भावों के कारकत्व

By: Future Point | 14-Aug-2018
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भावों के कारकत्व

अब तक हम जान चुके है कि लग्न भाव क्या है, कुंडली में कितने भाव होते हैं और भारत के विभिन्न राज्यों में कितने प्रकार की कुंडलियों का प्रयोग प्रचलन में हैं। आगे बढ़ने से पूर्व अब तक जो पढ़ा है उसे बार बार पढ़ कर आत्मसात कर लें। इससे बाद आने वाले विषयों को आप सरलता से समझ पायेंगे। आईये अब इससे आगे बढ़ते हैं-

कुंडली में बारह भाव होते हैं प्रत्येक भाव के लिए कुछ ग्रह निश्चित किए गए है जिन्हें कारक ग्रह का नाम दिया गया है। कारक ग्रह वास्तव में उस भाव के कार्य करने का कार्य करता है। इसी वजह से इसे भाव का कारक कहा जाता है। भाव का कार्य कारकत्व कहलाता है। कुंडली के बारह भावों को अनेक नाम दिए गए है। हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर निरंतर घूम रही हैं। यदि हम आकाश की ओर देखें तो हम पायेंगे कि वहां राशि चक्र की सभी राशियां एक एक करके समयानुसार उदित होती है। सभी राशियों के उदय और अस्त होने का कुल समय २४ घंटे है। इस प्रकार सभी राशियां २४ घंटे में पूर्वी क्षितिज पर एक बार अवश्य उदित होती हैं। २४ घंटे के बाद पहली राशि फिर से उदित होती हैं।

कुंडली के बारह भाव

कुंडली का सबसे पहला भाव लग्न भाव है। इस भाव को प्रथम भाव, तनु भाव और अन्य कई नामों से जाना जाता है। इसके बाद के भाव को द्वितीय भाव का नाम दिया गया है। इसके बाद के अन्य भावों का विचार इसी प्रकार किया जाता है। कुंडली के सभी बारह भावों से जीवन के विभिन्न विषयों की जानकारी ली जा सकती है। इसका विस्तार में वर्णन निम्न हैं-

प्रथम भाव (लग्न भाव)


प्रथम भाव से निम्न विषयों का विचार किया जाता हैं-

देह, तनु, शरीर रचना, व्यक्तित्व, चेहरा, स्वास्थ्य, चरित्र, स्वभाव, बुद्धि, आयुष्य, सौभाग्य, सम्मान, प्रतिष्ठा और समृद्धि।

द्वितीय भाव (धन/कुटुम्ब भाव)


संपत्ति, परिवार, वाणी, दायीं आंख, नाखून, जिह्वा, नासिका, दांत, उद्देश्य, भोजन, कल्पना, अवलोकन, जवाहरात, गहने, कीमती पत्थर, अप्राकृतिक मैथुन, ठगना व जीवनसाथियों के बीच हिंसा।

तृतीय भाव (पराक्रम/सहोदर भाव)


छोटे भाई और बहन, सहोदर भाई बहन, संबंधी, रिश्तेदार, पड़ोसी, साहस, निश्चितता, बहादुरी, सीना, दायां कान, हाथ, लघु यात्राएं, नाड़ी तंत्र, संचारण, संप्रेषण, लेखन, पुस्तक संपादन, समाचार पत्रों की सूचना, विवरण, संवाद इत्यादि लिखना, शिक्षा, बुद्धि इत्यादि।

चतुर्थ भाव (सुख/मातृ भाव)


माता, संबंधी, वाहन, घरेलू वातावरण, खजाना, भूमि, आवास, शिक्षा, जमीन-जायदाद, आनुवांशिक प्रकृति, जीवन का उत्तरार्ध भाग, छिपा खजाना, गुप्त प्रेम संबंध, सीना, विवाहित जीवन में ससुराल पक्ष और परिवार का हस्तक्षेप, आभूषण, कपड़े।

पंचम भाव (संतान/शिक्षा भाव)


संतान, बुद्धि, प्रसिद्धि, श्रेणी, उदर, प्रेम संबंध, सुख, मनोरंजन, सट्टा, पूर्व जन्म, आत्मा, जीवन स्तर, पद, प्रतिष्ठा, कलात्मकता, हृदय, पीठ, खेलों में निपुणता, प्रतियोगिता में सफलता।

