रत्न रहस्य / Gemstone Secrets - क्या आप रत्नों के विषय में ये बातें जानते है | Future Point

रत्न रहस्य / Gemstone Secrets - क्या आप रत्नों के विषय में ये बातें जानते है

By: Future Point | 01-Jul-2019
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रत्न रहस्य / Gemstone Secrets - क्या आप रत्नों के विषय में ये बातें जानते है

औषधि मणि मंत्राणां-ग्रह नक्षत्रा तारिका।
भाग्य काले भवेत्सिद्धिः अभाग्यं निष्फलं भवेत्।।

औषधि, रत्न एवं मंत्र ग्रह जनित रोगों को दूर करते हैं। यदि समय सही हो, तो इनसे उपयुक्त फल प्राप्त होते हैं। विपरीत समय में ये सभी निष्फल हो जाते हैं। जन साधारण रत्नों की महिमा से अत्यधिक प्रभावित है। लेकिन अक्सर रत्न और रंगीन कांच के टुकड़ों में अंतर करना कठिन हो जाता है। रत्न अपने रंग के कारण ही प्रभाव डालते हैं, ऐसी धारणा कई लोगों के मन में आती है परंतु ऐसा नहीं है। रत्न का रंग केवल उसकी खूबसूरती के लिए होता है।

रत्नों की लोकप्रियता बढ़ने का कारण यह भी रहा है कि इनसे अध्यात्म, सामाजिक जीवन की हर परेशानी का हल माना जाने लगा है : फिर चाहे वह प्रतिस्पर्धा से निपटने की बात हो या टूटे रिश्ते को जोड़ने का मामला हो। रत्नों का कट और आकार उनके सौंदर्य में इजाफा करता है। रत्नों का समकोणीय कटा होना भी आवश्यक है, यदि ऐसा नहीं हो तो वे ग्रहों से संबंधित रश्मियों को एकत्रित करने में पूर्ण सक्षम नहीं होंगे।

इसलिए किसी भी रत्न को धारण करने से पहले उसके रंग, कटाव, आकार व कौन सा रत्न आपके लिए अनुकूल होगा इन जानकारियों के बाद ही रत्न धारण करें। रत्नों को धारण करने से मन में एक खास प्रकार की अनुभूति भी होती है, मानो आपने किसी खजाने को धारण कर लिया हो और वैसे भी रत्नों पर किया निवेश व्यर्थ नहीं जाता।

रत्नों एवं ग्रहों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण / Scientific view of gems and planets

मानव जीवन पर ग्रहों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। ग्रहों में व्यक्ति के सृजन एवं संहार की जितनी प्रबल शक्ति होती है उतनी ही शक्ति रत्नों में ग्रहों की शक्ति घटाने तथा बढ़ाने की होती है। वैज्ञानिक भाषा में रत्नों की इस शक्ति को हम आकर्षण या विकर्षण शक्ति कहते हैं। रत्नों में अपने से संबंधित ग्रहों की रश्मियों, चुम्बकत्व शक्ति तथा स्पंदन शक्ति के साथ-साथ उसे परावर्तित कर देने की भी शक्ति होती है। रत्न की इसी शक्ति के उपयोग के लिए इन्हें प्रयोग में लाया जाता है।

रत्न की परिभाषा / Definition of Gem

रत्न उसे कहते हैं, जो प्राकृतिक रूप में अद्भुत आभा, वर्ण, शक्ति और प्रभाव से युक्त हो एवं उसमें विशेष गुण समाहित हों। धरती के आंचल में (भू-गर्भ में) विभिन्न भौतिक और रासायनिक तत्वों के संघटन से उत्पन्न, विशेष प्रकार की दीप्ति वाले प्रस्तर खण्ड आकार में बहुत ही छोटे होते हैं। इन्हें रत्न की संज्ञा दी जाती है। खनिज रूप में प्राप्त होने वाले चमकदार रंगीन पत्थर, जो सहज सुलभ नहीं होते, ‘रत्न’ कहलाते हैं। वे सभी खण्ड जो अपनी संरचना, वर्ण, प्रकाश और गुणवत्ता के कारण दुर्लभ हैं, उन्हें रत्न कहते हैं।

