जीवन के विपरीत हालत से बाहर आने के लिए क्या करें? | Future Point

जीवन के विपरीत हालत से बाहर आने के लिए क्या करें?

By: Acharya Rekha Kalpdev | 21-Mar-2024
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जीवन के विपरीत हालत से बाहर आने के लिए क्या करें?

वक़्त हमेशा किसी का एक जैसा नहीं रहता। आज सुख है तो कल दुःख भी आता है। वास्तव में सुख दुःख एक सिक्के के दो पहलू है। जैसे दिन के बाद रात का आना तय है, ठीक वैसे ही रात के बाद दिन का आना भी तय ही रहता है। भगवान् अनेक अवतार में इस धरा पर आये, लेकिन उनका जीवन भी सुख-दुःख से रहित न रहा। भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म जेल में हुआ, उन्हें उनके मामा ने मारने के अनेक प्रयास किये, ऐसे ही भगवान् राम जी को ईश्वरीय अवतार होने के बाद भी 14 साल का वनवास काटना पड़ा। देवी सीता को भगवान् राम जी की अर्धांग्नी होकर भी हरण का सामना करना पड़ा। ऐसे में हम समझ सकते है कि सुख-दुःख सभी के जीवन का एक हिस्सा है। इस संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसे कोई दुःख न हो। दुःख सबके जीवन में है, किसी के पास कम तो किसी के पास ज्यादा है।

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अपने ही किसी प्रारब्ध के कारण जब दुःख हमें परेशान कर दें, हम विचलित हो जाये, व्यथित हो, हालत हमारे विपरीत हो, तो ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? अक्सर मुश्किल में फंसे व्यक्ति के मन में यह विचार आता है की इस मुश्किलों के जाल से बाहर निकलने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? इस हालत में कोई सही सलाह देने वाला व्यक्ति मिल जाये तो व्यक्ति दुःख, निराशा के कुंए से बाहर निकल आता है, परन्तु यदि दुर्भाग्यवश उसे कोई सही व्यक्ति न मिल पाए तो वह अधिक निराशा में चला जाता है।

निराशा के समय में क्या करना चाहिए ? ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब लेकर आज हम यहाँ आये हैं -

