मकर संक्रांति 2024 महात्मय - सूर्य चले पुत्र के घर - उत्तरायण में होंगे सभी शुभ काम पूरे | Future Point

मकर संक्रांति 2024 महात्मय - सूर्य चले पुत्र के घर - उत्तरायण में होंगे सभी शुभ काम पूरे

By: Acharya Rekha Kalpdev | 22-Dec-2023
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मकर संक्रांति 2024 महात्मय - सूर्य चले पुत्र के घर - उत्तरायण में होंगे सभी शुभ काम पूरे

सनातन हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति पर्व बहुत ही खास महत्व रखता है। मकर संक्रांति अपने आप में कई पर्वों को समेटे हुए होती है। भारत के प्रत्येक कोने में इसे अलग अलग नाम और अलग अलग प्रकार से मनाया जाता है। अनेक प्रकार से इसका महत्व होने के कारण यह भौगोलिक, आधात्मिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से महत्व रखता है।  ख़ास बात यह है की इस दिन से खरमास समाप्त होता है और शुभ कार्यों के मुहूर्त प्रारम्भ होते है।

मकर संक्रांति का ज्योतिषीय महत्त्व क्या है - जानें

मकर संक्रांति वैदिक ज्योतिष के लिए इसलिए विशेष है, क्योंकि इस दिन राशिचक्र में बड़ा बदलाव होता है। राशिचक्र के इन बदलाव को हम अपने आसपास के मौसम, जीवन, माहौल, और समाज में महसूस करते है। जीवन को जीवन देने वाली पृथ्वी की गति है। पृथ्वी की गति से ही, ऋतुओं का निर्माण होता है, मौसम बदलता है, प्रकृति करवट लेती है, बीज अंकुरित होते है, पौधे मुस्कुराते है, फसले लहलहाती है, फूल लगते है और फलों का रूप लेते है। इस धरा पर जीवन का मुख्य कारण पृथ्वी का गतिशील होना है। घूमना है, इसलिए सब एक तय समय पर होता है, एक तय समय पर ऋतुएँ अपने आप बदल जाती है, उन्हें बदलने के लिए कोई स्विच ऑन नहीं करना पड़ता है। मकर संक्रांति का पर्व आभार पर्व है, उस प्रकृति को, उस सृष्टि को, इस धरा को।

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मकर संक्रांति का शाब्दिक अर्थ

मकर संक्रांति पर्व का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार समझ सकते है। मकर से अभिप्राय यहाँ मकर राशि से है, मकर राशि पर्व के दिन सूर्य मकर राशि, शनि की राशि में प्रवेश करते है। संक्रांति को सूर्य ग्रह के राशि प्रवेश के अर्थ में समझा जाता है। इसके अलावा संक्रांति का एक और अर्थ है, पृथ्वी का सूर्य के सापेक्ष भ्रमण करना। प्रत्येक एक माह में सूर्य राशि बदलते है। सूर्य का राशि चक्र अप्रैल माह की 14 या 15 तारीख को मेष राशि में प्रवेश के साथ शुरू होता है। 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में गोचर करना शुरू करते है।

कब है मकर संक्रांति 14 को या 15 को जाने

हम जानते है की सूर्य छह माह उत्तर दिशा में छ राशियों में भ्रमण करते है, और शेष छ माह दक्षिण दिशा की छ राशियों में गोचर करते है। मकर राशि में सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में आते है, ऐसे में सूर्य पिता और पुत्र शनि का मिलन होता है। शनि अपने पिता सूर्य से शत्रु सम्बन्ध रखते है, और सूर्य पिता है, अपने पुत्र को मित्र सम्बन्ध रखते है। पिता पुत्र के मिलन के पर्व को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष सूर्य 15 जनवरी 2024, रात्रि 02:43 के समय में मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे।

संक्रांति पर क्या करें 

जैसा की हम जानते है की सूर्य एक माह में एक राशि में रहते है, इस प्रकार एक वर्ष में बारह राशियों में भ्रमण करते है। सूर्य का राशि बदलना संक्रांति कहलाता है। 12 राशियों में सूर्य भ्रमण से 12 संक्रांतियों का जन्म होता है। 12 में से चार संक्रांतियों को विशेष शुभ माना गया है। जिसमें सूर्य का 1, 4, 7 और 10 राशियां हैं। उत्तरायण के साथ हिन्दू पर्वों का आगमन होता है। हिन्दू सनातन धर्म में उत्तरायण को देवताओं का दिवस कहा गया है और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि की संज्ञा दी गई है। धर्म शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति, सूर्य उत्तरायण होने पर नदी, संगम, तालाब में स्नान कर, दान, दक्षिणा देना अतिशुभ माना गया है। इस दिन तिल का दान और सेवन भी शुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है की इस दिन दान, धर्म करने पर कई गुना होकर दान का पुण्य फल प्राप्त होता है।

मकर संक्रांति पर्व पर क्या करें? कैसे करें?

मकर संक्रांति का पर्व प्रकृति में बदलाव का एक उत्सव है। मकर संक्रांति पर्व जब-जब आता है तब तब अपने साथ आकाश में उड़ती सैंकड़ों रंग बिरंगी पतंगों को अपने साथ लाता है और साथ लाता है अपने गुड़, तिल, पकवान की खुशबू।मकर संक्रांति का पर्व खेती, किसानों, ग्रामीण जीवन, गाँवों से जुड़ा पर्व है। इस समय में फसल पककर तैयार होती है। लोग गुड़, तिल का अग्नि देव को भोग लगाते है और स्वयं खाते है। इस दिन विशेष रूप से खिचड़ी बनाई जाती है। खिचड़ी हमारे भारत का राष्ट्रीय भोजन भी है। इसलिए हम सभी का प्रिय भोजन भी है। पर रोजमर्रा के जीवन में बनाई जाने वाली खिचड़ी, और मकर संक्रांति के अवसर पर बनाई जाने वाली खिचड़ी में अंतर् होता है। मुख्य रूप से खिचड़ी में चावल का प्रयोग किया जाता है, वैदिक ज्योतिष में चावल चंद्र ग्रह की कारक वस्तु है। सामग्री के रूप में इसमें उड़द दाल - शनि ग्रह, हल्दी - बृहस्पति ग्रह, हरी सब्जियां- बुध ग्रह की कारक वस्तु मानी गई है। इस प्रकार इस दिन इन वस्तुओं का एक साथ सेवन करने से इन सभी ग्रहों की शुभता हम प्राप्त करते है।

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मकर संक्रांति का पौराणिक महत्त्व

मकर संक्रांति पर्व प्रकृति के अलावा, आध्यात्मिक और पौराणिक महत्त्व भी रखता है। इस दिन भीष्म पितामह ने महाभारत युद्ध के बाद शरीर छोड़ परलोक गमन किया था। एक मान्यता के अनुसार उत्तरायण में शरीर त्यागने पर जीव आत्मा स्वर्ग गमन करती है। पितामह ने बेहद शारीरिक कष्ट में होने के बाद भी सूर्य के उत्तरयण होने के बाद ही प्राण त्यागे थे।

मकर संक्रांति से शुभ कार्यों की शुरुआत

मकर संक्रांति पर्व पर सनातन धर्म, हिन्दू धर्म में सभी शुभ कार्य शुरू होते है। इस दिन से खरमास की अशुभता का समापन होता है और विवाह, मुहूर्त और गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य शुरू होते है।


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