 

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रत्न उत्पत्ति / Gem Origin

मानव सभ्यता के प्रथम चरण में पत्थरों के सहारे ही निर्वाह होता था। भोजन और निर्वाह सुरक्षा और आक्रमण सभी विषयों में पत्थर ही प्रयोग में लाये जाते थे। उस समय मानव ज्यादा विकासशील नहीं था। मांस, पत्थर और आग जीवन यापन के यही तीन माध्यम थे।

इतिहास में इस युग को प्रस्तर युग या पाषाण युग कहा गया है। कालान्तर में वैभव विलासिता की सीमा में पहुँचते-पहुँचते मानव का रत्नों से परिचय हुआ। उसने उसकी गुणवत्ता को परखा और इस प्रकार अधिक मूल्यवान रत्नों को स्वीकार किया। रत्न प्राकृतिक और दुर्लभ होते हैं। इसलिये वे जन सामान्य की पहुँच से बाहर हैं।

रत्नों के विषय में मानव को सर्वप्रथम जानकारी कब हुई, निश्चित नहीं कहा जा सकता। परन्तु यह निश्चित है कि, यह जानकारी एक दिन में या एक व्यक्ति को नहीं हुई। रत्नों की कुल संख्या विवाद ग्रस्त है। ‘चौरासी पाषाण’ के आधार पर पत्थरों की 84 जातियाँ मानी जाती हैं। परन्तु वे सभी ‘रत्न’ नहीं हैं। प्रमुख रूप से कुछ ही पत्थरों को रत्न के अन्तर्गत माना जाता है। ऐसे ही कुछ दुर्लभ किंतु अपेक्षाकृत अल्पमोली पत्थर ‘उपरत्न’ कहलाते हैं।

रत्न दुर्लभ और मूल्यवान होते हैं, जबकि उपरत्न सरलता से प्राप्त हो जाते हैं। ज्योतिषीय और आयुर्वेदिक दृष्टि से भी दोनों में उत्तम-मध्यम का भेद है। यह मान्यता भारत की ही नहीं, समस्त भूमण्डल की है। रत्नों की एक तीसरी श्रेणी भी है- नकली रत्न, जो देखने में बहुत आकर्षक, भड़कीले किन्तु प्रभाव में नगण्य और उपयोगिता की दृष्टि से शून्य होते हैं।

वस्तुतः ये पत्थर न होकर कांच या रासायनिक मिश्रणों के ठोस रूप होते हैं, जिन्हें सामान्य जन थोड़ी देर के लिए पहनकर अपनी लालसा की पूर्ति कर लेते हैं, परन्तु लाभ नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र की भारतीय पद्धति में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु को ही मान्या प्राप्त है। अनुभवों में पाया गया है कि रत्न परामर्श के समय उपरोक्त नवग्रहों को आधार मानकर दिया गया परामर्श अत्यधिक प्रभावी तथा अचूक होता है।

यहाँ पर हम इन्हीं नवग्रहों के आधार पर विभिन्न रत्नों तथा उपरत्नों का परिचय प्राप्त करेंगे। अनेक धारकों को संकट ग्रस्त होते भी देखा सुना गया है। यद्यपि उन्होंने काफी पैसा खर्च करके रत्न पहना था, परन्तु लाभ के बदले उन्हें हानि मिली। कारण या तो रत्न निर्दाष नहीं थे या फिर धारकों की ग्रह स्थिति से उनकी अनुकूलता नहीं थीं।

 

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रत्न क्यों, कब, कैसे और कौन सा पहनें? / Why, when, how and which gemstone to wear?