षष्ठ भाव (रिपु भाव)


रोग, ऋण, विवाद, अभाव, चोट, मामा, मामी, शत्रु, सेवा, भोजन, कपड़े, चोरी, बदनामी, पालतू पशु, अधीनस्थ कर्मचारी, किरायेदार, कमर।

सप्तम भाव (कलत्र भाव)


पति/पत्नी का व्यक्तित्व, जीवनसाथी के साथ रिश्ता, इच्छाएं, काम शक्ति, साझेदारी, प्रत्यक्ष शत्रु, मुआवजा, यात्रा, कानून, जीवन के लिए खतरा, विदेशों में प्रभाव और प्रतिष्ठा, जनता के साथ रिश्ते, यौन रोग, मूत्र रोग।

अष्टम भाव (आयु/मृत्यु भाव)


आयु, मृत्यु का प्रकार यानी मृत्यु कैसे होगी, जननांग, बाधाएं, दुर्घटना, मुफ़्त की संपत्ति, विरासत, बपौती, पैतृक संपत्ति, वसीयत, पेंशन, परिधान, चोरी, डकैती, चिंता, रूकावट, युद्ध, शत्रु, विरासत में मिला धन, मानसिक वेदना, विवाहेत्तर जीवन।

नवम भाव (भाग्य/धर्म भाव)


सौभाग्य, धर्म, चरित्र, दादा-दादी, लंबी यात्राएं, पोता, बुजुर्गों व देवताओं के प्रति श्रद्धा व भक्ति, आध्यात्मिक उन्नति, स्वप्न, उच्च शिक्षा, पत्नी का छोटा भाई, भाई की पत्नी, तीर्थयात्रा, दर्शन, आत्माओं से संपर्क।

दशम भाव (कर्म भाव)


व्यवसाय, कीर्ति, शक्ति, अधिकार, नेतृत्व, सत्ता, सम्मान, सफलता, रूतबा, घुटने, चरित्र, कर्म, उद्देश्य, पिता, मालिक, नियोजक, अधिकारी, अधिकारियों से संबंध, व्यापार में सफलता, नौकरी में तरक्की, सरकार से सम्मान।

एकादश भाव (लाभ भाव)


लाभ, समृद्धि, कामनाओं की पूर्ति, मित्र, बड़ा भाई, टखने, बायां कान, परामर्शदाता, प्रिय, रोग मुक्ति, प्रत्याशा, पुत्रवधू, इच्छाएं, कार्यों में सफलता।

द्वादश भाव (व्यय भाव)


हानि, दण्ड, कारावास, व्यय, दान, विवाह, जलाश्रयों से संबंधित कार्य, वैदिक यज्ञ, अदा किया गया जुर्माना, विवाहेत्तर काम क्रीड़ा, काम क्रीड़ा और यौन संबंधों से व्युत्पन्न रोग, काम क्रीड़ा में कमजोरी, शयन सुविधा, ऐय्याशी, भोग विलास, पत्नी की हानि, शादी में नुकसान, नौकरी छूटना, अपने लोगों से अलगाव, संबंध विच्छेद, लंबी यात्राएं, विदेश में व्यवस्थापन।

यह तो रही बारह भावों से विचार किए जाने वाले विषयों की। आईये अब बात करें विभिन्न भावों के कारक ग्रहों की -

भाव ग्रह भाव ग्रह
1 सूर्य 7 शुक्र
2 बृहस्पति 8 शनि
3 मंगल, बुध 9 सूर्य, बृहस्पति
4 चंद्र, शुक्र 10 बुध, सूर्य, बृहस्पति एवं शनि
5 बृहस्पति 11 बृहस्पति
6 मंगल, शनि 12 शनि

ग्रहों के कारकत्व

ग्रह कारक
सूर्य पिता, प्रभाव, ऊर्जा
चंद्र माता, मन
मंगल भाई, साहस
बुध व्यवसाय, वाणी, शिक्षा
बृहस्पति संतान, धन, समृद्धि, बुद्धिमत्ता
शुक्र विवाह, भौतिक सुख, आनंद
शनि आयु, दुःख, विलंब
राहु मामा पक्ष से संबंध
केतु पिता पक्ष से संबंध


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