नवरात्र के तीसरे दिन करें माता चंद्रघंटा की आराधना - ऐसे करें पूजा | Future Point

नवरात्र के तीसरे दिन करें माता चंद्रघंटा की आराधना - ऐसे करें पूजा

By: Acharya Rekha Kalpdev | 20-Mar-2024
Views : 581नवरात्र के तीसरे दिन करें माता चंद्रघंटा की आराधना - ऐसे करें पूजा

चैत्र नवरात्र 2024, 9 अप्रैल से शुरू होने वाले है। चैत्र नवरात्र की तीसरी देवी माता चंद्रघंटा जी है। देवी चंद्रघंटा आदि शक्ति के नौ रूपों में से तीसरी देवी है। देवी चंद्रघंटा के माथे पर अर्थ चंद्र धारण किया हुआ है। अर्ध चंद्र को धारण करने के कारण इनका नाम चंद्र घंटा पड़ा। चंद्र घंटा की आराधना करने से लौकिक और अलौकिक दोनों प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। चंद्रघंटा दो शब्दों के योग से बने थे। पहला शब्द चंद्र और दूसरा शब्द घंटा। देवी चंद्रघंटा के माथे पर घंटी के आकार का चंद्र होने के कारण माता का नाम चंद्रघंटा पड़ा। देवी चंद्रघंटा साहस और सुंदरता दोनों का मिलाजुला रूप है। देवी चंद्रघंटा देवी सौम्य, और कल्याणकारी देवी है। माता चंद्रघंटा का रूप सोने के समान हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा के इसी विग्रह को ध्यान में रखकर दर्शन-पूजन करना चाहिए। देवी चंद्रघंटा दैहिक, आत्मिक और भौतिक सभी दुखों को देने वाली देवी है।

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देवी चंद्रघंटा दस हाथों के साथ है। देवी के हाथ में खडग और अन्य शस्त्र है। देवी चंद्रघंटा सिंह पर सवार है, और शत्रुओं के साथ युद्ध के लिए तत्पर है। देवी चंद्रघंटा के घंटे की गूँज से दानव और राक्षस दोनों घबराते हैं, देवी के घंटे की आवाज से दुष्ट शक्तियां कांपती है। नवरात्र के दिन देवी चन्द्रघण्टा का पूजन और दर्शन करना चाहिए। देवी चन्द्रघण्टा के दर्शन पूजन से साधक के व्यवहार में सौम्यता और निर्मलता आती है। देवी चंद्रघटा की आराधना पूर्ण रूप से समर्पित भाव से करना चाहिए। देवी आराधना से सब काम पूर्ण होते है, देवी अपने भक्तों का कल्याण करती है।

नवरात्र की तीसरी देवी चन्द्रघण्टा का महत्व -

नवरात्र की तीसरी देवी चंद्रघंटा है। वर्ष 2024 में तीसरा नवरात्र 11 अप्रैल, गुरुवार के दिन का रहेगा। इस दिन देवी की आराधना चन्द्रघण्टा के स्वरुप में की जायेगी। माता चन्द्रघण्टा अपने मस्तक पर चंद्र धारण किये हुए है। इससे उनके सौंदर्य में अद्भुत वृद्धि हो रही है। देवी चन्द्रघण्टा अपने भक्तों के कल्याण के लिए सैदेव तैयार रहती है। मां चन्द्रघण्टा भक्तों कामना पूर्ण करने के लिए भी तैयार रहती है, उनकी रक्षा करती है। देवी अपने आराधक के सभी कष्टों को दूर करती है।

देवी चंद्रघंटा की पूजा कैसे करें?

नवरात्र की तीसरी देवी चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए देवी चंद्रघटा का विग्रह चित्र, पुष्प, फल, मिठाई, रोली, कुमकुम, दीपक, घी, धूप आदि पूजन सामग्री लें। तीसरे नवरात्र के दिन प्रात: सुबह सूर्योदय से पहले उठे। शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजन चौकी से पहले दिन के फूल और पूजन फल हटा दें। चौकी को साफ़ कर लें। चौकी पर स्थापित देवों को वैसे ही रहने दें, सिर्फ फूल और फल हटाएँ। उसके बाद पूजन चौकी के सामने अपना आसान लगाए।देवी चंद्रघंटा की पूजा शुरू करें। देवी के सम्मुख दीपक जलाएं। प्रथम पूज्य गणपति जी के मंत्र ॐ गं गणपतये नमः का 21 बार जाप करें। इसके बाद देवी चंद्रघंटा के लिए ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः मंत्र का जाप करें। गणेश जी को कुमकुम का तिलक लगाएं। देवी को भी तिलक लगाएं, इसके बाद कलश, घट, चौकी को भी तिलक लगाएं। सभी को नमन करें। गणेश जी और देवी सभी को धूप, दीप और फूल अर्पित करें। फूलों में भी लाल फूल अर्पित करें। इसके बाद ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे मन्त्र का 108 बार जाप करें। भोग के रूप में देवी को मिठाई का भोग लगाएं। देवी की कथा पढ़े और आरती गायें।

देवी चंद्रघंटा को कौन सा भोग लगाना चाहिए?