रत्नों की उत्पत्ति समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। रत्नों की महत्ता ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के उपचार के लिए विशेष रूप में कही गयी हैं। रत्न कैसे काम करते हैं? क्या कोई उपरत्न या शीशे का रंगीन टुकडा रत्न का काम नहीं कर सकता? इसको समझने के लिए एक रेडियो को देखें। जिस प्रकार माइक्रो तरंगें पूरे आकाश मंडल में व्याप्त हैं, लेकिन उनको पकड़ कर ध्वनि में परिवर्तित करने के लिए रेडियों को एक आवृत्ति पर समस्वरण करना पड़ता है, उसी प्रकार प्रत्येक ग्रह से आने वाली सभी तरंगें वायु मंडल में स्थित हैं और इनको एकत्रित करने के लिए खास माध्यम की आवश्यकता होती है।

विशेष रत्न विशेष ग्रह की रश्मियों को अनुकूल बनाने की क्षमता रखते हैं। समस्वरण शीघ्र ही बदल जाता है, इसलिए उपरत्न, या उसी रंग का शीशा समस्वरण का काम नहीं कर पाता। रत्न रश्मियों को एकत्रित कर मनुष्य के शरीर में समावेश कराते हैं। इसी लिए मुद्रिका को इस प्रकार बनाया जाता है कि उसमें जड़ा रत्न शरीर को छूता रहे।

हमारे हाथ की अलग-अलग उंगलियों से स्नायु नियंत्रण मस्तिष्क के अलग-अलग भागों में जाता है एवं उनका असर उसके अनुरूप होता हैं। विशेष रत्न को विशेष उंगली में पहनने का आधार भी यही है। किस ग्रह की रश्मियों का असर मस्तिष्क के किस भाग में जाना चाहिए, उसके अनुसार उंगलियों का ग्रहों से संबंध बताया गया है।

 

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किसके अनुसार रत्न धारण करें? / Which Gemstone should one Wear?

  • किसको कौनसा रत्न पहनना चाहिए, इसके लिए अनकों नियम बताये गये हैं, जैसे :
  • जन्म राशि या नक्षत्र के अनुसार
  • सूर्य राशि के अनुसार
  • दशा-अंतर्दशा के अनुसार
  • जन्मपत्री के अनुसार शुभ ग्रहों के लिए
  • जन्मपत्री के अनुसार अशुभ ग्रहों के लिए
  • जन्मवार के अनुसार
  • मूलांक, भाग्यांक या नामांक के अनुसार
  • हस्त रेखा के अनुसार
  • आवश्यकता अनुसार या रत्न के गुण के अनुसार।

 

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रत्न-उपरत्न / Gems and Semi-Precious Stones

यदि हम सभी पद्धतियों द्वारा बताये गये रत्नों को पहनेंगे, तो हमें सारे ही रत्न पहनने पड़ेंगे और यदि हम इन पद्धतियों द्वारा बताये गये रत्नों में से एक सामान्य रत्न पहनने कि कोशिश करेंगे, तो शायद कभी भी कोई रत्न धारण नहीं कर पाएंगे।

अतः हमें एक सर्वशुद्ध पद्धति ही अपनानी चाहिए और वह है, अपनी आवश्यकता के अनुसार, जन्मपत्री के शुभ ग्रहों के लिए रत्न धारण करना। शुभ भावों के स्वामी या उनमें स्थित ग्रह ही शुभ फलदायक होते हैं। ग्रह शुभ है कि नहीं, इसके लिए हम, गणित के आधार पर/एक, सूत्र बना सकते हैं :

जन्म कुंडली अनुसार रत्न धारण / Wearing Gemstone as per Horoscope

यदि जन्मकुंडली के अध्ययन के पश्चात रत्न धारण किया जाए तो पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सकता है और अशुभता से भी बचा जा सकता है, जैसे : -

मोती रत्न को यदि मेष लग्न का जातक धारण करे, तो उसे लाभ होगा। कारण मेष लग्न में चतुर्थ भाव का स्वामी चंद्र होता है। चतुर्थेश चंद्र लग्नेश मंगल का मित्र है। चतुर्थ भाव शुभ का भाव है, जिसके परिणामस्वरूप मानसिक शांति, विद्या सुख, गृह सुख, मातृ सुख आदि में लाभकारी होगा।

