मनोहर पर्रिकर - सादगी, ईमानदारी और साहस की कहानी | Future Point

मनोहर पर्रिकर - सादगी, ईमानदारी और साहस की कहानी

By: Future Point | 11-Apr-2019
Views : 7468मनोहर पर्रिकर - सादगी, ईमानदारी और साहस की कहानी

गोवा राजभवन के हाल में आज बहुत चहल-पहल थी। हॉल खचाखच भरा हुआ था, सभाजन उत्साहित थे, उत्साह था कि मन का बांध तोड़ने को आतुर था। आज इस सुअवसर पर सबका उद्देश्य अपनी उपस्थिति दर्ज कराना मात्र नहीं था, बल्कि सब इस यादगार समय का हिस्सा बनना चाहते थे, अपने पसंदीदा व्यक्तित्व को मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करते देखना चाहते थे। हर कोई खुश था, खुश क्यों ना हो, भाजपा सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। अवसर ही कुछ ऐसा था, गोवा राज्य में भाजपा की पहली बार सरकार बनने जा रही थी। अनेकों मित्रों, असंख्य कार्यकर्ताओं से घिरे गोवा के भावी मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर शपथ ग्रहण समारोह के इस मौके पर भावुक हो गए थे। इतने लोगों का प्यार एक साथ मिलेगा, इसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की थी।

खुशी के इस अवसर को याद करते हुए एक इंटरव्यू में मनोहर पर्रिकर जी ने कहा था कि - "आज मेरे सहकारी, मेरे हितचिन्तक, पार्टी के कार्यकर्ताओं की इस भारी भीड़ में मुझे मेरे दोनों बेटे, भाई-बहन सभी लोग दिखाई दे रहे है। परन्तु फिर भी सामने दिखाई देने वाला चित्र अधूरा सा है। मेरी पत्नी मेधा, और मेरे माता-पिता इन तीनों में से कोई भी उस भीड़ में नहीं है। मुझे तीव्रता से इन तीनों की याद आ रही है"। इसे नियति का खेल ना कहें तो क्या कहें? नियति के खेल निराले होते हैं, और जब होनी होती है तो होकर ही रहती है। जो सबसे निकट थे, जिन्हें इन्हें मुख्यमंत्री बने हुए देखना चाहिए था, इनके माता-पिता और इनकी अर्धांगिनी सब मात्र इस अवसर से पूर्व 2 से 3 साल के अंतराल में छोड़कर इन्हें छॊड़कर चले गए। खुशी के अवसर पर भावविभोर होना, आंख भर आने का कारण यही था।

कई बार समय के क्रूर हाथ हमसे हमारे उन अपनों को छिन लेता हैं, जिनका साथ हमें बल देता है, प्रेरणा देता है। जिंदगी और मौत सब ईश्वर के हाथ हैं, एक रोज सबको चले ही जाना है। यह जीवन का अंतिम सत्य है। परन्तु जब हमारे अपने हमारे जीवन की सबसे बड़ी खुशी में हमारे साथ नहीं होते हैं तो उस समय खुशी का पल तकलीफ में तब्दील हो जाता है। अपनों की कमी के घाव को समय का कोई मलहम नहीं भर सकता, दुख के समय में एक बार हम शायद अपने मॄत प्रियजनों को याद ना भी करें परन्तु खुशी के अवसर पर एक बार को मन कर ही जाता है कि काश आज ये हमारे साथ होते तो इस समय कितने खुश होते। कुछ इसी तरह के भाव मनोहर पर्रिकर को घेरे हुए थे, जिनकी चर्चा इन्होंने एक व्यक्तिगत साक्षात्कार में की थी।

शपथ ग्रहण लेते समय एक पल के लिए मनोहर जी अतीत के ख्यालों में पहुंच गए, उन्हें वो दिन याद आ गया, जब वो अपनी बहन के ससुराल मुम्बई गए थे। वहां काले घनों बालों में फूलों की एक गजरा-वेणी लगाए, चाय लाती एक सरल सी लड़की पर इनका ध्यान गया। उसके सहज सौंदर्य में बंधे बिना ये ना रह सकें। परिचय, अध्ययन चर्चाओं में, चर्चा मित्रता में कब बदल गई थी, दोनों को पता ही नहीं चला था। स्थिति ये थी कि अब वजह-बेवजह अब ये बहन के यहां जाने लगे। दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे, परिवार तक बात पहुंची तो सब ने एक बार में ही इस रिश्ते के लिए अपनी सहमति दे दी। इस दिन इनका केवल विवाह न हुआ था, बल्कि इन्हें एक मित्र, साथी, प्रेरणा और मनोबल मिला था।

