रुबी माणिक रत्न के लक्षण और लाभ

By: Future Point | 27-Mar-2018
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रुबी माणिक रत्न के लक्षण और लाभ

रुबी रत्न (रुबी स्टोन ) को माणिक्य, मानिक, माणिक और कई अनेक नामों से जाना जाता हैं। माणिक्य रत्न सूर्य ग्रह का रत्न हैं। नवग्रहों में सूर्य को राजा की उपाधि दी गई हैं। जन्मपत्री में सूर्य के सभी शुभ फल पाने के लिए माणिय रत्न को पहना जाता हैं। माणिक्य रत्न(Ruby Gemstone) का उपरत्न लाल के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह रत्न बहुमूल्य रत्नों में आता हैं। माणिक्य रत्न लाल, गुलाबी और रक्त वर्ण रंग में पाया जाता हैं। सामान्य व्यक्ति रत्नों को उनके निर्धारित रंगों के आधार पर ही पहचान पाता हैं। रत्नों के बारे में कम जानकारी के अभाव में सर्वसाधारण कभी कभी भ्रम की स्थिति में भी रहते हैं। जैसे कुछ लोग यह समझते हैं कि प्रत्येक पीले रंग का रत्न पुखराज होता हैं। ठीक इसी प्रकार नीले रंग में उपलब्ध रत्न को नीलम रत्न माना जाता है। जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं हैं। अधिकतर रत्न कई रंगों में पाये जाते हैं। सूर्य रत्न रुबी विशेष रुप से छ: भुजाओं से निर्मित आकार में पाया जाता हैं।

माणिक के लाभ

रुबी रत्न सूर्य के प्रतिनिधित्व का रत्न हैं। जन्मपत्री में सूर्य के सभी फलों को पाने के लिए माणिक्य रत्न पहना जा सकता हैं। सूर्य ग्रह को पिता, आत्मा, रोगों से लड़ने की शक्ति, सत्ता, सरकारी नौकरी, राजनीति, उच्चाधिकारी, बिजली और सिद्धान्त का कारक माना जाता हैं। इन सभी विषयों को सकारात्मक परिणाम पाने के लिए माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए। इन सभी विषयों के लिए शुभ मुहूर्त में माणिक्य रत्न धारण किया जा सकता हैं। जैसे - यदि कोई व्यक्ति जल्द बीमार हो जाता हैं तो व्यक्ति को माणिक्य रत्न धारण करने से उसकी आरोग्य शक्ति में वृद्धि होती हैं। कार्यक्षेत्र में सूर्य रत्न उच्चाधिकारियों का सूचक हैं। उच्चाधिकारियों को प्रसन्न करने और पदोन्नति की प्राप्ति की चाह होने पर भी माणिक्य रत्न धारण किया जाना चाहिए।


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माणिक्य रत्न अपने चिकित्सिय गुणों के कारण भी प्रसिद्ध हैं। यह माना जाता हैं कि माणिक्य रत्न को विशेषा परिस्थितियों में रक्त प्रवाह के संतुलन के लिए धारण किया जाता हैं। सेहत की कमी से जूझ रहें व्यक्तियों के लिए यह रत्न उपयोगी साबित होता हैं। पित्त रोगों के निवारण में रुबि रत्न लाभ देता हैं। वायुनाशक, उदररोग, तपेदिक आदि रोगों से रोगमुक्त होने के लिए माणिक्य रत्न पहनाजा सकता हैं। यह रत्न अपने धारक को इन सभी रोगों से निजात देने में सहयोगी रहता हैं। इसके अतिरित यह रत्न ह्रदय से जुड़े रोग, रक्तचाप, दिल की असंतुलित धड़कनों पर नियंत्रण, व्यर्थ की बेचैनी, आंखों के रोग, कैंसर और अपेण्डीसाइटिस आदि रोगों में कमी करने के लिए भी धारण किया जाता हैं। यह भी माना जाता हैं कि शारीरिक दुर्बलता, आत्मविश्वास, हड्डी से संबंधित परेशानियां, मधुमेह, ज्वर, फेफड़े की बीमारियां और मधुमेह के रोग के निवारण के लिए भी रुबी रत्न पहनना चाहिए।

यह भी माना जाता है कि इस रत्न को धारण करने से धारक के मन से कुविचार दूर होते हैं। यदि माणिक्य रत्न के धारक पर किसी प्रकार का कोई कष्ट भविष्य में आने वाला होता हैं तो माणिक्य रत्न अपनी आभा खो देता हैं। इससे व्यक्ति को स्वयं पर आने वाले कष्ट की पूर्व जानकारी मिल जाती हैं। आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए भी मानिक रत्न पहना जाता हैं। इस रत्न की शुभता से धार्मिक क्रियाओं में मन लगने लगता हैं। पिता से रिश्ते मजबूत करने के लिए भी मानिक रत्न पहना जा सकता हैं।

माणिक्य रत्न को सभी लग्न और राशि के व्यक्ति धारण नहीं कर सकते हैं। माणिक्य रत्न धारण करने से पूर्व कुंडली की जांच किसी योग्य ज्योतिषी से अवश्य कराना चाहिए। बिना जानकारी के माणिक्य रत्न धारण करना खतरनाक साबित हो सकता हैं। जो व्यक्ति शनि से जुड़े कार्यक्षेत्रों में कार्य कर रहे हों उन व्यक्तियों को माणिक्य रत्न नहीं धारण करना चाहिए। बुध ग्रह की दोनों राशियां जिसमें मिथुन एवं कन्या हैं तथा शनि ग्रह की दोनों राशियों जिसमें मकर और कुम्भ व्यक्तियों को यह रत्न नहीं पहनना चाहिए। इसके विपरीत इस रत्न को चंद्र ग्रह, गुरु और मंगल ग्रह के लग्न वाले व्यक्ति पहन सकते हैं।

यह सर्वविदित हैं कि रत्न असली और निर्दोष ही धारण करने चाहिए। माणिक्य रत्न बहुत मूल्यवान रत्नों में से एक हैं। जो व्यक्ति मानिक्य रत्न पहनने में किसी प्रकार से असमर्थ हों उन व्यक्तियों को इसका उपरत्न लालड़ी या लाल मणि धारण करना चाहिए। एक अन्य ज्योतिषीय मत के अनुसार यदि माणिक्य के साथ लालड़ी भी पहन लिया जाए तो इससे प्राप्त होने वाले अद्भुत होते हैं।


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माणिक्य रत्न धारण विधि

माणिक्य रत्न को शुक्ल पक्ष के रविवार के दिन शुभ मुहूर्त में सोने से निर्मित अंगूठी में जड़्वाएं। रत्न अंगूठी में इस प्रकार लगवाया गया हों कि यह अंगूली को स्पर्श करें। इसके बाद इसे सूर्य मंत्रों से अभिमंत्रित कराएं। हवन यादि क्रियाओं से अभिमंत्रित कराने के बाद ही इस रत्न को धारण कर इसका पूर्ण लाभ लिया जा सकता है। धारण करने के लिए शुक्ल पक्ष के रविवार के दिन का चयन करें। धारण से पूर्व अंगूठी को कच्चे दूध, गंगाजल में डूबोकर २४ घंटों के लिए रखें। धारण करने से पूर्व सूर्य मंत्र - ऊँ घृणिः सूर्याय नमः का कम से कम ७ बार जाप अवश्य करें। माणिक्य रत्न को अनामिका अंगूली में धारण किया जाता हैं।


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