यदि मेष लग्न का जातक मोती के साथ मूंगा धारण करे, तो लाभ में वृद्धि होगी। रत्न को धारण करने की विधि के बारे में प्राचीन भारतीय ज्योतिष आचार्यों ने बताया है कि रत्न धारण करने से पूर्व, उस रत्न को रत्न के स्वामी के वार में, उसी की होरा में, रत्न के स्वामी के मंत्रों से जागृत करा कर, धारण करना चाहिए।

रत्न धारण करते समय चंद्रमा भी उत्तम होना आवश्यक है।

यदि जो रत्न धारण किया जाए, वह शुभ स्थान का स्वामी हो, तो शरीर से स्पर्श करता हुआ पहनना बताया गया है।

रत्न परीक्षा विधि / Gem Examination Method

रत्न को धारण करने से पूर्व परीक्षा के लिए उसी रंग के सूती कपड़े में बांध कर दाहिने हाथ में बांध कर फल देखें।

परीक्षा के लिए रत्न के स्वामी के वार के दिन ही हाथ में बांधें।

अगले, यानी आठ दिन बाद, उसी वार के पश्चात, नवें दिन उसे हाथ से खोल लें, तो रत्न द्वारा गत नौ दिनों का शुभ-अशुभ का निर्णय हो जाएगा।

 

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रत्न धारण पूर्व सावधानियां / Precautions before wearing Gemstone

  • रत्नों को धारण करने से पूर्व यह भी भली भांति देख लें कि रत्न दोषपूर्ण नहीं हो, अन्यथा लाभ के स्थान पर वह हानि का कारण माना गया है।
  • यदि किसी रत्न, जैसे मोती में आड़ी रेखाएं या क्रास या जाल हो तो सौभाग्यनाशक, पुखराज में हों तो बंधुबाधव नाशक, पन्ना में हों, तो लक्ष्मीनाशक, पुखराज में हों तो संतान के लिए अनिष्टकारक, हीरे में हों तो मानसिक शांतिनाशक, नीलम में हों तो रोगवर्धक और धन हानिकारक हैं।
  • यदि गोमेद में हों तो ये शरीर में रक्त संबंधी बीमारी पैदा करती हैं, लहसुनिया में हों तो शत्रुवर्धक, माणिक में हो तो गृहस्थ सुख का नाश, मूंगे में हों, तो सुख संपत्ति के लिए नष्टकारक हो सकता है।
  • इसी प्रकार मोती में धब्बे, दाग हों तो मानसिक शांति में बाधाकारक होते हैं।
  • पुखराज में धब्बे धन-संपत्तिनाशक होते हैं।
  • इसी प्रकार पन्ना में धब्बे हों तो स्त्री के लिए बीमारीकारक होते हैं।
  • मूंगे में हों तो पहनने वाले जातक के लिए रोग का कारण बनते हैं।
  • माणिक में हों तो स्वयं धारक (पहनने वाले को) बीमार रहता है।
  • हीरे में हों तो यह मृत्युकारक हो सकता है।
  • नीलम में धब्बे हों तो हर क्षेत्र में बिन बुलाई परेशानियां आती हैं।
  • गोमेद में हों तो संपत्ति और पशु धन का नाशक, लहसुनिया में हों तो शत्रुवर्धक माने गये हैं।

जब एक से अधिक रत्न धारण करें तो रत्न के शत्रु का भी ध्यान रखा जाना चाहिए, जैसे हीरे के शत्रु रत्न माणिक और मोती हैं। मूंगे का शत्रु रत्न पन्ना है। नीलम के शत्रु रत्न माणिक, मोती, मूंगा हैं। माणिक के शत्रु रत्न हीरा एवं नीलम हैं।

अतः इस बात को मद्देनजर रखते हुए रत्न को रत्न के धातु में ही पहनना चाहिए। रत्न को पंच धातु, सोना, चांदी, तांबा, लोहा, कांसा की समान मात्रा की अंगूठी में भी धारण किया जा सकता है। ज्योतिष में प्रत्येक भाव से आठवां भाव उसका मारक माना गया है। इसे मद्देनजर रखते हुए ही रत्न धारण करना चाहिए।

 

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रत्न से संबंधित प्रश्नोत्तरी / FAQ


रत्न कौन से हैं और कैसे काम करते हैं?

