नवरात्रि में कौन का पाठ करें कि - सब कष्ट दूर हों | Future Point

नवरात्रि में कौन का पाठ करें कि - सब कष्ट दूर हों

By: Acharya Rekha Kalpdev | 01-Apr-2024
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नवरात्रि में कौन का पाठ करें कि - सब कष्ट दूर हों

नवरात्रि को देवी शक्ति का पर्व कहा जाता है। देवी नवरात्रों को शक्ति संचय का पर्व कहा जाता है। माता के नौ रूपों को दिव्य नवरात्रियाँ माना जाता है। नवरात्रि का दिव्य पर्व नौ दिनों तक चलता है। इन नौ दिनों में देवी के एक रूप की पूजा कि जाती है। नवरात्रि में देवी के नौ अवतारों की आराधना, व्रत-उपवास, कवच का पाठ किया जाता है। आध्यात्मिक उन्नति और शक्ति संचय करने के लिए नौ देवियों का नवरात्रि में पूजन किया जाता है। देवी नवरात्रों में दुर्गा कवच और दुर्गा सप्तशती का पाठ नियमित रूप से करने पर देवी अपने आराधक की सभी मनोकामना पूर्ण करती है और उसके शत्रु शांत रहते है।

दुर्गा कवच क्या है

धर्म पुराणों में जितने भी कवचों का वर्णन है, उसमें हनुमान कवच और दुर्गा कवच दोनों सबसे उत्तम और श्रेष्ठफल देने वाले है। दुर्गा कवच और हनुमान कवच दोनों कवच बहुत शक्तिशाली कवच है। दुर्गा कवच को अचूक और दुर्लभ पाठ की श्रेणी में रखा जाता है। १८ पुराणों में से सबसे महत्वपूर्ण पुराण मार्केंडय पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा सप्तसती पाठ का वर्णन है, और दुर्गा सप्तसती में दुर्गा कवच है। इस प्रकार दुर्गा कवच, दुर्गा सप्तसती से लिया गया एक कवच है। दुर्गा सप्तसती का पूरा पाठ करने से दुर्गा कवच का स्वत: हो जाता है। सिर्फ दुर्गा कवच का पाठ भी किया जाता है। दुर्गा कवच अपने आप में एक बहुत बड़ा पाठ है। इसका पाठ करने से बड़े से बड़े काम पूर्ण होते है। इस संसार का ऐसा कोई कार्य नहीं है जो दुर्गा कवच का पाठ करने से पूरा न हो। बशर्ते की आराधक ने नियम और श्रद्धा के साथ कवच का पाठ किया हो।

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दुर्गा कवच कुल ४७ श्लोकों का संग्रह है। इसके बाद दुर्गासप्तशती में ९ श्लोक आते है, जिसमें इस पाठ को पढ़ने से मिलने वाले फलों का उल्लेख है। दुर्गा कवच के विषय में कहा गया है की इसे पढ़ने से ईश्वर की कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है। इस कवच में मुख्य रूप से देवी पार्वती के नौ रूप जिन्हें हम नवदुर्गा के नाम से जानते है, महिमा का गुणगान किया गया है। देवी दुर्गा कवच का उच्चारण उच्चस्वर में करने पर और अधिक श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है।

मां दुर्गा कवच पाठ का महत्व

हनुमान कवच और दुर्गा कवच दोनों कवचों को अमोघ कवच कहा गया है। इनका पाठ करना साधक को कभी भी खाली हाथ नहीं लौटाता है। जो भी साधक इन कवचों का पाठ करता है, उसे देवी आशीर्वाद स्वरुप अवश्य कुछ न कुछ देती जरूर है, वह साधक कभी देवी के दरबार से रिक्त हाथों से नहीं लौटता है। दुर्गा कवच को नकारात्मक शक्तियों से रक्षा का सुरक्षा कवच भी कहा जाता है। दुर्गा कवच के श्लोकों/मन्त्रों में नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव को सकारात्मक शक्तियों में बदलने की ऊर्जा समाहित है। जो भक्त देवी दुर्गा के कवच का पाठ नियमित रूप से करता है वह कभी भी निराश और उदास नहीं होता है। आलस्य उसे कभी परेशान नहीं करता है। शत्रु उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते है। वैसे तो दुर्गा कवच का पाठ कभी भी किया जा सकता है। परन्तु इसे विशेष रूप से नवरात्रि में करने से विशेष लाभ मिलता है।

दुर्गा कवच अपने आराधक को रोग, शोक और शत्रुओं से बचाता है। इस पाठ को करने से आराधक के चारों और सुरक्षा का एक अभेद्य चक्र बना देत.

