संतान और पति सुख के लिए इस तरह करें मां गौरी का व्रत...
By: Future Point | 25-Jan-2020
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माघ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को गौरी तृतीय का व्रत रखा जाता है। इसे तीज की तरह मनाया जाता है इसलिए इसे गौरी तीज भी कहा जाता है। इस दिन मां गौरी की आराधना की जाती है। विवाहित स्त्रियां यह व्रत पति और संतान की लंबी उम्र और उनकी ख़ुशहाली और कुंवारी स्त्रियां अच्छा जीवन साथी पाने के लिए रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां गौरी यानी माता पार्वती ने घोर तपस्या कर शंकर जी को पति के रूप में प्राप्त किया था। यहां जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि और महत्व के बारे में....
गौरी तीज व्रत 2020 कब है?
- इस वर्ष माघ माह में गौरी तीज का व्रत 28 जनवरी को रखा जाएगा।
- यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि तिल चतुर्थी का दिन भी इसी दिन पड़ रहा है।
पौराणिक संदर्भ
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो स्त्रियां विधि पूर्वक व्रत और मां गौरी की पूजा करती हैं उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है। उनका दांपत्य जीवन बहुत अच्छा रहता है और उन्हें संतान का सुख मिलता है। पुराणों में माता पार्वती का उल्लेख सती के रूप में मिलता है। कहा गया है कि माता पार्वती ने राजा दक्ष की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। वे भगवान शंकर से विवाह करना चाहती थीं इसलिए उन्होंने घोर तपस्या की। भगवान शंकर उनसे प्रसन्न हुए और उनकी इच्छा पूरी की। जिस दिन माता सती का शंकर यानी शिव जी के साथ विवाह हुआ था, वह माघ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया का दिन था। इसलिए मनचाहा वर पाने के लिए इस दिन कुंवारी स्त्रियां व्रत रखती हैं।
तीज की तरह किया जाता है यह व्रत
गौरी तृतीया का व्रत तीज की तरह किया जाता है। तीज की तरह ही इस दिन भी सभी स्त्रियां सज-धजकर हाथों में मेहंदी लगाती हैं। पारंपरिक पोशाक पहनती हैं और माथे पर सिंदूर लगाती हैं। माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं और पति व संतान सुख की कामना करती हैं। इस पर्व की खासियत यह है कि इस दिन न केवल विवाहित बल्कि कुंवारी स्त्रियां भी व्रत रखती हैं।
गौरी तीज (माघ) का महत्व
शास्त्रों एवं पुराणों में इस व्रत के महात्मय का वर्णन है। माना जाता है कि गौरी तृतीया के दिन अगर पूरे विधि विधान से माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना की जाए तो शीघ्र विवाह होता है और मनचाहा वर मिलता है। विवाहित स्त्रियों को पति और संतान सुख की प्राप्ति होती है। घर के सभी क्लेश दूर होते हैं और गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहती है।
गौरी तृतीया पर क्या करें दान
गौरी तृतीया के दिन भगवान शिव, गणेश और माता पार्वती की पूजा और दान करने का विधान है। इस दिन निम्न वस्तुएं दान करना आपके लिए लाभदायी होगा:
- भगवान गणेश को तिल और गुड़ के लड्डू और केला चढ़ाएं।
- शिव जी को दूध, जल और चावल का अभिषेक करें।
- माता पार्वती को श्रृंगार की चीज़ें भेंट करें।
पूजा संपन्न होने के बाद इन सभी वस्तुओं को किसी ज़रूरतमंद को दान करें।
गौरी तीज (माघ) 2020: व्रत एवं पूजा विधि
- गौरी तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके लाल वस्त्र पहनें। विवाहित स्त्रियां इस दिन अपनी शादी का जोड़ा पहन सकती हैं।
- उसके बाद घर के मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें और व्रत करने का संकल्प लें।
- माता पार्वती की मूर्ति को शुद्ध जल से स्नान कराएं और लाल फूल और लाल वस्त्र से सजाएं।
- ‘‘ऊँ साम्ब शिवाय नमः’’ मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को अष्टगंध का तिलक लगाएं और "ॐ ह्रीं गौर्ये नमः" मंत्र का जाप करते हुए माता पार्वती को कुमकुम का तिलक लगाएं।
- मूर्ति के सामने धूप-दीप जलाकर घर की परंपरा के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करें।
