्णिमा श्राद्ध की विधि
पूर्णिमा श्राद्ध की तिथि पर प्रात:कल जल्दी उठें और स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। अब गाय के दूध में पके चावलों में शक्कर, इलायची, केसर और मिलाकर खीर बनाएं। गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित करें। प्रज्वलित कंडे को किसी बर्तन में रखकर दक्षिणमुखी होकर खीर से तीन आहुति दें।
Read: श्राद्ध – पितृ पक्ष (श्राद्ध 2018) का अर्थ (24th September - 8th October 2018)
सबसे पहले गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए भोजन निकालकर अलग रख दें। इनके लिए ग्रास निकालते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए और जनेऊ सव्य दाहिने कंधे से लेकर बाईं ओर होना चाहिए। इसके पश्चात् ब्राहृमणों को भोजन करवाएं और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा दें।
क्यों करते हैं श्राद्ध
श्राद्ध का विधान अपने कुल देवताओं, पितरों और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए किया गया है। हिंदू पंचाग के अनुसार हर साल में सोलह दिन की एक विशेष अवधि होती है जिसे श्राद्ध कर्म कहा जाता है। इन्हीं दिनों को पितृ पक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इन दिनों में हमारे सभी पूर्वज और मृतजन धरती पर सूक्ष्म रूप में आ जाते हैं और उनके नाम से किए जाने वाले तर्पण को स्वीकार करते हैं।
कौन होते हैं पितर
परिवार के वो सदस्य जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है। मृत व्यक्ति चाहे अविवाहित हो या विवाहित, बुजुर्ग हो या बच्चा, महिला हो या पुरुष, वे सभी लोग जो अपना शरीर छोड़ चुके हैं उन्हें पितर कहा जाता है। अगर आपके पितरों की आतमा को शांति मिलती है और वो आपसे प्रसन्न हैं तो आपके जीवन में सुख और संपन्नता की कोई कमी नहीं रहती है।
Read: इस विधि से नहीं करेंगें श्राद्ध तो प्रसन्न की जगह नाराज़ हो जाएंगें पूर्वज
पितर बिगड़ते कामों को बनाने में आपकी सहायता करते हैं लेकिन अगर आप उनकी अनदेखी करते हैं तो पितर आपसे रूष्ट हो जाते हैं और लाख प्रयासों के बाद भी आपके बनते काम भी बिगड़ने लगते हैं और आपके जीवन में दरिद्रता और दुख छा जाता है।
कब होता है पितृ पक्ष
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या को समाप्त होते हैं। हिंदू पंचाग के अनुसार आश्विन माह की कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष कहा जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन उन्हीं लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन साल की किसी पूर्णिमा तिथि को हुआ हो। कुछ ग्रंथों में पूर्णिमा को देह त्यागने वालों का तर्पण आश्विन अमावस्या को करने की सलाह दी जाती है। शास्त्रों में साल के किसी भी पक्ष में जिस तिथि को आपके परिजन का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म पितृ पक्ष की उसी तिथि को किया जाना चाहिए।
श्राद्ध की प्रमुख प्रक्रिया
- तर्पण में दूध, तिल, कुशा, फूल, गंध मिश्रित जल से पितरों की आत्मा को प्रसन्न किया जाता है।
- ब्राह्मणों को भोजन और पिंड दान से पितरों को भोजन दिया जाता है।
- वस्त्रों का दान कर पितरों तक वस्त्र पहुंचाए जाते हैं।
- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है और इसलिए श्राद्ध का पूर्ण फल पाने के लिए दक्षिणा देना जरूरी है।
- श्राद्ध के लिए योग्य कौन है
- पिता का श्राद्ध पुत्र द्वारा किया जाता है लेकिन अगर पुत्र ना हो तो पत्नी को ये श्राद्ध करना चाहिए।
- पत्नी ना हो तो सगा भाई श्राद्ध कर्म कर सकता है।
- एक से ज्यादा पुत्र हों तो बड़ा पुत्र श्राद्ध कर्म करता है।
इस समय ना करें श्राद्ध
- रात के समय श्राद्ध ना करें क्योंकि रात्रि राक्षसी का समय है।
- दोनों संध्याओं के समय भी तर्पण नहीं करना चाहिए।
- अगर आप अपने जीवन को सुख और समृद्ध बनाना चाहते हैं तो इस पितृ पक्ष अपने पितरों को प्रसन्न जरूर करें।