दुर्गा कवच का पाठ करने से क्या लाभ मिलता है?

वैदिक मंत्रों में ऊर्जा और शक्ति का संग्रह होते है। जिस भी मन्त्र को नियम और नियमित रूप से पढ़ा जाता है। उस मंत्र में समाहित शक्तियां जागृत हो जाती है। इन्हीं में से एक पाठ है दुर्गा कवच का पाठ। दुर्गा कवच का पाठ व्यक्ति को निराशा और अवसाद से निकाल कर उत्साह और सकारात्मकता की और लेकर जाता है। दुर्गा कवच पाठ को अचूक पाठ कहा गया है। सही उच्चारण और सही नियम से जो व्यक्ति इसका पाठ करता है। दुर्गा कवच दुर्गा सप्तसती पाठ का ही एक स्तोत्र है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी ने ही मार्केंडय ऋषि को ४७ सुनाया जाता है। जीवन जब विकट हालत से गुजर रहा हो, कोई मार्ग दिखाई न दे रहा हो तो व्यक्ति को दुर्गा कवच का पाठ करना चाहिए।

दुर्गा कवच का महात्म्य

दुर्गा कवच में देवी के नौ रूपों की महिमा का गुणगान किया है। देवी पार्वती के नौ रूपों में देवी की आराधना से क्या क्या मिलता है। ब्रह्मा जी ने ४७ श्लोकों में देवी कवच पढ़कर माता का आशीर्वाद लेने का उल्लेख किया है। नवरात्रि में दुर्गा कवच का नित्य पाठ करने से नवदेवियों की कृपा प्राप्त होती है। दुर्गा कवच निराशा और हताशा से बाहर निकालने का ब्रह्मास्त्र है। दुर्गा कवच वास्तव में शक्तिशाली मन्त्रों का संग्रह है,जिन्हें एक साथ पढ़ने पर नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। कवच का अर्थ सुरक्षा चक्र है। मन्त्रों के समूह के रूप में दुर्गा कवच अपने आराधक की रक्षा करता है।

दुर्गा कवच का पाठ कैसे करना चाहिए ?

दुर्गा कवच का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में करना चाहिए। यह पाठ क्योंकि दुर्गासप्तसती पाठ का भाग है इसलिए दुर्गा कवच को दुर्गासप्तसती पाठ से ठीक पहले और दुर्गा सप्तसती पाठ के बाद में पढ़ना चाहिए। दुर्गा कवच नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के दिन से शुरू करें, और लगातार नौ दिन नित्य पढ़ते हुए नवमी तिथि, नवम नवरात्रि तक पढ़ें। दुर्गा कवच का पाठ करने से पहले साधक को सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। सुबह स्नान और नित्य क्रियाओं से मुक्ति होने के बाद घर के मंदिर में गणपति पूजन करने के बाद देवी पूजन करना चाहिए।

  • देवी पूजन के बाद दुर्गा कवच का पाठ करना अत्यंत लाभकारी रहता है। दुर्गा कवच का पाठ नवरात्रि में करने से निराशा का नाश होता है।
  • शरीर में एक नई ऊर्जा का वास रहता है।
  • उत्साह, जोश और उमंग की प्राप्ति के लिए भी दुर्गा कवच का पाठ सहयोगी है।
  • दुर्गा कवच पराशक्तियों से मुक्ति देता है।
  • दुर्गा कवच पढ़ने से जीवन का विकट से विकट संकट दूर होता है।
  • जिन व्यक्तियों की कुंडली में असमय मृत्यु का योग बना हो उन व्यक्तियों को दुर्गा कवच अवश्य पढ़ना चाहिए।
  • ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से जो व्यक्ति दुर्गा कवच का पाठ करता है। उसकी अकाल मृत्यु कभी नहीं होती है।
  • परिवार का कोई सदस्य यदि गंभीर रूप से बीमार हो, आसाध्य रोगों से जूझ रहा हो, ऐसे घर में परिवार के किसी एक सदस्य को दुर्गा कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए।
  • जन्मकुंडली में ६,८,१२ भाव अर्थात त्रिक भावों से जुडी ग्रह महादशा प्रभावी हो तो जातक को दुर्गा कवच का पाठ पढ़ना शुरू कर देना चाहिए।
  • व्यर्थ के कोर्ट कचहरी के मामले सक्रीय हो और जीवन में तनाव बढ़ता ही जा रहा हो, तो व्यक्ति को दुर्गा कवच का पाठ नित्य करने से लाभ मिलता है।
  • यदि जीवन में विरोधी और शत्रु परेशानी दे रहे हो तो उन व्यक्तियों का दुर्गा कवच पाठ करना एक सुरक्षा कवच का काम करता है।

दुर्गा कवच का पाठ करने की अवधि में क्या नहीं करना चाहिए?