देवी चंद्रघंटा को भोग के रूप में दूध से बनी मिठाइयां प्रयोग की जाती है। इसके अलावा देवी को भोग में मखाने से बनी खीर पसंद है। आप इस दिन देवी के लिए मखाने की खीर बनाकर देवी को भोग लगाएं। देवी प्रसन्न होंगी।

देवी चंद्रघंटा की पूजा करने से क्या क्या लाभ मिलते है?

देवी चंद्रघंटा सभी दैहिक, भौतिक और आत्मिक दोषों का शमन करती है। सभी प्रकार दे रोग, दोष और शोक को देवी दूर करती है। देवी साधना करने से सभी कष्टों का नाश होता है। देवी चंद्रघंटा का प्रिय रंग लाल है।

देवी चन्द्रघण्टा से जुडी पौराणिक कथा ?

देवी चंद्रघंटा से सम्बंधित कथा के अनुसार एक समय में महिषासुर नामक राक्षस का आतंक बढ़ने से सभी देवी घबरा गए। सब और हाहाकार होने लगा। राक्षस महिषासुर का देवताओं के साथ युद्ध हुआ। महिषासुर देवताओं को युद्ध में हरा कर इंद्र आसान पर आसीन होना चाहता था। महिषासुर के इराद जानकर देवगन बहुत चिंतित हुए। उन्हें अपना सिंहासन खतरे में दिखाई देने लगा। समस्या को समझ कर सभी देवों ने त्रिदेवों के सम्मुख अपनी विनती रखी। देवताओं के आग्रह पर तीनों देवों के मुख से एक ऊर्जा का प्रादुर्भाव हुआ। वही देवी चंद्रघंटा के नाम से जानी गई। देवी चंद्रघंटा को त्रिदेवों ने अपने अपने अस्त्र शास्त्र सौंपे। भगवान् शिव ने देवी चंद्रघंटा को अपना त्रिशूल सौंपा, भगवान् विष्णु ने अपना चक्र उस देवी को सौंपा, और देवी देवताओं ने भी उन्हें अपनी शक्तियां सौंपी। इन्द्रराज ने देवी चंद्रघंटा को एक घंटा सौंपा, सूर्य ने तेज और तलवार दी। देवी को सवारी के रूप में सिंह सौंपा। सभी देवी देवताओं से प्राप्त शक्तियों को युक्त होकर देवी सिंह पर सवार होकर महिषासुर के पास युद्ध के लिए पहुंची।

आद्यशक्ति देवी चंद्रघंटा के रूप को देखकर राक्षसराज महिषासुर को अपना काल निकट दिखने लगा। देवी और महिषासुर का आपस में घनघोर युद्ध हुआ। युद्ध में देवी ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की।

देवी चंद्रघंटा का मंत्र

देवी चंद्रघंटा स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु, मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता | नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |

देवी चंद्रघंटा मंत्र

ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः

देवी चंद्रघंटा का बीज मंत्र

ऐं श्रीं शक्तयै नम:

देवी चंद्रघंटा प्रार्थना

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता

देवी चंद्रघंटा ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम् ||
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम् |
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम् ||
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम् |
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम ||
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम् |
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम् ||

देवी चंद्रघंटा स्रोत्र

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम् |
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ||
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम् |
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ||
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम् |
सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ||

देवी चंद्रघंटा कवच

रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने |
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम् ||
बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम् |
स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम ||
कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च |
न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम् ||

मां 'चंद्रघंटा' जी की आरती

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम
पूर्ण कीजो मेरे काम
चंद्र समान तू शीतल दाती
चंद्र तेज किरणों में समाती
क्रोध को शांत बनाने वाली
मीठे बोल सिखाने वाली
मन की मालक मन भाती हो
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो
सुंदर भाव को लाने वाली
हर संकट मे बचाने वाली
हर बुधवार जो तुझे ध्याये
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं
शीश झुका कहे मन की बाता
पूर्ण आस करो जगदाता
कांची पुर स्थान तुम्हारा
करनाटिका में मान तुम्हारा
नाम तेरा रटू महारानी
'भक्त' की रक्षा करो भवानी।