नदी में सिक्का डालना नहीं है अंधविश्वास, इसके पीछे छिपा है गहरा साइंस | Future Point

नदी में सिक्का डालना नहीं है अंधविश्वास, इसके पीछे छिपा है गहरा साइंस

By: Acharya Rekha Kalpdev | 02-Mar-2024
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नदी में सिक्का डालना नहीं है अंधविश्वास, इसके पीछे छिपा है गहरा साइंस

भारतीय सनातन संस्कृति में दान-धर्म को पुण्य प्राप्ति का साधन माना जाता है। सभी वैदिक ग्रंथों, शास्त्रों, पुराणों में अर्जित आय का कुछ भाग दान करने का कहा गया है। दान धर्म से व्यक्ति के इस जन्म के कष्ट दूर होते है और अगले जन्मों की यात्रा भी सुखद होती है। फिर वह चाहे ग्रह दोष दूर करने के उपाय हो, या फिर सेवा भाव से दूसरों की मदद हो। सभी में दान धर्म को प्रमुखता दी गई है। दान धर्म को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया गया है। सभी धर्म शास्त्र दान की महिमा का गुनगान करते है। दान से जुडी अनेक मान्यताएं, और परम्पराएं है, जिनका पालन सभी भारतीय वैदिक काल से करते आ रहे है। इन्हीं में से एक है नदी में तांबे का सिक्का डालने की परंपरा।

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हम सभी को जीवन में कभी न कभी, किसी न किसी नदी के पास जाने का अवसर मिला ही है। यात्रा के दौरान जब नदी के ऊपर से रेल गुजरती है तो लोग नदी में तांबे का सिक्का डालते है, ऐसा करते हुए वो आँख बंद अपनी कोई कामना भी मांगते है। हम सब में से कुछ लोगों ने शुभ पर्वों पर नदी में स्नान करते समय, नदी को नाव से पार करते समय तांबे के कुछ सिक्के नदी में अवश्य डाले होंगे। नदी के पास से गुजरते हुए, एक सिक्का नहीं में डालने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसका पालन हम सभी आज भी करते हैं। कई बार हम सब के मन में यह प्रश्न आता है कि - लोग नदियों में तांबे का सिक्का क्यों डालते है? क्या यह सिर्फ एक परंपरा मात्रा है, या इसका आध्यात्मिक, धार्मिक, वैज्ञानिक महत्त्व भी है? आखिर लोग नदी में सिक्का क्यों डालते है? इसका क्या महत्त्व है? आइये जानें कि इसके पीछे का रहस्य क्या हैं?

वैदिक काल से ही तांबे के बर्तन में जल रखने की परंपरा है। पानी रखने के लिए मिटटी के बर्तनों को सबसे अधिक शुद्ध समझा जाता है। मिटटी के बर्तनों के बाद पानी रखने के लिए तांबे के बर्तनों को सबसे अधिक शुद्ध समझा जाता है। इस बात को वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके है कि तांबे के बर्तन में पानी रखने से जल की अशुद्धियाँ दूर होती है। पानी को शुद्ध करने का यह सबसे सरल साधन है।

वैदिक काल से ही नदियां जीवन का मुख्य साधन रही है। इसी कारण नदियों के आसपास सभी सभ्यताओं का विकास हुआ और सभी सभ्यताएं नदियों के आसपास ही फली-फूली है। पीने के लिए नदियों का पानी शुद्ध रहे, इस उद्देश्य के लिए नदियों में तांबे के सिक्के डाले जाते है। नदी में सिक्के डालने की परंपरा तो बहुत प्राचीन है, जिसे आज विज्ञानं भी स्वीकार कर चुका है। नदियों में जल की मात्रा बहुत अधिक होती है, इतनी बड़ी मात्रा के जल को अन्य किसी साधन के द्वारा शुद्ध नहीं किया जा सकता है। नदियों में तांबे का सिक्का डालने से नदियों का जल शुद्ध होता है, इस परंपरा से नदियों का जल प्राकृतिक रूप से शुद्ध होने लगा। नदियों में सिक्का डालने से नदियों का जल शुद्ध भी होने लगा और लोगों की सेहत भी ठीक रहने लगी।

इसी सनातनी वैज्ञानिक परम्परा का पालन हम सभी प्राचीन काल से करते आ रहे है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार नदी में सिक्का डालने से ग्रह जनित दोषों का निवारण होता है। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार नदी में सिक्का डालने से ग्रह दोष दूर होते है और व्यक्ति का जीवन सुखी रहता है। परम्पराओं को पाप पुण्य से जोड़ने से व्यक्ति पुण्य पाने की इच्छा से नदी के पास से गुजरने पर तांबे का सिक्का नदी में डालते है। तांबा सूर्य के धातु है, बहते जल में ताम्बा डालने से सूर्य की शांति होती है। इस प्रकार ग्रह शांति भी होती है। ज्योतिष के एक ने उदाहरण के अनुसार बहती नदी में चांदी का सिक्का डालना, एक और नदी के जल में चांदी के तत्व बढ़ता है दूसरी और पुण्य बढ़ता है, साथ ही यह उपाय चंद्र दोष को भी दूर करता है।

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काल खंड के साथ समय बदला और तांबे और चांदी के सिक्कों का स्थान लोहे के सिक्कों ने ले लिया। तांबे के सिक्कों का प्रचलन बंद हो गया, परन्तु परम्पराएं आज भी है, इसी के चलते आज भी लोग नदियों में सिक्का डाल रहे हैं। भले ही सिक्का आज तांबे का न होकर लोहे का रह गया है। आज भी लोग उसी परंपरा से नदियों में सिक्का डाल रहे है।

वैज्ञानिक आज जिस परंपरा में छुपे गूढ़ रहस्य की वैज्ञानिकता को समझ पाए है, उस वैज्ञानिकता को हम लोगो वैदिक काल में ही समझ गए थे, यूं नहीं हमें उस काल में विश्व गुरु का स्थान दिया गया था। आध्यात्मिक और धार्मिक परंपरा के पीछे बहुत बड़ा विज्ञान जुड़ा है। पूजन करते कलश स्थापना करते समय कलश में धन धान्यं रखने की परंपरा है। धन के रूप में सिक्के कलश में रखे जाते है। तांबे के सिक्के धातु से बने होते है, धातु ऊर्जा की सुसंचालक होती है।

जब हम नदी के जल में मनोकामना मांगते हुए सिक्के डालते है तो उस समय हम जो कामना कर रहे होते है, वो कामना ऊर्जा बन सिक्के में संगृहीत होती है और नदी के जल की तरंग के साथ नदी में समाहित हो जाती है। शुभ समय में सिक्का डालने से मनोकामना पूर्ण होती है। अपने जीवन की जिस भी समस्या का आप समाधान चाहते है उसका विचार कर आप सिक्के को जल में छोड़े।


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