ज़िंदगी को ज़हर बना देता है विष योग! जानिए, कुंडली के 12 भावों में इसका प्रभाव व उपाय

By: Future Point | 20-Mar-2020
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ज़िंदगी को ज़हर बना देता है विष योग! जानिए, कुंडली के 12 भावों में इसका प्रभाव व उपाय

ज्योतिष सास्त्र में अनेक प्रकार के योग बनते हैं। ये योग अगर शुभ ग्रहों के साथ बन रहे हों तो शुभ माने जाते हैं। लेकिन अगर किसी अशुभ ग्रह की वजह से कोई योग बन रहा हो, तो वह अशुभ माना जाता है। विष योग एक ऐसा ही योग है। कुंडली में अगर यह योग हो तो व्यक्ति की ज़िंदगी ज़हर बन जाती है। उसे अपनी पूरी ज़िंदगी अभावों में गुज़ारनी पड़ती है। इसका असर न केवल जातक पर बल्कि उसके पूरे परिवार पर पड़ता है। तो आइए, जानते हैं, विष योग क्या होता है? यह कब बनता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?

 विष योग क्या है?

ज्योतिष शास्त्र में शनि और चंद्रमा की युति को अशुभ माना जाता है। यदि ऐसा हो तो उसे विष योग कहते हैं। किसी जातक की कुंडली में अगर शुक्र और चंद्रमा एक साथ हों या चंद्रमा पर शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो विष योग बनता है। विष योग के कारण व्यक्ति को अनेक तरह के कष्ट उठाने पड़ते हैं। उसे शिक्षा और नौकरी प्राप्त करने में दिक्कत होती है। उसके पारिवारिक तथा वैवाहिक जीवन में अनेक समस्याएं आती हैं। बार-बार आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। सेहत भी अच्छी नहीं रहती। कुल मिलाकर यह समझ लीजिए, जिसकी कुंडली में यह योग हो उसकी ज़िदगी नर्क बन जाती है। लेकिन इसका एक सकारात्मक पक्ष भी है, जो उतना भी सकारात्मक नहीं है। माना जाता है कि इस युति में व्यक्ति न्यायप्रिय, मेहनती और ईमानदार हो जाता है। लेकिन साथ ही उसमें वैराग्य भाव का भी जन्म होता है जिसके कारण उसे मेहनत के अनुरूप फल नहीं मिलते!  

 विष योग कब बनता है?

कुंडली में विष योग इन स्थितियों में बनता है:

  • कुंडली के किसी भी भाव में अगर शनि और चंद्रमा एक साथ हों तो विष योग बनता है।
  • गोचर के दौरान भी विष योग बनता है। जब-जब शनि चंद्रमा के ऊपर से या चंद्रमा शनि के ऊपर से निकलता है तब-तब विष योग बनता है।
  • चंद्रमा न केवल शनि के साथ बल्कि राहु के साथ भी विष योग बनाता है। गोचर करते वक्त जब भी चंद्रमा शनि की राशि या राहु की राशि में प्रवेश करता है तब विष योग बनता है।
  • कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार चंद्र पर शनि की दृष्टि पड़ने से भी विष योग बनता है। लग्न में अगर चंद्रमा है और चंद्रमा पर तृतीय, सप्तम व दशम भाव से शनि की दृष्टि है, तो भी विष योग बनता है।
  • कर्क राशि में अगर शनि पुष्य नक्षत्र में हों और मकर राशि में चंद्र श्रवण नक्षत्र में हों या दोनों एक दूसरे के विपरीत स्थिति में हों और एक दूसरे को देख रहे हों तब भी विष योग बनता है।
  • अगर शनि की दशा और चंद्र प्रत्यंतर हो अथवा चंद्र की दशा और शनि प्रत्यंतर हो तब भी विष योग की स्थिति बनती है।
  • राहु यदि कुंडली में अष्टम भाव में हों और मेष, कर्क, सिंह और वृश्चिक लग्न में शनि हो तब भी विष योग बनता है। 