  • दुर्गा कवच का पाठ नवरात्रि के समय में करना अतिशुभ माना जाता है।
  • दुर्गा कवच का पाठ शुद्ध होने के बाद ही करना चाहिए।
  • पाठ से पहले स्नान और स्वच्छ वस्त्र जरूर धारण करने चाहिए।
  • कवच का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध होना आवश्यक है।
  • शुद्ध आचार विचार और व्यवहार भी शुद्ध रखना चाहिए।
  • साधक को पाठ के दिनों में सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
  • इन दिनों में मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज और तामसिक भोजन करना बिलकुल वर्जित है।
  • दुर्गा कवच का पाठ करने के दिनों में साधक को ब्रह्मचर्य का पालन भी जरूर करना चाहिए।
  • दुर्गा कवच देवी कवच है इसलिए इन दिनों में देवी, शक्ति और नारियों का मान-सम्मान पूर्ण रूप से करना चाहिए।
  • छल, कपट, लोभ, लालच, और द्वेष जैसे विकारों को दूर रख कर ही दुर्गा कवच का पाठ करना चाहिए।
  • दुर्गा कवच माता दुर्गा का कवच है इसलिए मातृ भाव से ही पाठ करना चाहिए। जैसे आप अपनी मां को यह पाठ सुना रहे हैं। देवी आराधना हो या देव आराधना सभी में श्रद्धा और विश्वास का होना आवश्यक है।
  • र्गा कवच का पाठ स्वच्छ स्थान पर ही करना चाहिए।

माँ दुर्गा कवच

॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच

ॐ यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्। यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥

ब्रह्मोवाच

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्। देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥३॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे। विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे। नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥७॥

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते। ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥८॥

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना। ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना॥९॥

माहेश्‍वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना। लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥१०॥

श्‍वेतरुपधरा देवी ईश्‍वरी वृषवाहना। ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता॥११॥

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः। नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥१२॥

दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः। शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥१३॥

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च। कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥१४॥

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च। धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥१५॥

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे। महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥१६॥

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि। प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥१७॥

दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी। प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥१८॥

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी। ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥१९॥

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना। जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥२०॥

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता। शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥२१॥

मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी। त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥२२॥

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी। कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥२३॥

नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका। अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥२४॥

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका। घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥२५॥

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला। ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥२६॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी। स्कन्धयोः खङ्‍गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥२७॥

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च। नखाञ्छूलेश्‍वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्‍वरी॥२८॥

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी। हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥२९॥

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्‍वरी तथा। पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥३०॥

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी। जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥३१॥

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी। पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥३२॥

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्‍चैवोर्ध्वकेशिनी। रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्‍वरी तथा॥३३॥

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती। अन्त्राणि कालरात्रिश्‍च पित्तं च मुकुटेश्‍वरी॥३४॥

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा। ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥३५॥

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्‍वरी तथा। अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥३६॥

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्। वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥३७॥

रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी। सत्त्वं रजस्तमश्‍चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥३८॥

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी। यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥३९॥

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके। पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥४०॥

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा। राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥४१॥

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु। तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥४२॥

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः। कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥४३॥

तत्र तत्रार्थलाभश्‍च विजयः सार्वकामिकः। यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्‍चितम्। परमैश्‍वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥४४॥

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः। त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥४५॥

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् । यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥४६॥

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः। जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः। ४७॥

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः। स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥४८॥

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले। भूचराः खेचराश्‍चैव जलजाश्‍चोपदेशिकाः॥४९॥

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा। अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्‍च महाबलाः॥५०॥

ग्रहभूतपिशाचाश्‍च यक्षगन्धर्वराक्षसाः। ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥५१॥

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते। मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥५२॥

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले। जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥५३॥

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्। तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥५४॥

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्। प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥५५॥

लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥५६॥

इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्।


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