रूद्राक्ष का पुरानों में वर्णन

By: Future Point | 23-Feb-2018
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रूद्राक्ष का पुरानों में वर्णन

शिव महापुराण में रूद्राक्ष धारण करने की महिमा, उसके विभिन्न भेदों तथा धारण विधि का उल्लेख मिलता है। उसमें कहा गया है कि रूद्राक्ष शिव को बहुत प्रिय है। इसके दर्शन से, स्पर्ष से तथा इस पर जप करने से समस्त पापों का नाश होता है। रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन साक्षात शिव जी ने अपने मुखारविन्द से किये हैं।

भगवान शिव ने कहा - मैं भक्तों के हित की कामना से रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन करता हूं। पूर्वकाल की बात है। मैं मन को संयम में रखकर हजारों दिव्य वर्षों तक घोर तपस्या करने के बाद जब अपना दोनों नेत्र खोले तो मेरे मनोहर नेत्रपुटों से कुछ जल की बूंदें गिरीं। आंसू की उन बूंदों से वहां एक वृक्ष पैदा हुआ। मेरे आसुओं से उत्पन्न होने के कारण उसका नाम रूद्राक्ष पड़ा। यह मेरा ही अंश होने के कारण असंख्य पाप समूहों का भेदन करने वाले और धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाला अमुल्य बीज है। रूद्राक्ष के चार वर्ण होते हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। ब्राह्मण जाति वाले रूद्राक्षों का रंग श्वेत, क्षत्रिय का रक्त, वैश्य का पीत तथा शुद्र का कृष्ण होता है।

 

मनुष्यों को चाहिए कि वे क्रमशः वर्ण के अनुसार अपनी जाति का ही रूद्राक्ष धारण करें। भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारों वर्णों के लोगों और विशेषतः शिवभक्तों को शिव पार्वती की प्रसन्नता के लिए रूद्राक्ष के फलों को अवश्य धारण करना चाहिए। जो रूद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, वह लोक में उत्तम फल देने वाला तथा सुख सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है। जो रूद्राक्ष आंवले के फल के बराबर होता है, वह समस्त अरिष्टों का विनाश करने वाला होता है तथा जो चना के समान बहुत छोटा होता है, वह सम्पूर्ण मनोरथों और फलों की सिद्धि करने वाला है। रूद्राक्ष जैसे-जैसे छोटा होता है, वैसे-वैसे अधिक फल देने वाला होता है। बड़े रूद्राक्ष से छोटा रूद्राक्ष दस गुना अधिक फल देने वाला है। पापों का नाश करने के लिए रूद्राक्ष धारण आवश्यक है। वह निश्चय ही सम्पूर्ण मनोरथों का साधक है। अतः अवश्य ही उसे धारण करना चाहिए। रूद्राक्ष जैसा फल देने वाला इस संसार में कोई दुसरा पदार्थ नहीं है। मजबूत, स्थूल, कण्टकयुक्त और सुन्दर रूद्राक्ष सभी पदार्थों के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देने वाले हैं। जिसे कीड़ों ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमें उभरे हुए दाने न हों, जो व्रणयुक्त हो तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो, इन पांच प्रकार के रूद्राक्षों को त्याग देना चाहिए। जिस रूद्राक्ष में अपने-आप ही डोरा पिरोने के योग्य छिद्र हो गया हो, वही यहां उत्तम माना गया है। जिसमें मनुष्य के प्रयत्न से छेद किया गया हो, वह मध्यम श्रेणी का होता है।

वर्ण के अनुसार रूद्राक्ष धारण

श्वेत रूद्राक्ष केवल ब्राह्मणों को ही धारण करना चाहिए। गहरे लाल रंग का रूद्राक्ष क्षत्रियों के लिए हितकर है। वैश्यों के लिए प्रतिदिन बारंबार पीले रूद्राक्ष को धारण करना आवश्यक है और शूद्रों को काले रंग का रूद्राक्ष धारण करना चाहिए- यह वेदोक्त मार्ग है। ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, गृहस्थ और सन्यासी सबको नियमपूर्वक रूद्राक्ष धारण करना उचित है। इसे धारण करने का सौभाग्य बड़े पुण्य से प्राप्त होता है। आंवले के बराबर अथवा उससे भी छोटे रूद्राक्ष धारण करने चाहिए। सभी आश्रमों, समस्त वर्णों स्त्रियों और सभी व्यक्तियों को सदैव रूद्राक्ष धारण करना चाहिए। व्यक्तियों के लिए प्रणव के उच्चारणपूर्वक रूद्राक्ष धारण का विधान है। जिसके ललाट में त्रिपुण्ड लगा हो और सभी अंग रूद्राक्ष से विभूषित हों तथा जो मृत्युंजय मंत्र का जप कर रहा हो, उसका दर्शन करने से साक्षात् रूद्र के दर्शन का फल प्राप्त होता है।

