पूजा अर्चना में (कुंभ) कलश का विधान योग

By: Future Point | 21-Jun-2018
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पूजा अर्चना में (कुंभ) कलश का विधान योग

किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य में सामग्री के साथ-साथ कई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। जैसे जल, पुष्प, दीपक, घंटी, शंख, आसन, कलश आदि जिनका अलग-अलग विशिष्ट महत्व एवं प्रतीकात्मक अर्थ होता है। कलश या कुंभ की भारतीय संस्कृति में एक कल्पना की गई है। कुंभ को समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक माना गया है क्योंकि ब्रह्मांड का आकार भी घट के समान है। इसको यों भी कहा जा सकता है कि घट में समस्त सृष्टि का समावेश है। इसमें सभी देवी-देवता, नदी, पर्वत, तीर्थ आदि मौजूद हैं।

कलशस्य मुखे विष्णुः कुण्ठे रूद्रः समाश्रित:।

मूले तस्य स्थितो ब्रहा्र मध्ये मातृगणः स्मृताः ।।

कुक्षौ तु सागराः सप्त सप्तद्वीपा: वसुन्धराः।

ऋग्वेदोस्थ यजुर्वेदः सामवेदो हयथर्वणः।।

अंगेस्तु सहिता सर्व कलशे तु समाश्रिताः।।

अतः किसी भी पूजा, पर्व, अवसर व संस्कार में सबसे पहले कलश स्थापना करने का विधान है। कलश स्थापना तथा पूजन के बिना कोई भी मंगल कार्य प्रारंभ नहीं किया जाता है।

कलश स्थापना का भी एक विधान है। इसे पूजा स्थल पर ईशान कोण में स्थापित किया जाना चाहिए। प्रायः कलश तांबे का ही आम माना गया है। यदि यह उपलब्ध न हो तो मिट्टी का भी प्रयोग में लिया जा सकता है। सोने व चांदी का भी कलश प्रयोग में ले सकते हैं। शास्त्रों में कलश कितना बड़ा या छोटा हो इसका भी वर्णन मिलता है।

इसे मध्य में पचास अंगुल चैड़ा और सोलह अंगुल ऊंचा, नीचे बारह अंगुल चैड़ा और ऊपर से आठ अंगुल का मुख रखें तो यह कलश सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सामान्यतः कलश को जल से भरा जाता है परन्तु विशेष प्रयोजन में किए जाने वाले अनुष्ठानों में विशेष वस्तुएं रखे जाने का विधान है।

धर्मकामः क्षिपेद भस्म धनकामस्तु मोक्तिकम्।

श्री कामः कमल दद्यात कामार्थी रोचन तथा।

मोक्षकामो न्यसेदवस्त्रंच जायकामो पराजिताम।

उच्चाटनार्थ व्याघ्रा च वश्यार्थ शिखिमूलकम्।।

मारणाय मरीच च कैतवे मोहनायच।

अर्थात धर्म के लाभ हेतु अनुष्ठान किया जा रहा हो तो कलश में जल के स्थान पर भस्म का प्रयोग होता है । धन के लाभ हेतु मोती व कमल का प्रयोग करते हैं। विषय भोग हेतु गोरोचन, मोक्ष हेतु वस्त्र, विजय के लिए अपराजिता का प्रयोग करते हैं। किसी का उच्चाटन करना हो तो व्याघ्री (छोटी कटोरी), वशीकरण के लिए मोर पंखी, मारण हेतु काली मिर्च तथा आकर्षण करने हेतु धतूरा भरने का विधान है।

कलश को भूमि पर नहीं रखना चाहिए इसको रखने से पूर्व भूमि की शुद्धि करना आवश्यक है। फिर घटार्गल यंत्र बनाना चाहिए। यह नहीं बना सकते तो बिन्दु षटकोण, अष्टदल आदि बनाया जा सकता है। इसे धान्य, गेहूं के ऊपर भी रखा जा सकता है। कलश को इनमें से किसी भी पदार्थ से भरकर विभिन्न देवताओं का कलश में आवाहन किया जाता है। इनके पश्चात् प्रधान देवता (जिनकी आराधना या अनुष्ठान की जानी है) का आवाहन किया जाता है। साथ ही नवग्रहों एवं पितरों की स्थापना की जाती है। तत्पश्चात ही मांगलिक कार्य का शुभारम्भ किया जाता है।


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