सूर्य से लेकर केतु तक नव ग्रहों के लिए नौ मूल रत्न हैं : सूर्य के लिए माणिक, चंद्र का मोती, मंगल का मूंगा, बुध का पन्ना, गुरु का पुखराज, शुक्र का हीरा, शनि का नीलम, राहु का गोमेद एवं केतु का लहसुनिया। ये रत्न इन ग्रहों से आ रही किरणों को आत्मसात करने में सक्षम हैं एवं ग्रहों से आ रही किरणों के साथ अनुनाद ;तमेवदंदबमद्ध स्थापित कर, शरीर में किरणों के प्रवाह को बढ़ाते हैं। उपरत्न सस्ते होते हैं एवं उनका अनुनाद रत्नों के अनुनाद के नजदीक ही होता है। अनुनाद बिल्कुल सही से न होने के कारण इनका असर दस प्रतिशत से अधिक नहीं होता। अतः मूल रत्न ही धारण करने चाहिए।

रत्न को कैसे जाँचें?

रत्न को आंखों से देख कर ही जाना जा सकता है कि उसमें कोई दरार तो नहीं है। रत्न का पारदर्शी होना एवं उसमें चमक होना उसकी किस्म को दर्शाते हैं। उसका कटाव एक कोण में होना भी आवश्यक है। यदि कटाव ठीक नहीं होगा, तो रत्न रश्मियों को एकत्रित करने में सक्षम नहीं रहेगा।

क्या रत्न प्रभावशाली रहेगा?

ग्रह कैसी राशि में स्थित है, यह निर्धारित करता है कि कौन सा उपाय फल देगा, जैसे यदि ग्रह वायु राशि में स्थित हो, तो मंत्रोच्चारण, कथा, पूजा आदि सिद्ध होंगे। ग्रह अग्नि राशि में हो, तो यज्ञ, व्रत आदि, जल राशि में दान, पानी में बहाना, औषधि स्नान आदि एवं पृथ्वी तत्व में रत्न, यंत्र, धातु धारण एवं देव दर्शन आदि।

यदि जन्मपत्री में योगकारक ग्रह निर्बल हो, तो रत्न धारण, यंत्र धारण एवं मंत्र द्वारा उपचार करना चाहिए। यदि मारक ग्रह बली हो, तो उसे वस्तु बहा कर, या दान से निर्बल बनाना चाहिए, अन्यथा मंत्रोच्चारण एवं देव दर्शन द्वारा कारक में परिवर्तन करना चाहिए। ऐसे में रत्न धारण करने से ग्रह का मारक तत्व और उभरेगा। यदि योगकारक ग्रह बली हो, या मारक ग्रह निर्बल हो, तो किसी उपाय की आवश्यकता नहीं है।

कौन से ग्रह का रत्न धारण करें?

रत्न ग्रह को बली करने के लिए पहनाया जाता है। किसी ग्रह से संबंधित पीड़ा हरने के लिए, अन्यथा जिस ग्रह की दशा, या अंर्तदशा चल रही हो, उस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिए। लेकिन यह आवश्यक है कि वह ग्रह जातक की कुंडली में योगकारक हो, मारक न हो। अष्टमेश यदि लग्नेश न हो, तो सर्वदा त्याज्य ही है। योगकारक ग्रह यदि निर्बल हो, तो रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।

क्या रत्न हमारे लिए शुभ है?