- माता पार्वती को लाल सिंदूर, लाल वस्त्र, लाल फूल समेत श्रृंगार की अन्य चीज़ें चढाएं।
- माता पार्वती और शिव को दूध, फल, तिल, नारियल और गुड़ का भोग लगाएं।
- भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें और उनकी कथा सुनें।
- पूजा ख़त्म होने बाद श्रृंगार और भोग की सभी चीज़ें किसी ज़रूरतमंद को दान करें।
गौरी शंकर रुद्राक्ष करें धारण
अगर आपके दांपत्य जीवन में अनेक परेशानियां पेश आ रही हैं तो इस दिन गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करने से आपको विशेष लाभ होगा:
- गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करने से आपके ऊपर मां गौरी और भगवान शिव की कृपा बनी रहती है। प्रेम और दांपत्य सुख में बढ़ोतरी होती है।
- वे स्त्रियां जो संतान सुख चाहती हैं लेकिन गर्भ धारण नहीं कर पा रही हैं, उन्हें यह रुद्राक्ष अवश्य पहनना चाहिए।
- इस रुद्राक्ष को अभिमंत्रित कर तिजोरी में रखने से आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता।
- आध्यात्मिक राह पर चलने के लिए इस रुद्राक्ष को चांदी की चेन में डालकर पहनें।
- गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य बीमारियों से दूर रहता है। वे स्त्री-पुरुष जो किसी योन समस्या से परेशान हैं, इस रुद्राक्ष को अवश्य धारण करें।
इसके अलावा जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं वे संतान गोपाल पूजा (Santan Gopal Puja) करवाएं और रोज़ाना संतान गोपाल यंत्र (Santan Gopal Yantra) धारण करें।
गौरी तीज (माघ) 2020 व्रत कथा: शिव और सती का विवाह
पुराणों एवं शास्त्रों में गौरी तीज से संबंधित कई कथाएं मिलती हैं। यहां हम आपको भगवान शिव और सती के विवाह की कथा सुना रहे हैं:
इस कथा के अनुसार सती ने पिता दक्ष से शिव से विवाह करने की इच्छा प्रकट की थी। मगर राजा दक्ष उनकी ये इच्छा पूरी करने के लिए तैयार नहीं होते। इस पर सती महल की सारी सुख-सुविधाएं त्यागकर वन में चली जाती हैं और शिव को पाने के लिए तप करने लगती हैं। उनके तप और आह्वान पर भगवान शिव प्रकट होते हैं और उन्हें वापिस महल जाने के लिए कहते हैं।
अपनी बेटी के लिए उचित वर खोजने के लिए राजा दक्ष स्वयंवर का आयोजन करते हैं जिसमें सभी देवताओं, दैत्य, गायक और किन्नरों आदि को निमंत्रण दिया गया लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा गया। उनका अपमान करने के लिए राजा दक्ष द्वारपाल की जगह सिर झुकाए शिव की प्रतिमा स्थापित करते हैं।
बेटी के विवाह के लिए राजा दक्ष ने अपने महल में बेहद भव्य स्वयंवर का आयोजन किया। सभी अतिथि सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण कर स्वयंवर में उपस्थित होते हैं। कोई हाथी तो कोई बड़े-बड़े रथ पर सवार होकर आता है। ढोल-नगाड़े बजते हैं। गायक अपनी मधुर आवाज़ में गीत गाते हैं। इसी बीच राजा दक्ष अपनी पुत्री सती को सभा में बुलवाते हैं। इस अवसर पर शिव भी अपने वाहन वृषभ पर सवार होकर आते हैं लेकिन वे ये सब कुछ आकाश से देख रहे होते हैं।
शिव की अनुपस्थिति में राजा दक्ष पुत्री से कहते हैं कि देखो सभा में एक से एक योग्य वर हैं। वह जिसे अपने अनुरूप पाए उसके गले में माला डाकर उसे अपने पति के रूप में स्वीकार कर सकती है। सती आकाश में शिव की ओर देख कर उन्हें प्रणाम करती है और माला भूमि पर रख देती है। शिव भूमि पर रखी माला गले में डालकर अचानक सभा में उपस्थित हो जाते हैं। इस दौरान शिव सभा में उपस्थित अन्य़ देवताओं की तरह ही सुंदर वस्त्र और अलग-अलग प्रकार के कीमती आभूषण धारण किए हुए थे।
इस प्रकार मन में शिव के प्रति अपने प्रेम का आह्वान करते हुए वह शिव प्रतिमा पर माला डाल देती है और शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लेती है। मगर राजा दक्ष इस विवाह को मानने से इनकार कर देते हैं। लेकिन ब्रह्म देव और अपने आराध्य देव भगवान विष्णु के कहने पर उन्हें इस विवाह को अपनी सवीकृति प्रदान करनी पड़ती है। उसके बाद सती महल से विदा होकर शिव के साथ कैलाश पर्वत पर रहने लगती हैं।
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