नवरात्री का प्रथम दिवस- मां शैलपुत्री की आराधना किस प्रकार करनी चाहिए। | Future Point

नवरात्री का प्रथम दिवस- मां शैलपुत्री की आराधना किस प्रकार करनी चाहिए।

By: Future Point | 28-Aug-2019
Views : 7199नवरात्री का प्रथम दिवस- मां शैलपुत्री की आराधना किस प्रकार करनी चाहिए।

इस वर्ष 2019 में नवरात्रि का पहला दिन देवी मां शैलपुत्री की पूजा करने के लिए समर्पित है, जिन्हें शैलपुत्री भी कहा जाता है. जिन्हें शास्त्रों में पर्वतों की बेटी के रूप में वर्णित किया गया है. शब्द ‘शिला’ का अर्थ है चट्टान या पहाड़ और दूसरी आधी ‘पुत्री’ का अर्थ है ‘बेटी’ शैलपुत्री को करोड़ों सूर्यों और चन्द्रमाओं की तरह कहा जाता है. वह एक बैल (नंदी) पर सवार होती है और अपने हाथों में त्रिशूल और कमल धारण करती है. वह अपने माथे पर एक चांद पहनती है।

मां शैलपुत्री की आराधना से सुख और समृद्धि की होती है प्राप्ति-

हिंदु मान्यता के अनुसार इसका विशेष महत्व है कि नवरात्रि में शैलपुत्री पूजन का बेहद अधिक महत्‍व है. हिंदु मान्यता के अनुसार मां शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है. जो भी भक्‍त सच्ची श्रद्धा भाव से मां शैलपुत्री का पूजन करता है. उसे सुख और सिद्धि की प्राप्‍ति होती है।

2019 शारदीय नवरात्री का घटस्थापना मुहूर्त-

  • प्रातः 06:12:45 से प्रातः 07:40:15 तक
  • अवधि : 1 घंटे 27 मिनट तक

मां शैलपुत्री की कथा-

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ का आयोजन किया. उन्होंने इस दौरान सभी देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया. लेकिन उन्होंने भगवान शंकरजी को इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं भेजा. जब सती ने सुना कि उनके पिता एक विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, इसके बाद उनका मन व्याकुल हो उठा. उन्होंने अपनी यह इच्छा शंकरजी को बताई. सब बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रजापति दक्ष किसी वजह से हमसे नाराज हैं.

उन्होंने अपने यज्ञ में सारे देवताओं को निमंत्रित भेजा. उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं. लेकिन उन्होंने हमें नहीं बुलाया. इस बारे में कोई सूचना तक नहीं भेजी. ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना ठीक नहीं होगा. भगवान शंकरजी के समझाने का खास असर सती पर नहीं हुआ. अपने पिता का यज्ञ देखने औऱ अपनी माता और बहनों से मिलने की उनकी उनकी इच्छा कम नहीं हुई.

जब भगवान शंकरजी ने देखा कि उनके समझान के बाद भी सती पर इस बात का कोई असर नहीं हो रहा है तो उन्होंने उन्हें वहां जाने की इजाजात दे दी. जब सती अपने पिता के घर पहुंचीं और उन्होंने वहां देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है. सभी लोग मुंह फेरे हुए हैं. केवल उनकी माता ने ही उन्हें प्यार से गले लगाया. उन्होंने देखा कि बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास अधिक था. अपने घरवालों के इस बर्ताव को देखकर उन्हें बहुत ठेस पहुंची. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है.

साथ ही दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे. यह सब देखकर सती बेहद गुस्से में आ गईं. उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहां आकर गलती कर दी है. यह सब वह बर्दाश नहीं कर सकीं और वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न पाईं. उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया. जब भगवान शंकर को यह पता चला उन्होंने अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया. फिर सती ने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और वह शैलपुत्री कहलाईं।


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मां शैलपुत्री का पूजन क्यो है आवश्यक-

  • पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी मां शैलपुत्री चंद्रमा पर शासन करती हैं और अपने भक्तों को हर तरह का सौभाग्य प्रदान करती हैं।
  • आदिशक्ति का यह रूप कुंडली में चंद्रमा के पुरुष प्रभाव को दूर करता है।
  • शैलपुत्री के अन्य नाम हेमवती और पार्वती हैं. यह मां दुर्गा का सबसे महत्वपूर्ण रूप है और इसलिए नवरात्रि के पहले दिन पूजा की जाती है।

मां शैलपुत्री की उपासना के लिए मंत्र-

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

मां शैलपुत्री का ध्यान मंत्र-

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
स्तुति: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः


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घटस्थापना की विधि-

  • सर्वप्रथम मिट्टी के बर्तन में रख कर सप्त धान्य को उसमे रखें।
  • इसके पश्चात एक कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बाँधकर उसे उस मिट्टी के पात्र पर रखें।
  • इसके पश्चात कलश के ऊपर अशोक अथवा आम के पत्ते रखें।
  • इसके पश्चात नारियल में कलावा लपेट लें।
  • इसके पश्चात नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पल्लव के बीच में रखें।
  • घटस्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान किया जाता है।

पूजा संकल्प मंत्र-

नवरात्र के दौरान 9 दिनों तक व्रत रखने वाले देवी माँ के भक्तों को निम्नलिखित मंत्र के साथ पूजा का संकल्प करना चाहिए, ये मन्त्र इस प्रकार हैं-

विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे
आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु
अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः
अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।