श्रीयंत्र कैसे करें इसका उपयोग
By: Future Point | 26-May-2018
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श्री से अभिप्राय: देवी लक्ष्मी से हैं। श्री यंत्र देवी लक्ष्मी का यंत्र हैं। पुराण शास्त्रों के अनुसार श्रीयंत्र में अदृश्य शक्ति के रुप में सभी देवी-देवता विराजमान रहते हैं। यही वजह हैं कि श्रीयंत्र को यंत्रों में सबसे उच्च स्थान दिया गया हैं। विभिन्न धर्म-शास्त्रों ने श्रीयंत्र को मोक्ष देने वाला कहा हैं। अन्य अनेक धर्म शास्त्रों जैसे - जैन धर्म में इसकी भूरी-भूरी सराहना की गई है। देवता को प्रसन्न करने के लिए मूर्ति या प्रतिमा रुप में इनका पूजन करने के स्थान पर यंत्रों के रुप में इनका पूजन करना अधिक फलदायी माना गया हैं। यहां तक कहा गया है कि देवता और यंत्र दोनों एक दूसरे के लिए पूरक का कार्य करते हैं। यदि एक को शरीर कहा जाए तो दूसरे को इसकी आत्मा कहा जाएगा। यंत्रों को सिद्ध करने के लिए मंत्र शक्ति का प्रयोग किया जाता हैं। यंत्र मात्र धन आगमन या मनोनूकुल इच्छा पूर्ति का साधन मात्र ही नहीं हैं अपितु यह वास्तु दोष निवारण का कार्य भी करता हैं। श्रीयंत्र में निहित अद्भुत शक्तियों के फलस्वरुप ही कहा गया हैं कि इसके दर्शन मात्र से ही सभी पापों का नाश होता हैं। विधिवत अभिमंत्रित, प्राण प्रतिष्ठित श्रीयंत्र को मंदिर या व्यापारिक क्षेत्र में स्थापित कर इसके सम्मुख प्रतिदिन कमलगट्टे की माला पर लक्ष्मी मंत्र का जाप करें या श्रीसूक्त का पाठ करें। इससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर घर से निर्धनता का नाश करती हैं। इसे मंदिर या तिजोरी दोनों स्थानों में रखा जा सकता हैं।
इस यंत्र के प्रभाव से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी की प्राप्ति होती हैं। यह अष्टसिद्धियों एवं नौ निधियों को देना वाला यंत्र हैं। आर्थिक, सामाजिक, व्यक्तिगत स्वास्थ्य और आर्थिक क्षेत्रों में सफलता देने वाला यंत्र कहा गया हैं। रोग, शोक के शमन व अर्थ की प्राप्ति का यह अचूक उपाय हैं। पंचतत्वों में संतुलन बनाए रखने में श्रीयंत्र उपयोगी भूमिका निभाता हैं। श्रीयंत्र अपने साधक को धन, सुख, समृद्धि, यश, ऐश्वर्य और कीर्ति देने वाला यंत्र हैं। जहां पर यह श्रीयंत्र का पूजन किया जाता है, वहां सभी रुके हुए कार्य बनने शुरु हो जाते हैं। जो व्यक्ति नियमित रुप से इसकी पूजा करता हैं उसके सभी दुख और दारिद्रय को दूर करता हैं। श्रीयंत्र के बारे में कहा जाता हैं कि इसकी कृपा से व्यक्ति को दशमहाविद्याओं की प्राप्ति संभव होती हैं। आर्थिक बाधाओं के निवारण और सफलता के लिए इस यंत्र को व्यापार स्थल में स्थापित कर नित्य दर्शन पूजन करना चाहिए।
श्रीयंत्र धातु और उपयोगिता
- श्री यंत्र अनेक प्रकारों और अनेक धातुओं में पाया जाता हैं। मानव शरीर जिस प्रकार बिना आत्मा या प्राण के निर्जीव रहता हैं। ठीक इसी प्रकार जब तक श्रीयंत्र में प्राणप्रतिष्ठित नहीं किया जाता हैं। यंत्र को प्राण प्रतिष्ठित करने की एक विशेष विधि हैं। इस विशेष प्रक्रिया से गुजरने के बाद, हवन-पूजन आदि करने के बाद ही यंत्र जागृत होता हैं। श्रीयंत्र सर्वसुख देने वाला यंत्र हैं।
- श्रीयंत्र विभिन्न धातुओं में पाया जाता हैं। धातु के अनुरुप इसके विभिन्न उपयोग निम्न प्रकार के हैं-
- व्यक्ति विशेष की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए श्रीयंत्र की धातु का चयन किया जाता हैं। जैसे- पारद श्रीयंत्र - पारद धातु भगवान शिव की प्रिय धातु हैं। दुर्लभ धातुओं की श्रेणी में यह धातु आती हैं। पारद धातु से निर्मित श्री यंत्र का पूजन भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं और आर्थिक स्थिति भी पहले से बेहतर होती हैं।
- स्फटिक श्रीयंत्र का पूजन धन धान्य की प्राप्ति और धन की देवी लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता हैं। यंत्र का पूजन मलिनताओं से शुद्ध करता हैं।
- सोने से निर्मित श्रीयंत्र का पूजन करने से व्यक्ति को सुख-ऐश्वर्य और मान-सम्मान की प्राप्ति होती हैं।
- मणि श्रीयंत्र बहुत दुर्लभ श्रीयंत्रों की श्रेणी में आता हैं।
- रजत श्रीयंत्र धन, सुख और व्यापारिक उन्नति का प्रतीक हैं। पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ इसका पूजन करने से व्यक्ति को करियर और व्यापार दोनों स्थानों पर लाभ की प्राप्ति होती हैं।
- ताम्बें से निर्मित यंत्र का पूजन सूर्य शुभता और सरकारी क्षेत्रों में सफलता देता हैं। यह माना जाता हैं कि श्रीयंत्र का नित्य दर्शन पूजन करने से लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। व्यापारिक स्थल या कार्यस्थल पर स्थापित कर पूजन करने से व्यापार दिन दुगुणी रात चौगुणी उन्नति देता हैं।
- घर में इसका पूजन करने से पारिवारिक सुख सौहार्द बढ़ता हैं। गृह्स्थ सुख बना रहता हैं।
- एकादशी, दीपावली और अन्य विशेष तिथियों पर श्रीयंत्र का पूजन करना विशेष शुभता देता हैं।