  1. विपरीत समय में खाली बिल्कुल न रहें।
  2. किसी कार्य में यदि बार बार असफलता मिल रही हो तो व्यक्ति को उसे छोटे छोटे भागों में करने का प्रयास करना चाहिए।
  3. किसी भी कार्य को बीच में अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए। कार्यों को अधूरा छोड़ने लगें तो यह आदत बन जाती है।
  4. मुश्किलों से बाहर निकलने में ठीक वैसे ही जान झोंक देनी चाहिए, जैसे हिरन शेर से अपनी जान बचाने के लिए भागता है।
  5. हर हाल में सुबह उठने कि आदत डालनी चाहिए। सुबह उठकर उगते सूर्य के सामने कुछ देर योग करना चाहिए।
  6. आध्यात्मिक कथा, सत्संग को सुनें। नकारात्मक समय में मार्ग तलाशने में आध्यात्मिक कथाएं महत्वपूर्ण योगदान देती है।
  7. कभी भी नेगेटिव न सोचें। हर बात में कुछ न कुछ पॉजिटिव सोचें।
  8. तनावमुक्त रहने के लिए खाली न रहे, प्रकृति और पेड़ पौधों को समय दें।
  9. रिश्तों से जुड़े रहें। सबसे हटने से बचें।
  10. अपने भावों को लिखना शुरू करें, कंप्यूटर में अपना लेखन सुरक्षित रखें।
  11. बाहर के लोगों से जुड़ने की जगह परिवार के सदस्यों, भाई बहनों, माता-पिता से जुड़े।
  12. प्रकृति के विषय में लिखना शुरू करें, प्रकृति के पंच तत्वों में समय व्यतीत करें।
  13. पंछियों के साथ समय बिताएं।
  14. धैर्य रखें और बुजुर्गों कि सलाह पर चलें।
  15. दुःख में होने पर अपने से नीचे वाले लोगों को देखे, उनका विचार करें। उनके जीवन में कितना दुःख है। दूसरों का दुःख देखने से अपना दुःख छोटा लगने लगता है।
  16. दुःख का कारण दूसरों में तलाशने कि जगह, उसे अपने ही किसी पूर्व जन्म के कर्म की वजह मानकर स्वीकार करना चाहिए।
  17. दुःख जितना अधिक बड़ा होगा, मन उतना अधिक एकाग्रचित्त होगा। एकाग्रचित होने पर मन्त्र सिद्धि या ध्यान सहजता से प्राप्त होता है।
  18. आगे बढ़ने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल करने से बचें।
  19. बड़े से बड़े दुःख में भी अपने चेहरे की मुस्कान को नहीं खोना चाहिए।
  20. आज प्रसन्न रहिये, कल भी प्रसन्नता मिलेगी।
  21. बाधाओं को टुकड़ों में बाँट कर आगे बढिये।
  22. बदले की भावना से कभी भी मन को शांत नहीं किया जा सकता।
  23. अकेलेपन को अभिशाप नहीं वरदान मानें। अपने दोष तलाशने के लिए अकेलेपन से अच्छा कुछ नहीं।
  24. हर बात पर प्रतिक्रिया देने से बचें, हर बात का जवाब देना जरुरी नहीं, मौन रहकर आप अपनी शांति प्राप्त करते है।
  25. सुख -दुःख में एक सा रहना किसी पेड़ से सीखें, जो अपने पत्तों के गिरने का शोक नहीं करता और फल आने पर अहंकार नहीं करता।
  26. जीवन एक समुद्र है, उसमें तूफान आते ही रहते है, तूफानों के खामोश होने की प्रतीक्षा करना व्यर्थ है, तूफानों का सामना करना सीखें।
  27. अपने को बहुत अधिक महत्वपूर्ण न समझें, यह दुनिया किसी के बिना खाली नहीं होती। सबकी जगह कोई न कोई ले ही लेता है।
  28. मौन से अधिक शक्तिशाली कुछ भी नहीं। सभी ज्ञानी, संत, ऋषि बहुत जरुरी होने पर ही बोलते है। अज्ञानी लोग ही अधिक बोलते है।
  29. अपनों की आलोचना दूसरों के सामने करने से बचें, इससे रिश्ते ख़राब होते है, जिन्हें सुधारा नहीं जा सकता।
  30. कल्पनाओं से निकल कर वास्तविकता को स्वीकार करें।
  31. जो बीत गया उसमें जीने की जगह आज में जिए, कल अपने आप बेहतर हो जाएगा।
  32. जो लोग विपरीत हालत में सफल हुए, उनकी जीवनी को पढ़ें, और सीखें।
  33. हीरा भी जब तक हीरा नहीं बनता जब तक की उसे तराशा नहीं जाता। तराशे जाने के काल को संघर्ष का काल कहा जा सकता है।
  34. विपरीत हालत हमें मजबूत बनाने के लिए आते है, सोना भी आग में जलकर ही कुंदन बनता है।
  35. जीवन का प्रत्येक दिन अनमोल है। ईश्वर के दिए जीवन को दुखी होकर व्यर्थ न करें।
  36. हर रात्रि सोने से पहले अपने से सवाल करें, कि आज मैंने क्या अच्छा किया और अपने कौन से दोष को दूर किया।
  37. हालत को बड़ा समझने की जगह छोटा समझे और अपने को समझएं की हिम्मत रखने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं है।
  38. ईश्वर पर भरोसा रखें, ईश्वर के फैसले हमसे ज्यादा बेहतर होते है।
  39. अपनी गलतियों को स्वीकार करें, दूसरों की उन्नति से परेशान न हो।
  40. सब में एक विशेष गुण होता है, सब खास हैं। अपने को कम न आंकें।
  41. मुश्किल समय की वजह पर विचार करें, अपनी गलतियों को स्वीकार करें।
  42. दूसरों की बातों से आहात होने की जगह, अनदेखा करना सीखें।
  43. मन की शांति खोने से बड़ा नुकसान कोई नहीं। प्रसन्न रहने और तनाव को अपने पर हावी न होने दें।
  44. मेहनत और सत्यता का मार्ग न छोड़े, सफलता एक दिन जरूर मिलेगी।
  45. जीवन शैली में सुधार करें, भोजन को सुधारे, और नशे से बचें।
  46. निराश लोगों से दूर रहें।
  47. आज के दिन को अंतिम दिन मानकर जियें।
  48. धैर्य के साथ प्रयास करते रहना सफलता का अचूक मंत्र है।
  49. हालत से अगर लड़ नहीं सकते तो हालत से भागे नहीं, हालत में बने रहना ही बहुत है।
  50. अपने पर विशवास रखें, दुनिया के विश्वास से ज्यादा, आपका अपने पर विश्वास मायने रखता है।
  51. योग, संगीत और ध्यान किसी भी निराशा से बाहर आने का सबसे बड़ा और सबसे बजट का साधन है।

सकारात्मक रहने के लाभ

अधिकतर जितनी भी बीमारियां है, अधिकतर सभी शरीर की कम और मन की अधिक है। एक सोच बदलने से पूरा जीवन बदला जा सकता है। जीवन एक ही है, इसे आप चाहे प्रसन्न होकर जिए या दुखी होकर व्यर्थ करें। यह आप पर है। अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, मुख पर मुस्कान सजाएं, दूसरों की मदद करते हुए इस जीवन को सार्थक करें।

  • सकारात्मक रहने से व्यक्ति को रोग कम सताते है।
  • इससे आयु में वृद्धि होती है।
  • अवसाद न रहने से व्यक्ति प्रसन्नचित्त रहता है।
  • संकट में धैर्य बना रहता है।
  • रोगों से लड़ने की क्षमता मजबूत होती है।
  • मनोबल उच्च रहता है, आत्मविश्वास भी उच्च रहता है।
  • हृदय पर दबाव कम रहने से आंतरिक अंग बेहतर काम करते है।
  • जीवन शैली नियमित रहने से सोना, उठना और खाना समय पर होता है। जिससे स्वस्थ्य अनुकूल रहता है।
  • पॉजिटिव रहकर हम तनावपूर्ण हालत का बेहतर ढंग से सामना कर पाते है।

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