नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा, इस दिन राशि अनुसार करें उपाय

By: Future Point | 19-Sep-2022
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नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा, इस दिन राशि अनुसार करें उपाय

नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान शिव से विवाह हेतु प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण ये ब्रह्मचारिणी कहलायीं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। देवी मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को अपने कार्य में सदैव विजय प्राप्त होती है। मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को भी सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। देवी माँ की भक्ति से व्यक्ति में तप की शक्ति, सदाचार, त्याग, संयम तथा वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है। 

दुर्गा सप्तशती के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन रहती हैं। इनके मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है। माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला है और बायें हाथ में कमण्डल है। देवी माँ ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं। इनके कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, उमा और अपर्णा। यह देवी भगवती दुर्गा, शिवस्वरूपा, गणेशजननी, नारायणी, विष्णु माया और पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में स्थित साधक मां ब्रह्मचारिणी की भक्ति और कृपा को प्राप्त करता है और मां भक्त को आशीर्वाद देती है।

''दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु।

 देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।''

माँ ब्रह्मचारिणी आराधना का महत्व :-

देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य को विवेक ओर ज्ञान की प्राप्ति होती है। इनके आशीर्वाद से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन में कठिन परिस्थितियां आने पर भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है। माँ ब्रह्मचारिणी अपने साधकों की मलिनता, दुर्गुणों और दोषों को नष्ट करती हैं। देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।

पूजा- विधि -

  • नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन सुबह उठकर जल्दी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसका शुद्धिकरण कर लें।
  • घर के मंदिर में घी का दीपक जलायें।
  • मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा का गंगाजल से अभिषेक करें।
  • अब मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा को अर्घ्य दें।
  • मां ब्रह्मचारिणी को अक्षत, सिन्दूर, चन्दन और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में पांच प्रकार के फल और मिठाई चढ़ाएं।
  • धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तसती का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।
  • मां को भोग लगाएं। ऐसा ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाया जाता है।

मां को पसंद है ये भोग -

मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल बेहद पसंद है और इसलिए इनकी पूजा के दौरान इन्हीं फूलों को देवी मां के चरणों में अर्पित किया जाता है। क्योंकि मां को मिश्री काफी पसंद है इसलिए मां को मिश्री और पंचामृत का भोग लगाएं। वहीं देवी मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्‍यंजन भी अति प्रिय हैं। इसलिए उन्‍हें दूध से बने व्‍यंजनों का भोग भी लगाया जाता है। इस भोग से माँ ब्रह्मचारिणी प्रसन्न होती हैं, और जीवन में सुख समृद्धि का वरदान देती हैं। इन्हीं चीजों का दान करने से लंबी आयु का सौभाग्य भी प्राप्त होता है।

मां ब्रह्मचारिणी से जुड़ी पौराणिक कथा -

पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी के बारे में कहा जाता है कि अपने पिछले जन्म में उन्होंने हिमालय हवेली में बेटी के रूप में जन्म लिया था। इस जन्म में उन्होंने भगवान शंकर से विवाह करने के लिए घोर तपस्या की इसीलिए उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। मां ब्रह्मचारिणी ने 1000 वर्षों तक फल और फूल खाकर, 100 साल तक जमीन पर रहकर, सब्जियों आदि के ऊपर निर्वाह किया। उसके बाद मां ने कड़ा उपवास किया और हवा, कठोर बारिश, और धूप का सामना किया। इस दौरान उन्होंने टूटे हुए बिल्वपत्र खाकर भगवान शंकर की पूजा की।

इस बात से भी भोलेनाथ जब प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होंने सूखे बिल्वपत्र खाना बंद कर दिया और हजारों वर्ष तक निर्जला और शक्ति-क्षीण होकर तपस्या करती रहीं। जब देवी ने पत्ते भी खाने बंद कर दिए तो उन्हें अपर्णा नाम दिया गया। उनकी तपस्या के कारण मां ब्रह्मचारिणी की हालत खराब हो गई तब सभी देवी, देवताओं, ऋषि, मुनियों, ने इस अनुशासन को देखकर अपनी मनोकामना पूर्ति की स्थिति और स्वागत किया।

‘‘दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु।

  देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥’’

ध्यान मंत्र -

‘‘वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।

धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥

परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।

पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥’’

नवरात्रि के दूसरे दिन राशि अनुसार करें ये उपाय -

मेष राशि :- इस दिन पूजा में देवी के समक्ष घी का दीपक अवश्य जलाएं। 

वृषभ राशि :- पूजा में देवी को सफेद रंग के फूल अवश्य अर्पित करें।

मिथुन राशि :- इस दिन देवी ब्रह्मचारिणी को सुगंध अवश्य अर्पित करें।

कर्क राशि :- पूजा में माँ ब्रह्मचारिणी को शुद्ध जल अर्पित करें।

सिंह राशि :- इस दिन की पूजा में लाल चंदन अवश्य शामिल करें।

कन्या राशि :- नवरात्र के दूसरे दिन देवी मां को बताशे अवश्य अर्पित करें।

तुला राशि :- माँ को दूसरे दिन की पूजा में सफ़ेद रंग की मिठाई का भोग लगायें।

वृश्चिक राशि :- इस दिन की पूजा में माँ को गुड़ मिश्रित जल अर्पित करें।

धनु राशि :- देवी माँ को इस दिन पीले रंग के फूल अर्पित करें।

मकर राशि :- देवी ब्रह्मचारिणी को इस दिन की पूजा में घी का दीपक दिखाएँ।

कुंभ राशि :- देवी माँ के समक्ष सुगंध अर्पित करें।

मीन राशि :- मनोकामना पूर्ति के लिए देवी माँ को पिली हल्दी अर्पित करें।


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