रूद्राक्ष के प्रकार और लाभ

मुख्यतः चैदह प्रकार के रूद्राक्ष होते हैं। रूद्राक्ष की माला धारण करने वाले पुरूष को देखकर भूत, प्रेत, पिषाच, डाकिनी, शाकिनी तथा अन्य द्रोहकारी राक्षस आदि दूर भाग जाते हैं। जो कृत्रिम अभिचार आदि प्रयुक्त होते हैं, वे सब रूद्राक्षधारी को देखकर सषंक हो दूर खिसक जाते हैं। रूद्राक्ष धारण करने पुरूष को देखकर शिव, भगवान विष्णु, देवी दुर्गा, गणेश, सूर्य तथा अन्य देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं और हमेशा उस व्यक्ति पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं।

 

किस रूद्राक्ष से क्या फायदा होता है

    • एक मुख वाला रूद्राक्ष साक्षात् शिव का स्वरूप है। वह भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करता है। जहां रूद्राक्ष की पूजा होती है, वहां से लक्ष्मी दूर नहीं जाती। उस स्थान के सारे उपद्रव नष्ट हो जाते हैं तथा वहां रहने वाले लोगों की सम्पूर्ण कामनाएं पूर्ण होती हैं।

मंत्र - ॐ ह्रीं नमः

    • दो मुख वाले रूद्राक्ष को देवेवर कहा गया है। वह सम्पूर्ण कामनाओं और फलों को देने वाला है।

मंत्र - ॐ नमः

    • तीन मुख वाला रूद्राक्ष सदा साक्षात् साधन का फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्याएं प्रतिष्ठित होती हैं।

मंत्र - ॐ क्लीं नमः

    • चार मुख वाला रूद्राक्ष साक्षात् ब्रह्मा का रूप है। वह दर्शन और स्पर्श से शीघ्र ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चारों पुरूषार्थों को देने वाला है।

मंत्र - ॐ ह्रीं नमः

    • पांच मुख वाला रूद्राक्ष साक्षात् कालाग्निरूद्ररूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने वाला तथा सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। पांच मुख रूद्राक्ष समस्त पापों को दूर कर देता है। विद्या, बुद्धि, संतान, यश, कीर्ति इत्यादि की प्राप्ति होती है।

मंत्र - ॐ ह्रीं नमः

    • छः मुखों वाला रूद्राक्ष कार्तिकेय का स्वरूप है। यदि दाहिनी बांह में उसे धारण किया जाय तो धारण करने वाला मनुष्य ब्रह्महत्या और पापों से मुक्त हो जाता है, इसमें संशय नहीं है।

मंत्र - ॐ ह्रीं हुं नमः

    • सात मुख वाला रूद्राक्ष अनङ्गस्वरूप और अनङ्ग नाम से ही प्रसिद्ध है। उसको धारण करने से दरिद्र भी ऐश्वर्यशाली हो जाता है।

मंत्र - ॐ हुं नमः

    • आठ मुख वाला रूद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरवरूप है, उसको धारण करने से मनुष्य पूर्णायु होता है और मृत्यु के पश्चात् शूलधारी शंकर हो जाता है।

मंत्र - ॐ हुं नमः

    • नौ मुख वाले रूद्राक्ष को भैरव तथा कपिलमुनि का प्रतीक माना गया है अथवा नौ रूप धारण करने वाली महेश्वरी दुर्गा उसकी अधिष्ठात्री देवी मानी गयी है। जो मनुष्य भक्तिपरायण हो अपने बायें हाथ में नवमुख रूद्राक्ष को धारण करता है, वह निश्चय ही मेरे समान सर्वेस्वर हो जाता है-इसमें संशय नहीं है।

मंत्र - ॐ ह्रीं हुं नमः

    • दस मुख वाला रूद्राक्ष साक्षात् भगवान् विष्णु का रूप है। उसको धारण करने से मनुष्य की सम्पूर्ण कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

मंत्र - ॐ ह्रीं नमः

    • ग्यारह मुख वाला जो रूद्राक्ष है, वह रूद्ररूप है। उसको धारण करने से मनुष्य सर्वत्र विजयी होता है।

मंत्र - ॐ ह्रीं हुं नमः

    • बारह मुख वाले रूद्राक्ष को केषप्रदेष में धारण करें। उसके धारण करने से मानो मस्तक पर बारहों आदित्य विराजमान हो जाते हैं।

मंत्र - ॐ क्रौं क्षौं रौं नमः

    • तेरह मुख वाला रूद्राक्ष विश्वेदेवों का स्वरूप है। उसको धारण करके मनुष्य सम्पूर्ण अभीष्टों को पाता तथा सौभाग्य और मंगल लाभ करता है।

मंत्र - ॐ ह्रीं नमः

    • चैदह मुख वाला जो रूद्राक्ष है, वह परम शिवरूप है। उसे भक्तिपूर्वक मस्तक पर धारण करें। इससे समस्त पापों का नाश हो जाता है।

मंत्र - ॐ नमः


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