शकुन - लोकोपयोगी विज्ञान

By: Future Point | 01-May-2019
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शकुन - लोकोपयोगी विज्ञान

सुबह के सारे काम जैसे तैसे निपटा कर गीता आज घर से आफिस के लिए तैयार होकर निकल ही रही थी कि काली बिल्ली रास्ता काट गई। गीता झुंझला कर रह गई, कि ना जाने आज का सारा दिन कैसा रहने वाला हैं। उसे ख्याल आया कि आज पहले सुबह घड़ी का अलार्म नहीं बजा, जिसकी वजह से लेट आंख खुली। स्नान करने गई तो पानी खत्म हो गया। नाश्ता तैयार करने गई तो चाय बर्तन से बाहर निकल गई और फिर से सारा किचन साफ करना पड़ा, एक के बाद एक आज कुछ न कुछ परेशानियां आ रही थी। ऐसे में गीता अब और परेशान नहीं होना चाहती थी, इसलिए उसने बिल्ली के बाद किसी ओर के जाने की बाद ही जाना ठीक समझा। गीता के इस दिन की घटनाएं काफी हद तक हमारे जीवन में होने वाले किसी दिन की घट्नाओं के जैसी ही है। हम सभी के साथ भी कई बार ऐसी घटनाएं होती हैं जिन्हें हम ना मानते तो नहीं हैं परन्तु उन्हें अनदेखा कर आगे भी नहीं पड़ना चाहते है।

हम चाहे सौ बार यह कहें कि शुभ-अशुभ कुछ नहीं होता, परन्तु किसी खास काम पर जा रहे हों तो हम ईश्वर का नाम लेना नहीं भूलते। इस प्रकार की घटनाएं बताती है कि हमारे आसपास की ऊर्जा शक्ति अपने कुछ संकेतों के माध्यम से हमें सचेत करती है कि आने वाले समय में शुभ-अशुभ घटित होने वाला है। आवश्यकता है सिर्फ ऐसे गूढ़ संकेतों पर ध्यान देना है। शकुन-अपशकुन शास्त्र आज की विद्या नहीं हैं बल्कि इसका उल्लेख द्वापर युग, त्रेतायुग और कलयुग में अनेक धर्मशास्त्रों एवं पौराणिक कथाओं में अनेक स्थानों पर देखने में आया है।

प्रत्येक व्यक्ति की यह कामना होती है कि काम करने हुए कोई विघ्न ना आए और कार्यसिद्धि हो। इसी भावना को ध्यान में रखते हुए कार्य किए जाते है। हमारे आसपास के वातावरण में घटित होने वाले शकुन-अपशकुन हमें संकेत देते है कि हमारे जीवन में भविष्य में क्या घटित होने वाला है।

सुनने में यह बातें एक अंधविश्वास से अधिक कुछ नहीं लगाती, इतिहास, शास्त्र और पौराणिक ग्रंथों के पन्ने उलटने पर मालूम होता है की महाभारत और रामायण जैसे- अनेकोनेक धर्म ग्रंथों में इनका वर्णन मिलता है। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है की शकुन -अपशकुन शास्त्र मात्र किवदंतियां पर आधारित नहीं है अपितु अनुभव आधारित शास्त्र है। ध्यान देने योग्य बात यह है की वैदिक ज्योतिष शास्त्र की तरह यह शास्त्र भी देश, काल, पात्र के नियमों पर कार्य करता है। जैसे - किसी गाँव में यदि कौओं की बहुलता हो तो उस गाँव में कौवे का कांव कांव करना व्यर्थ होगा, ऐसे में कोई मेहमान नहीं आएगा। शकुन अशुभ हो तो व्यक्ति को हानि, नुक़सान, असफ़लता, पतन और कार्यसिद्धि के हानि समझाना चाहिए, इसके विपरीत यदि शकुन शुभ हो तो व्यक्ति को लाभ, सफलता और काम बनाता है।

उदाहरण के लिए - महाभारत कथा में दानवीर कर्ण जब युद्ध करने के लिए जा रहे थे तो उस समय प्रकति ने कुछ अशुभ होने के संकेत अपशकुन के रुप में दिए थे। संकेत के रुप में अचानक मेघ गर्जना, तेज हवाएं और आसपास के पशु-पक्षियों का प्रतिकूल व्यवहार था। परिणामस्वरुप युद्ध में कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया जो अंतत: उसकी मॄत्यु का कारण बना।