मनोहर पर्रिकर जी को वो दिन भूलाए नहीं भूलता जब उनकी शादी की पंद्रहवीं सालगिरह थी। फैक्ट्री के व्यस्त काम से समय निकाल कर मनोहर जी आज अपना सारा समय अपने परिवार को देना चाहते थे। राजनीति की नई जिम्मेदारों को भी आज की दिनचर्या में शामिल करना उनकी मजबूरी थी। सालगिरह की तैयारियां करते हुए मेधा आज कमजोरी महसूस कर रही थी। पिछले कुछ समय से इन्हें लगातार बुखार आ रहा था, मनोहर उन्हें रोज की तरह आज भी डाक्टर के पास चलने के लिए कह रहे थे। पर मेधा थी कि आज कम से कम बीमारी की बात नहीं करना चाहती थी। मनोहर जी के बार बार आग्रह करने पर मेधा मान गई और दिन में जाकर डाक्टर के पास जाकर चेकअप करा आई। रिपोर्ट दो दिन बाद आई। रिपोर्ट कुछ अच्छी नहीं थी। ब्लड रिपोर्ट को कन्फर्म करने के लिए मेधा को लेकर मनोहर जी ईलाज के लिए विमान से मुंबई आ गए थे। कुछ दिनों के चेकअप से डाक्टर ने बता दिया था कि मेधा को ब्लड कैंसर है।

मनोहर के पैरों के नीचे से जमीं निकल गई थी तो दोनों बेटे गहरे सदमें में थे। मुंबई में उपचार के दौरान ही मेधा नहीं रही, एक दिन विमान से ही ईलाज के लिए मुंबई गई थी, आज दूसरे विमान से मेधा का शव कफन में लिपटकर वापस आया था। यह देख बेटे अभिजीत के बालमन पर गहरी ठेस लगी थी, उसे संभालना कठिन था। इसके बाद बेटे ने अपने पिता मनोहर जी को जाने कितने वर्षों तक विमान में सफर नहीं करने दिया था। पहले मां, फिर पिता और आज अंर्धांगिनी के असमय जाने से मनोहर जी अंदर ही अंदर टूट चुके थे। इस गम से उभरने के लिए मनोहर ने अपने को दिन रात काम में झोंक दिया था। इसके साथ ही मनोहर के आंखों से एक अश्रु गिरा और वो अतीत से बाहर आ गए।

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मनोहर पर्रिकर जी ने राजनीति के प्रारम्भिक काल में संघचालक का पद संभाला। 1994 में इन्हें भाजपा के लिए उम्मीदवारी करने का अवसर दिया गया। विधानसभा चुनाव में मनोहर पर्रिकर जी विजयी हुए। इसके साथ ही इनके जीवन के दूसरे चरण की शुरुआत हो चुकी थी। मनोहर जी राजनैतिक परिवेश में सहजता महसूस नहीं करते थे, और अपनी काम, अपने परिवार, और पत्नी मेधा को समय देना चाहते थे। राजनीति मे प्रवेश के समय ही इन्होंने मन ही मन ठान लिया था कि बस दस वर्ष ही राजनीति में रहुंगा और उसके बाद अपना सारा ध्यान अपने परिवार को दूंगा।

राजनीति में दस वर्ष पूरे होते इससे पहले ही पिता, माता, मेधा सब चले गए। और इनके साथ ही इनको दिया वचन भी चला गया। मनोहर जी के लिए अब राजनीति और फैक्ट्री जीने की वजह हो गया था। काम करने के घंटे 12 से बढ़कर 18 हो गए थे। उन्नति की सीढियां चढ़ते मनोहर रक्षामंत्री बनें। रक्षामंत्री बनने पर इनका राजनीति में दिया गया योगदान किसी से छुपा नहीं है। इन्हीं के कार्यकाल में सर्जिकल स्ट्राईक की गई। जिसका श्रेय इनके साहसी निर्णय को जाता है।

भावनाओं से भरा, सागर सा ह्रदय रखने वाले, व्यक्तित्व के धनी डा मनोहर गोपाल कॄष्ण पर्रिकर जिन्हें हम सभी मनोहर पर्रिकर जी के नाम से जानते थे। 130 करोड़ देशवाशियों की आंखों में अश्रु छॊड़कर 17 मार्च 2019 को मनोहर पर्रिकर परलोक सिधार गए। सरल व सहज दिखने वाले मनोहर पर्रिकर इरादों से मजबूत और साहस के परिचायक थे। उनके मजबूत व्यक्तित्व की तुलना एक सख्त नारियल से की जा सकती है। जो बाहर से दिखने में कठोर और अंदर से मॄदु, मीठा और मुलायम होता है। जीवन के अंतिम समय में साहस का परिचय देते हुए मनोहर पर्रिकर सबके उदाहरण बने रहें। खुशी के लम्हों में आंखें नम करने वाले मनोहर पर्रिकर जब गए तो, जाते हुए अपने विरोधियों, आलोचकों की आंखें नम कर गए।