कुंडली में शनि-चंद्र की इन स्थितियों में विष योग का प्रभाव कम हो जाता है:

  • कुंडली में यदि चंद्रमा बलवान हो और शनि कमज़ोर स्थिति में हो तो विष योग का प्रभाव कम हो जाता है।
  • युति में डिग्री भी देखी जाती है। अगर शनि और चंद्रमा एक दूसरे से 12 अंश दूर हैं तो भी विष योग का प्रभाव कम हो जाता है।

 हर माह बनता है विष योग

गोचर चक्र में चंद्रमा हर माह कम से कम एक बार तो ज़रूर शनि के साथ होता है इसलिए प्रत्येक माह विष योग बनता है। उस समय चंद्रमा जिस स्थिति में शनि के साथ युति करता है व्यक्ति को उसके अनुसार कष्ट झेलना पड़ता है। मार्च माह में विष योग बुधवार, 18 मार्च (रात आठ बजे से) से 21 मार्च को (प्रात: पांच बजे) तक रहेगा। 

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 विष योग का 12 भावों में प्रभाव

व्यक्ति की कुंडली में जिस स्थान पर विष योग बनता है उसके आधार पर ही व्यक्ति को कष्ट भोगना पड़ता है:

  • पहला भाव: यदि जातक के लग्न स्थान या भाव में शनि-चंद्र का विष योग बनता है तो व्यक्ति शारीरिक रूप से बेहद दुर्बल होता है। वह हमेशा रोग ग्रस्त रहता है और उसका जीवन तंगहाली में बीतता है। लग्न भाव का संबंध सीधे सप्तम भाव से होता है इसलिए वैवाहिक जीवन भी दुखमय रहता है।
  • दूसरा भाव: दूसरे भाव में शनि-चंद्र की युति होने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती। उसे धन का नुकसान उठाना पड़ता है।
  • तीसरा भाव: कुंडली का तीसरा भाव साहस, मानसिक संतुलन और छोटे भाई-बहनों से संबंधित होता है। इसलिए अगर इस भाव में विष योग बनता है तो व्यक्ति भ्रम की स्थिति में रहता है जिसके कारण वह खुद को निर्णय लेने में अक्षम महसूस करता है।  उसे मानसिक तनाव झेलना पड़ता है और भाई-बहनों से भी कष्ट मिलता है।
  • चौथा भाव: चौथा भाव मातृ-सुख से संबंधित है इसलिए इस भाव में शनि-चंद्र की युति से जातक को माता का सुख प्राप्त नहीं होता।
  • पांचवां भाव: अगर पांचवें भाव में शनि-चंद्र की युति हो तो व्यक्ति को संतान शुख नहीं मिलता है। यह बुद्धि का भाव भी है इसलिए व्यक्ति की विवेकशीलता समाप्त हो जाती है।
  • छठा भाव: विष योग यदि छठे भाव में होता है तो जातक के अनेक शत्रु होते हैं। वह ज़िंदगी भर कर्ज़ में डूबा रहता है।
  • सातवां भाव: कुंडली का सातवां भाव दांपत्य सुख से संबंधित है। अगर इस भाव में विष योग हो तो पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े होते हैं। कभी-कभी स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि तलाक तक कि नौबत आ जाती है।
  • आठवां भाव: आठवें भाव में बना विष योग जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट देता है। उसके साथ दुर्घटनाएं बहुत होती हैं।
  • नौवां भाव: इस भाव में यदि विष योग बने तो जातक भाग्यहीन होता है। उसे गुरुओं का साथ और पिता का सुख नहीं मिलता। ऐसा व्यक्ति नास्तिक होता है।
  • दसवां भाव: दसवें भाव में विष योग बनने पर जातक के पद-प्रतिष्ठा में कमी आती है। उसे मनचाही नौकरी नहीं मिलती।
  • ग्यारहवां भाव: ग्यारहवें भाव में बना विष योग जातक के साथ बार-बार एक्सीडेंट करवाता है। उसके आय के साधन सीमित होते हैं।
  • बारहवां भाव: कुंडली का बारहवां भाव खर्चे और नुकसान का भाव है। अगर इस भाव में शुक्र-चंद्र की युति हो तो आय से अधिक खर्च होता है।          

