नवरात्री के तीसरे दिन इस प्रकार कीजिये मां चन्द्रघण्टा की पूजा विधि एवं जानिये कथा व देवी के स्वरूप का महत्व।
By: Future Point | 05-Sep-2019
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नवरात्री के दौरान तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना की जाती है, माँ पार्वती का सुहागिन स्वरुप है मां चन्द्रघण्टा. इस स्वरुप में माँ के मस्तक पर घंटे के आकार का चंद्रमा सुशोभित है इसीलिए इनका नाम चन्द्र घंटा पड़ा. माँ चंद्रघंटा की आराधना करने वालों का अहंकार नष्ट होता है एवं उनको असीम शांति और वैभवता की प्राप्ति होती है. माँ चंद्रघंटा के ध्यान मंत्र, स्तोत्र एवं कवच पाठ से साधक का मणिपुर चक्र जागृत होता है जिससे साधक को सांसारिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है.
मां चन्द्रघण्टा के स्वरूप का महत्व-
मां चंद्रघंटा को शांतिदायक और कल्याणकारी माना जाता है. माता चंद्रघंटा का शरीर स्वर्ण के समान उज्ज्वल है, इनके दस हाथ हैं. दसों हाथों में खड्ग, बाण आदि शस्त्र सुशोभित रहते हैं. इनका वाहन सिंह है. मां दुर्गा जी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है, नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है, इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है, माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं, अतः ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं, मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं, इनकी आराधना सद्यः फलदायी है, माँ भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं, इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है, इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों को प्रेतबाधा से रक्षा करती है।
माता चंद्रघंटा की कथा-
देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला. असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवाताओं के इंद्र. महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा. इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए. देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंधक बनाकर स्वयं स्वर्गलोक का राजा बन गया, देवाताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण अब देवता पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं और स्वर्ग में उनके लिए स्थान नहीं है. यह सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध आया. क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई. देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई. यह दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी. तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ. भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया. इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र शस्त्र सजा दिए. इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया. सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया. देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं. उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल आ गया है. महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा. अन्य देत्य और दानवों के दल भी युद्ध में कूद पड़े. देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया. इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर दिया. इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से अभयदान दिलाया.
माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि -
- माँ चंद्रघंटा की पूजा लाल वस्त्र धारण करके करना श्रेष्ठ होता है।
- माँ चन्द्रघण्टा को लाल पुष्प,रक्त चन्दन और लाल चुनरी समर्पित करना उत्तम होता है।
- मां चन्द्रघण्टा को केसर और केवड़ा जल से स्नान कराया जाना चाहिए।
- मां चन्द्रघण्टा को सुनहरे या भूरे रंग के वस्त्र पहनाएं और खुद भी इसी रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
- मां चन्द्रघण्टा को केसर-दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाया जाना चाहिए।
- मां चन्द्रघण्टा को सफेद कमल और पीले गुलाब की माला अर्पण करना चाहिये।
- मां चन्द्रघण्टा को पंचामृत, चीनी व मिश्री का भोग लगाया जाना चाहिए।
- मां का आर्शीवाद पाने के लिए इस मंत्र का 108 बार जाप करने से फायदा मिलेगा।
“या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।“
- इस दिन इस चक्र पर “रं” अक्षर का जाप करने से मणिपुर चक्र मजबूत होता है और भय का नाश होता है
मां चंद्रघंटा के मंत्र-
देवी मंत्र: ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
इस दिन सांवली रंग की ऐसी विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए, भोजन में दही और हलवा खिलाएँ और भेंट में कलश और मंदिर की घंटी भेंट करना चाहिए।
मां चंद्रघंटा का ध्यान मंत्र-
3वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
मां चंद्रघंटा का स्तोत्र पाठ-
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥
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