एक सूर्य उदित हुआ, अपनी स्वर्णिम किरणों से इस जगत को प्रकाशित किया और सायंकाल में काल के आगोश में डूब गया। ऐसा क्यों हुआ, आज हम इस आलेख में उनकी जन्म पत्री के माध्यम से उनके जीवन की घटनाओं का विश्लेषण करेंगे, जानेंगे कि ऐसा हुआ तो क्यों हुआ?

मनोहर पर्रिकर जी का जन्म 13 दिसम्बर 1955 में गोवा में हुआ। इनकी कुंड्ली मीन लग्न और वृश्चिक राशि की है। तृतीय भाव में केतु, गुरु छ्ठे भाव में, मंगल अष्टम भाव, नवम भाव में राहु, चंद्र, सूर्य और शनि की युति है। कर्म भाव में शुक्र और बुध एक साथ स्थित है। इस प्रकार लग्नेश गुरु रोग भाव में स्थित हों, इन्हें स्वास्थ्य विकार जल्द होने के योग बना रहे है। मनोहर पर्रिकर जी का जन्म बुध के ज्येष्ठा नक्षत्र में हुआ था।

ज्येष्ठा नक्षत्र ने इन्हें हष्ट पुष्ट शरीर, ऊर्जा शक्ति और आकर्षक व्यक्तित्व दिया। धीरता, गंभीरता और निर्मल ह्र्दय का स्वामी बनाया। अपने नक्षत्र प्रभाव से मनोहर जी अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार ही कार्य करना अधिक पसंद करते थे। कुछ विषयों में ये हठी भी बने रहें। सिद्धांतों का पालन सख्ती से करते थे। यही वजह थी कि तमाम विरोधों और परामर्शों के विपरीत अपने सिद्धांतों के अनुसार निर्णय लेते थे। ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्में जातक होने के फलस्वरुप इन्हें आजीविका क्षेत्र में समय से पूर्व उतरना पड़ा। यह नक्षत्र मूल नक्षत्रों में से एक होने के कारण इस नक्षत्र ने इन्हें स्वास्थ्य विकार और आयु दोष भी दिया।

तीसरे घर में केतु ने इन्हें शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, विरोधियों को शांत करने का गुण दिया। जीवन में दर्द, भय, चिंता और अस्थिरता दी। यहां केतु बहुत समृद्धि देता है, लेकिन मन की शांति छिन लेता है। रोगी, साहस और उदारता भी देता है। अष्टम भाव में मंगल की स्थिति ने इन्हें विशेष साहस दिया। जोखिमपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता दी। तीसरे भाव में केतु पर मंगल की अष्टम दृष्टि, शनि की सप्तम दृष्टि ने इन्हें तकनीकि क्षेत्रों का जानकार बनाया। सप्तमेश बुध और अष्टमेश शुक्र की कर्म भाव में युति ने इन्हें अतिरिक्त कार्यभार वहन करने की क्षमता दी, अपनी फैक्ट्री के साथ ये राजनीति में अपना परचम लहरा सकें। सप्तमेश बुध यहां अस्त हैं और बहुत कम अंशों के साथ शनि से अंशों में निकटतम है।

सप्तम भाव चूंकि जीवन साथी का भाव और सप्तमेश का अस्त और कमजोर होना, इनके जीवन साथी के स्वास्थ्य और आयु के लिए विपरीत रहा। पिता भाव में चार ग्रहों की युति ने इनके सिर से पिता का साया जल्द छिन लिया, माता की आयु के लिए एकादश भाव का विचार किया जाता है, एकादश भाव के स्वामी शनि है, और शनि भी ग्रह युद्ध में पराजित हैं और फल देने की स्थिति में नहीं है। अब बात करें यदि इनकी आयु की तो अष्ट्म भाव में मंगल मारकेश की स्थिति आयु का हरण करती है। इस लग्न के लिए मंगल और बुध दोनों मारकेश होते है। और दोनों ही सुस्थिर नहीं है।

