नवरात्रि का तीसरा दिन: मां चन्द्रघण्टा की पूजा विधि एवं जानिये कथा व देवी के स्वरूप का महत्व
By: Future Point | 20-Sep-2022
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मां जगदम्बा दुर्गा की तीसरी शक्ति हैं चंद्रघंटा। इस देवी के मस्तक में घण्टा के आकार का अर्द्धचन्द्र सुशोभित है। इसीलिए इनका नाम चंद्रघंटा है। इनके चण्ड भयंकर घण्टे की ध्वनि से सभी दुष्ट दैत्य-दानव एवं राक्षसों के शरीर का नाश होता है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के विग्रह की पूजा-आराधना की जाती है। देवी मां की ये शक्ति यानि मां चंद्रघंटा शत्रुहंता के रूप में विख्यात हैं। माँ चन्द्रघंटा की पूजा और भक्ति करने से आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। नवरात्रि के तीसरे दिन जो भी भक्त माँ के तीसरे रूप यानी मां चन्द्रघण्टा की पूजा अर्चना करता है, उन सभी को मां चन्द्रघण्टा की कृपा प्राप्त होती है।
पिण्डजप्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
मां चन्द्रघण्टा का स्वरुप :-
माँ के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला, शांतिदायक और कल्याणकारी है। माँ के मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। मां चन्द्रघण्टा के तीन नेत्र और दस हाथ हैं। इनके कर-कमल गदा, धनुष-बाण, खड्ग, त्रिशूल और अस्त्र-शस्त्र लिये, अग्नि जैसे वर्ण वाली, ज्ञान से जगमगाने वाली और दीप्तिमती हैं। ये सिंह पर आरूढ़ हैं तथा युद्ध में लड़ने के लिए उन्मुख हैं। मां चन्द्रघण्टा शक्ति और समृद्धि का प्रतीक हैं। ऐसा माना जाता है कि माता के घंटे की तेज व भयानक ध्वनि से भयानक दानव, और अत्याचारी राक्षस सभी बहुत डरते है। माँ चंद्रघंटा अपने भक्तों कि रक्षा करने वाली और अलौकिक सुख देने वाली हैं। मां के गले में सफेद फूलों की माला रहती है। इनका वाहन सिंह है और यह हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने वाली मुद्रा में रहती हैं।
आराधना का महत्व :-
मां जगदम्बा दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। मां चंद्रघंटा की कृपा से भगतजनों के समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं। देवी माँ की कृपा से साधक पराक्रमी और निर्भयी हो जाता है। इनकी आराधना से वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकर मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया पवित्र हो जाती है। यदि प्रेतबाधा से परेशान कोई भक्त माँ कि आराधना करता है तो माँ चंद्रघंटा उसकी रक्षा अवश्य करती हैं।
मां चंद्रघंटा को लगाएं इसका भोग -
देवी चंद्रघंटा को दूध और उससे बनी चीजों का भोग अतिप्रिय है इसलिए इस दिन माँ को इन चीजों का भोग लगाना चाहिए, और इसी का दान भी करना चाहिए। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और सभी दुखों का नाश करती हैं। भोग के रूप में यदि मां को मखाने की खीर बनाकर यदि उसका भोग लगाया जाए तो यह उत्तम रहेगा।
माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि -
- नवरात्रि के तीसरे दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और उसके पश्चात् पूजा के लिए साफ़ जल और पंचामृत तैयार कर लें।
- इसके पश्चात् दो दीये जलायें एक घी का, दूसरा तेल का।
- फिर जल और पंचामृत से देवी को स्नान कराएं।
- इसके बाद पूजा में अक्षत, कुमकुम, सिंदूर, फूल, धुप, दीपक, भोग आदि माँ चंद्रघंटा को अर्पित करें।
- इसके बाद मां चंद्रघंटा को केसर दूध से बनी मिठाई या फिर खीर का भोग अवश्य लगाएं।
- देवी चंद्रघंटा को लाल रंग की गुलाब के फूल की माला अर्पित करें।
- इसके बाद दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और मां चंद्रघंटा के मूल मंत्र का जाप करें।
- पूजा के अंत में माँ चंद्रघंटा की आरती गाएं और पूजा में घंटी/घंटे अवश्य बचाएँ। मान्यता है कि यदि घर में कोई नकारात्मक ऊर्जा है या कोई आसुरी शक्तियां हैं तो घण्टा ध्वनि से वे दूर भाग जाती हैं।
मां चंद्रघण्टा के इस मंत्र का करें जाप –
''पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥''
माँ चंद्रघंटा की कथा-
पुराणों की मान्यता के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला, राक्षसों का स्वामी महिषासुर था और देवाताओं के इंद्र देव थे। देवाताओं पर महिषासुर ने विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन अपने कबजे में कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा। इसे देख सभी देवता परेशान थे और इस समस्या के समाधान के लिए देवतागण 'त्रिदेव' ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए।
देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, सूर्य, चंद्र, वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंधक बनाकर वे स्वयं स्वर्गलोक का राजा बन गया है, देवाताओं के अनुसार महिषासुर के अत्याचार के कारण अब देवता पृथ्वी पर घूम रहे हैं और स्वर्ग में उनके लिए स्थान नहीं है। यह सब सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान भोलेनाथ को अत्यधिक क्रोध आया, क्रोध के कारण तीनों के मुख से अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न हुई। देवताओं के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। ये ऊर्जा दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी वहां एक देवी का प्राकट्य हुआ।
भगवान शिव ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इस प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी देवी माँ के हाथों में अस्त्र शस्त्र सजा दिए। इंद्र देव ने भी अपना वज्र दिया और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज प्रदान किया और सवारी के लिए शेर दिया। देवी चंद्रघंटा अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थी। उनका अत्यधिक विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल निकट आ गया है।
अपनी सेना को महिषासुर ने देवी पर हमला करने को कहा। अन्य देत्य तथा दानवों के दल भी इस युद्ध में कूद पड़े। देवी चंद्रघंटा ने एक ही झटके में दानवों का संहार कर दिया। इस युद्ध के अंत में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार देवी मां ने कर दिया। इस तरह मां चंद्रघंटा ने सभी देवताओं को असुरों से मुक्ति दिलाई।