 विष योग से बचने के उपाय

विष योग क्योंकि चंद्रमा और शनि की युति से बनता है इसलिए शनि और चंद्रमा को शांत करने के लिए निम्न उपाय करें:  

  • शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार का दिन बेहद अहम होता है। शनिवार या शनि अमावस्या के अवसर पर सूर्यास्त के बाद शनि देव की प्रतिमा पर तेल चढ़ाएं। सरसों के तेल में काली उड़द या काला तिल मिलाकर दीया जलाएं।
  • शनि देव के बीज मंत्र- ऊं शनैश्चराय नम: का जाप करते हुए उसके प्रत्येक अक्षर को आक के पत्ते पर काजल से लिखें। ये मंत्र 10 आक के पत्तों पर लिखा जाएगा। उसके बाद इन पत्तों की एक माला बनाएं और शनि देव की प्रतिमा को अर्पित करें। 
  • शनि देव के मंदिर में गुड़, गुड़ से बनी रेवड़ी व तिल के लड्डू चढ़ाएं और वितरित करें। गाय, कौओं और कुत्तों को भी दान करें। ऐसा करने से विष योग का विषाक्त प्रभाव कम होता है।
  • पूर्णमासी के दिन भगवान शिव शंकर के मंदिर में रुद्राभिषेक पूजा (Rudrabhishek Puja) करवाने से भी विष योग से पीड़ित जातक को राहत मिलती है।
  • शिव या हनुमान मंदिर में पानी से भरा घड़ा दान करने से विष योग का प्रभाव कम होता है। 
  • महामृत्युंजय मंत्र व्यक्ति को हर कष्ट से राहत दिलाता है। इसलिए शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार को यदि रुद्राक्ष माला से इस मंत्र का कम से पांच बार जाप करें तो विष योग के प्रभाव से बचा जा सकता है।
  • बड़े-बुज़ुर्गों के आशीर्वाद से किसी भी विपदा का सामना किया जा सकता है। इसलिए यह नियम बनाएं कि नित्य आपको अपने माता-पिता और घर के बड़े-बुज़ुर्गों के पैर छूने हैं और उनकी सेवा करनी है।
  • शनि को शांत करने के लिए आप शनि शांति हनुमान पूजा (Shani Shanti Hanuman Puja) करवा सकते हैं।
  • शनिवार के दिन कुएं में दूध अर्पित करने से भी शनि की कृपा प्राप्त होती है।
  • भगवान हनुमान को संकट मोचन भी कहा जाता है। इसलिए भगवान हनुमान को प्रसन्न करके भी आप विष योग के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं। हनुमान जी को शुद्ध घी और सिंदूर बहुत प्रिय है। इसलिए उनकी प्रतिमा पर चोला चढ़ाएं और घी व सिंदूर अर्पित करें। उनके दाएं पैर के सिंदूर को अपने माथे पर लगाएं।
  • इसके अलावा आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।

 विष योग का निदान जातक की कुंडली में उसकी स्थिति पर निर्भर करता है। इसलिए किसी भी उपाय को प्रयोग में लगाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से सलाह लेना ज़रूरी है। फ्यूचर पॉइंट पर आप भारत के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से बात कर सकते हैं जिन्हें अपने कार्यक्षेत्र में अच्छा-खासा अनुभव है। इसके लिए आप हमारी सेवा Talk to Astrologer का प्रयोग कर सकते हैं।


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