राजनीति और ज्योतिष में महिला का सशक्तिकरण - ज्योतिषीय अध्ययन | Future Point

राजनीति और ज्योतिष में महिला का सशक्तिकरण - ज्योतिषीय अध्ययन

By: Acharya Rekha Kalpdev | 15-Dec-2023
Views : 2636राजनीति और ज्योतिष में महिला का सशक्तिकरण - ज्योतिषीय अध्ययन

21 सितम्बर 2023 का दिन भारतीय इतिहास में महिला सशक्तिकरण के नाम से अंकित हो गया है। भारत की बात करें तो गत 76 वर्षों में पहली बार राजनीती के क्षेत्र में महिलाओं की भागेदारी की कमी का अनुभव किया गया और, और राजनीती में उनकी निर्णय शक्ति को पहले से बेहतर करने के लिए “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” के नाम से बिल पेश किया गया और सरलता के साथ यह बिल पास भी हो गया। ऐसे में वर्ष 2023 को महिला भागेदारी के रूप में विशेष रूप से याद रखा जाएगा। बिल के पास होने से संसद पदों पर महिलाओं की 33% सीटें आरक्षित हो गई। इस आरक्षण से राजनीति में महिलाओं का वर्चस्व निसंदेह बढ़ा है।

लम्बे समय तक राजनीति केवल पुरुषों का कर्म क्षेत्र रही है, यह बहुत खेद का विषय है। लम्बे समय तक महिलाओं को किचन और घर गृहस्थी सँभालने के योग्य ही समझा गया। वहाँ भी उनकी निर्णय शक्ति को सीमित कर दीया गया था। ऐसे में वह न अपने परिवार के, और न ही अपने जीवन के निर्णय ले पाती थी। इस सोच ने उन्हें महिलाओं को राजनीती क्षेत्र में प्रवेश का अधिकार नहीं था। कुछ महिलाएं अवश्य राजनीती में कार्यरत थी, जुडी हुई थी, परन्तु निर्णय शक्ति में उनका कुल प्रतिशत ना के बराबर था। समय बीतने पर महिलाओं की राजनीती स्थिति में सुधार हुआ। गहराई से विचार करें तो हम पाते है कि राजनीती में लैंगिंग समानता कि कमी सिर्फ भारत में ही नहीं है, अपितु सारे विश्व में इस कमी महसूस कि जा रही है। संयुक्त राष्ट भी अनेक बार इस बात पर जोर दे चुका है कि महिलाओं और पुरुषों को संसद में निर्णय लेने का बराबर का अधिकार मिलना ही चाहिए। फिर भी राजनीति में लैंगिंग समानता अभी कोसों दूर है।

यूं तो अधिकतर राष्ट्रों कि संसदों में महिलाएं दिखाई दे रही हैं, कुछ राष्ट्रों में महिला राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री भी हैं। फिर भी हर आधुनिक राष्ट्र में लैंगिक असमानता मौजूद है, खासकर राजनीति में। महिलाएं अभी भी पुरुषों की तरह राजनीति में उतनी गहराई से शामिल नहीं हैं। कई देशों, विशेषकर एशियाई देशों में, महिला सांसदों का अनुपात कम है और अधिकांश लोग इस कथन पर विश्वास करते हैं कि "पुरुष बेहतर राजनीतिक नेता बनते हैं।

राजनीति में महिलाओं की भूमिका / Role of Women in Politics

आंकड़ों कि बात करें तो मई 2022 तक पाकिस्तान में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 20 प्रतिशत था, बांग्लादेश में 21 प्रतिशत और नेपाल 34 प्रतिशत था। इस मामले में भारत इन 3 देशों से निचले पायदान पर खड़ा हुआ था। अक्टूबर 2021 तक संसद सदस्यों के बीच मात्र 10.5 % महिलाओं की भागीदारी थी। यही हाल राज्य विधानसभाओं का भी दिखा, जहां विधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या मामूली 9% औसत अनुपात देखा गया। 21 सितम्बर 2023 को नारी शक्ति वंदन अधिनियम के पास होने पर लोकसभा और राज्य सभा दोनों में महिलाओं का  33% आरक्षण सुनिश्चित हो गया है। राजनीति में महिला भागेदारी के क्षेत्र में यह एक दमदार कदम कहा जा सकता है।

राजनीति में महिलाओं कि भागेदारी बढ़ने से प्रश्न यह उठता है कि आजादी के 7 दशक से अधिक वर्ष का समय बीत जाने के बाद साल  2023 में ही क्यों नारी शक्ति वंदन बिल आया और सहजता के साथ पास भी गया। आखिर 2023 में ऐसा क्या हुआ? इसका जवाब जानने से पूर्व हम ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागेदारी पर विचार कर लेते है-