1978 में तकनीकि ग्रह केतु में शनि की दशा अवधि में इन्होंने आई आई टी मुम्बई से स्नातक की शिक्षा पूर्ण की। केतु और शनि दोनों ही तकनीकि शिक्षा देने वाले ग्रह है। अंतर्द्शानाथ शनि पंचमेश चंद्र के साथ हैं और शनि की दशम दॄष्टि शिक्षा कारक गुरु पर है। नवमांश कुंड्ली में अंतर्द्शानाथ शनि स्वयं पंचमेश है और महादशानाथ केतु के साथ द्वादश भाव में युति संबंध में है। इस प्रकार यह दशा इन्हें तकनीकि शिक्षा देने की योग्यता रखती थी। सूर्य महादशा में राहु की अंतर्द्शा अवधि में इन्हें विशिष्ट भूतपूर्व छात्र की उपाधि से सम्मानित किया गया। महादशानाथ सूर्य और अंतर्द्शानाथ राहु दोनों एक साथ पंचम से पंचम नवम भाव में एक साथ है।

सूर्य कुंड्ली में प्रतियोगी भाव के स्वामी हैं, शिक्षा कारक गुरु के नक्षत्र में हैं और राहुस्वनक्षत्र में हैं एवं दोनों ग्रह अंशों में निकटतम है। 1994 में शुक्र/शनि दशा अवधि में राजनीति में उम्मीदवार के रुप में चयनित हुए। शुक्र महादशा में शनि की अंतर्द्शा ने इन्हें राजनीति में आगे आने का अवसर दिया। राजनीति के कारक ग्रह राहु के साथ शनि की युति इन्हें इस क्षेत्र में लेकर आई। एक खास बात कि यहां शनि स्वनक्षत्र में है और मनोकामनाओं के भाव एकादश भाव के स्वामी है और नवम भाव से अपने भाव को बल भी दे रहे है।

24 अक्तूबर 2000 को सूर्य/मंगल दशा में गोआ के मुख्यमंत्री बनें और इनकी सरकार ज्यादा नहीं चली। महादशानाथ सूर्य को अन्य ग्रहों का सहयोग प्राप्त तो हो रहा हैं परन्तु मारकेश मंगल का अष्टम भाव में होना इन्हें मुख्यमंत्री पद तक लेकर तो आया परन्तु अधिक लम्बे समय तक स्थिर नहीं रख सका। 13 मार्च 2017 को इन्हें गोवा के दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपद ली। मंगल महादशा में राहु की अंतर्द्शा में ये एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनें और मृत्यु तक इसी पद पर बने रहें। अपनी खास कार्यशैली और साफ सुथरी छवि के चलते इन्हें गोवा में मि। क्लिन का नाम दिया जाता है। सात्विक ग्रह गुरु की लग्न में मीन राशि ने इन्हें एक साफ सुथरी छवि दी और इन्हें दयालुता का स्वभाव भी दिया।

मनोहर पर्रिकर जी और इनकी पत्नी दोनों का असमय देहांत कैंसर रोग से हुआ। जन्मपत्री में कर्क राशि पीड़ित हैं, चंद्र नीच राशि में हैं, राहु, शनि और सूर्य से पीडित हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र यह कहते है कि एक ही राशि में चंद्र, राहु, शनि, सूर्य और केतु का प्रभाव हो तो व्यक्ति को कैंसर होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। यह योग इनकी कुंड्ली में पूर्णत: बन रहा है। इस योग ने इन्हें असमय हमसे इन्हें छिन लिया।


ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव

कुंडली विशेषज्ञ और प्रश्न शास्त्री

ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव पिछले 15 वर्षों से सटीक ज्योतिषीय फलादेश और घटना काल निर्धारण करने में महारत रखती है. कई प्रसिद्ध वेबसाईटस के लिए रेखा ज्योतिष परामर्श कार्य कर चुकी हैं। आचार्या रेखा एक बेहतरीन लेखिका भी हैं। इनके लिखे लेख कई बड़ी वेबसाईट, ई पत्रिकाओं और विश्व की सबसे चर्चित ज्योतिषीय पत्रिका फ्यूचर समाचार में शोधारित लेख एवं भविष्यकथन के कॉलम नियमित रुप से प्रकाशित होते रहते हैं। जीवन की स्थिति, आय, करियर, नौकरी, प्रेम जीवन, वैवाहिक जीवन, व्यापार, विदेशी यात्रा, ऋणऔर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, धन, बच्चे, शिक्षा,विवाह, कानूनी विवाद, धार्मिक मान्यताओं और सर्जरी सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं को फलादेश के माध्यम से हल करने में विशेषज्ञता रखती हैं।