रामायण में भी गोस्वामी तुलसीदास जी ने अनेक स्थानों पर शकुन-अपशकुन के बारे में बताया है। 2 रामायण में भी गोस्वामी तुलसीदास जी ने अनेक स्थानों पर शकुन-अपशकुन के बारे में बताया है। जैसे- भगवान राम के राजा बनने की घोषणा होते समय श्रीराम जी का दायां अंग फड़कने लगा था। जो बाद में वनवास के रुप में सामने आया।

आज का बुद्धिजीवी व्यक्ति शकुन-अपशकुन का जानेअनजाने प्रयोग तो करता है परन्तु उसपर विश्वास नहीं करता है। इसे बेकार की बातें कह कर हंसकर टाल देता है। इस विषय में कोई दोराय नहीं है की ऐसे व्यक्ति विश्वास न करते हुए भी उनको मानते अवश्य है। घर से निकलते समय कोई छिक्क दें तो एक पल को आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं होती और मन में कुछ गलत न हो जाए इसका विचार आ ही जाता है। आप भी दैनिक जीवन में ऐसे अपशकुनों का सामना और बचाव करते ही होंगे। अनेक बार अनुभव में पाया गया की घर से निकले बिल्ली रास्ता काट गयी, हम रुके नहीं तो वह दिन खराब रहा तो , एक बार यह ख्याल आ ही जाता है की बिल्ली रास्ता काट गयी थी, उसी का परिणाम है की आज काम नहीं बना।

ज्योतिष शास्त्र की तरह शकुन शास्त्र भी मानवकल्याण से सम्बंधित लोकोपयोगी विज्ञानं है। ज्योतिष शास्त्र विद्या में छुपे संकेतों को समझने के लिए एक योग्य ज्योतिषी की सहायता लेनी होती है जबकि शकुन शास्त्र सरल, सहज और दैनिक जीवन से जुड़ा होना के कारण आमजन के लिए अधिक व्यावहारिक है। इस शास्त्र की यह विशेषता है की इसे प्रयोग करने के लिए विशेष स्मरणशक्ति, परीक्षण आवश्यकता नहीं होती है। प्रारम्भ में इस शास्त्र को विशेष रूप से यात्रा पर जाने के लिए योग किया जाता था। समय के साथ इसके विभिन्न भेद हो गए। जिसमें पशु, पक्षी, जलचर, कीट, वृक्षादि, प्रकृति बदलाव को भी इसमें प्रयोग किया जाने लगा। इस शास्त्र के द्वारा किसी विशेष तत्व को निमित्त माना जाता और उसके आधार पर भविष्य में होने वाली घटनों का पूर्वानुमान लगाया जाता है। शास्त्रों में सात प्रकार के निमित्त के विषय में कहा गया है। इसमें अंग लक्षण, स्वप्न, स्वर, भूमि, अंतरिक्ष, उत्पात और शकुन है। इसमें शकुन शास्त्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

किसी भी कार्य में कार्यसिद्धि की प्राप्ति के लिए शकुन का प्रयोग किया जाने लगा है। वैसे तो सभी कार्यों में किसका प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु वराहमिहिर जी के अनुसार निम्न बातों में शकुन का प्रयोग विशेष रूप से करना चाहिए- खोई वास्तु के लिए, व्यक्ति से प्रथम बार मिलने पर, युद्ध प्रारम्भ के समय, नवकार्यारम्भ से पूर्व, गृह प्रवेश के समय, राजा/उच्चाधिकारी /सरकारी अधिकारी या राजकीय अधिकारी से मिलते समय और यात्रा पर जाते समय।

ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव

कुंडली विशेषज्ञ और प्रश्न शास्त्री

ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव पिछले 15 वर्षों से सटीक ज्योतिषीय फलादेश और घटना काल निर्धारण करने में महारत रखती है. कई प्रसिद्ध वेबसाईटस के लिए रेखा ज्योतिष परामर्श कार्य कर चुकी हैं। आचार्या रेखा एक बेहतरीन लेखिका भी हैं। इनके लिखे लेख कई बड़ी वेबसाईट, ई पत्रिकाओं और विश्व की सबसे चर्चित ज्योतिषीय पत्रिका फ्यूचर समाचार में शोधारित लेख एवं भविष्यकथन के कॉलम नियमित रुप से प्रकाशित होते रहते हैं। जीवन की स्थिति, आय, करियर, नौकरी, प्रेम जीवन, वैवाहिक जीवन, व्यापार, विदेशी यात्रा, ऋण और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, धन, बच्चे, शिक्षा, विवाह, कानूनी विवाद, धार्मिक मान्यताओं और सर्जरी सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं को फलादेश के माध्यम से हल करने में विशेषज्ञता रखती हैं।


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