ज्योतिष में महिलाओं की भूमिका / Role of women in Astrology

टैरो रीडर हो, या रेकी, वैदिक ज्योतिषी हो या अंक ज्योतिषी, रमल, वास्तु, कॉफी मग एस्ट्रोलॉजी, फेस रीडिंग पामिस्ट्री, सिग्नेचर एस्ट्रोलॉजी, शकुनशास्त्र, प्रश्न कुंडली, लाल किताब एस्ट्रोलॉजी आदि ज्योतिष क्षेत्रों में महिलाओं का रुझान तेजी से बढ़ा है  और महिलाएं ज्योतिष विद्या सिखने के लिए 2015 के बाद से अधिक संख्या में प्रवेश ले रही है। ख़ुशी की बात यह है की ज्योतिष विद्या आज की महिलाओं का पसंदीदा विषय भी बनता जा रहा है। कुछ समय पूर्व तक महिलाएं घर के काम काज से निबटकर टीवी में डेली शॉप देखती थी, परन्तु समय का पहिया घूमा और महिलाओं ने अपने समय को, अपनी योग्यता को, अपनी ऊर्जा को सिखने में लगाना शुरू किया, उसी का परिणाम है की महिलाएं आज सभी क्षेत्रों में अग्रणीय देखी जा रही है, विशेष रूप से ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में।

ज्योतिष के क्षेत्र में और राजनीति के क्षेत्र में विशेष रूप से महिलाओं की सहभागिता बढ़ने के ज्योतिषीय कारणों पर आइये विचार करते है -इसके विश्लेषण के लिए भारत कि कुंडली का प्रयोग हम यहाँ करेंगे -

स्वतंत्र भारत कि कुंडली वृषभ लग्न और कर्क राशि की है। लग्न भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु विराजित है। सत्ता कारक ग्रह सूर्य तृतीय भाव में शनि, बुध, चंद्र और शुक्र चार ग्रहों की युति में है। लगभग 28 अंश के साथ राशि के अंत में है। महिला कारक ग्रह शुक्र और चंद्र के साथ है। इस युति में शुक्र अस्त है, शनि से अंशों में निकटम है। ज्योतिष विद्या में महिलाओं का विचार करने के लिए चंद्र और शुक्र दोनों का विचार किया जाता है। दोनों ही स्त्री प्रधान ग्रह है और दोनों ही ग्रह सत्ता कारक भाव दशम भाव से षडाष्टक योग में है।

इस समय भारत की कुंडली में चंद्र महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा जुलाई 2023 से मार्च 2025 तक के लिए प्रभावी है। 2015 से चंद्र की महादशा प्रारम्भ हुई और तब से हम देखते है की देश, समाज, और राजनीति में महिलाओं की भागेदारी बढ़ी है। जुलाई 2023 में चंद्र में केतु का अंतर समाप्त हुआ और शुक्र का अंतर प्रारम्भ हुआ। शुक्र ग्रह की अन्तर्दशा के प्रारम्भ से ही भारतीय संसद में महिलाओं की भागेदारी की औपचारिक शुरुआत होनी शुरू हो गई थी।  एक सशक्त विचार को धरातल पर उतारने में निसंदेह मेहनत लगती है।

चंद्र की महादशा के साथ ही भारतीय परिवेश में महिलाओं की भागेदारी में चमत्कारिक वृद्धि हुई है। यह वृद्धि हम समाज, परिवार के साथ साथ, करियर के प्रत्येक क्षेत्र में देख सकते है। विशेष रूप से ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में भी आज महिलाएं बहुतायत में देखी जा सकती है। वैदिक विद्याओं को सिखने, समझने और शोध करने में महिलाओं की भूमिका अन्य क्षेत्रों की तुलना में 2015 के बाद से तेजी से बड़ी है।

चंद्र की महादशा 2025 तक रहने वाली है। इसके पश्चात मंगल की 7 वर्ष की महादशा शुरू होगी, मंगल भारत की कुंडली के अनुसार सप्तमेश और द्वादशेश होते है, इस दशा काल में संभव है की महिलाएं अपने ज्योतिष करियर का विस्तार विदेश, दूर स्थानों तक भी करें क्योंकि मंगल सप्तम और द्वादश भाव से सम्बंधित है और दोनों ही भाव दूरस्थानों का संकेत देते है।

कुछ दशक पूर्व तक भारतीय समाज की परम्परागत व्यवस्था में महिलायें आजीवन पिता, पति और पुत्र के संरक्षण में जीवन-यापन करती रही थी। आज चूल्हे चौके से निकल कर राजनीति जैसे चातुर्ययुक्त विषय और ज्योतिष जैसे गूढ़ विषयों की जानकर बन, दुनिया के दो सबसे मुश्किल विषयों में दक्षता प्राप्त कर सफलता की एक नई उड़ान भर रही है। फिर भी भारतीय संविधान में पुरूषों एवं महिलाओं को समान दर्जा और अधिकार दिये जाने के बावजूद इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि विकास और सामाजिक स्तर की दृष्टि से महिलायें अभी पुरूषों से काफी पीछे हैं। अंत में यही कहना सही रहेगा की -

 

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सार

हौसलों कि उड़ान अभी बाकी है, मन के कई अरमान अभी बाकी है

अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीन, अभी तो पूरा आसमान बाकी है