यह जान लेना परम आवश्यक है कि रत्न शुभ फल देगा, या दे रहा है। विशेष रूप से नीलम को जाँच कर ही पहनें। कई बार नग विशेष में कुछ त्रुटि होने के कारण कष्ट झेलने पड़ते हैं। नीलम में यदि कुछ लालपन हो, तो वह खूनी नीलम कहलाता है और दुर्घटना करवा सकता है। अतः रत्न को जाँचने के लिए उसे अपने हाथ पर बांध लें। यदि ऐसा करने से स्फूर्ति महसूस करते हैं, तो रत्न ठीक है अन्यथा दूसरा नग देख लें।

क्या रत्न का शरीर को छूना आवश्यक है?

रत्न का शरीर से छूना अति आवश्यक है; केवल हीरे को छोड़ कर, जो प्रतिबिंब ;तमसिमबजपवदद्ध से काम करता है, न कि अपवर्तन ;तमतिंबजपवदद्ध से। रत्न का कोण भी सम होना चाहिए, जो अंगुली को छुए। लॉकट आदि में भी रत्न इसी प्रकार छूते हुए जड़वाने चाहिए। लेकिन अंगुली रश्मियों को आत्मसात करने में अधिक सक्षम होती है। लॉकेट में कम से कम दुगुने वजन का रत्न होने से उतना असर होगा, जितना अंगूठी में। अतः रत्न को अंगूठी में पहनना ही श्रेष्ठ है।

किस धातु में रत्न जड़वाएं?

स्वर्ण रत्न के लिए उत्तम धातु है। सभी नौ ग्रहों के लिए स्वर्ण का उपयोग शुभ है। हीरे के लिए प्लेटिनम अत्युत्तम है। नीलम तथा गोमेद के लिए पंच धातु मिश्रित चौदह कैरेट का सोना उत्तम है। मोती के लिए चांदी इस्तेमाल की जा सकती है। मूंगे के लिए तांबे की अपेक्षा तांबा मिश्रित स्वर्ण अत्युत्तम है। माणिक, पन्ना, पुखराज तथा लहसुनिया बाइस कैरेट सोने में पहनें।

रत्न किस अंगुली एवं हाथ में पहनें?

पुरुष को रत्न दाहिने हाथ में एवं स्त्री को बायें हाथ में धारण करना चाहिए। यदि व्यक्ति विशेष बायें हाथ से काम करता है, या कोई स्त्री पुरुष की भांति काम-काज करती है, तो भी स्त्री को बायें एवं पुरुष को दायें हाथ में ही रत्न धारण करना चाहिए। छोटी अंगुली में हीरा एवं पन्ना, अनामिका में माणिक, मोती, मूंगा तथा लहसुनिया, बीच की अंगुली में नीलम तथा गोमेद एवं तर्जनी में पुखराज पहनना उत्तम है। हीरा अनामिका एवं बीच की अंगुली में पहना जा सकता है। पन्ना अनामिका में तथा लहसुनिया छोटी अंगुली में भी पहने जा सकते हैं।

रत्न कब तथा कैसे धारण करें?

रत्न को धारण करने के लिए आवश्यक है कि पहली बार उसे पहनते समय शुभ मुर्हूत हो एवं चंद्र बली हो; समय, वार एवं नक्षत्र रत्न के अनुकूल हों। ऐसे समय में रत्न को, गंगा जल एवं पंचामृत में धो कर, धूप, दीप दिखा कर, ग्रह के मंत्रोच्चारण सहित, धारण करना चाहिए। इस प्रकार रत्न का शुभ फल अधिक होता है एवं अशुभ फल में न्यूनता आती है। माणिक रविवार, मोती सोमवार, मूंगा मंगलवार, पन्ना तथा लहसुनिया बुधवार, पुखराज गुरुवार, हीरा शुक्रवार, नीलम और गोमेद शनिवार को धारण करने चाहिए। सभी रत्न प्रातः, नीलम सूर्यास्त से पहले एवं गोमेद सूर्यास्त के बाद धारण करना श्रेष्ठ है।

किस रत्न के साथ क्या न पहनें?

माणिक, मोती, मूंगा, पुखराज के साथ नीलम तथा गोमेद नहीं पहनना चाहिए। हीरा, पन्ना और लहसुनिया के साथ अन्य कोई भी रत्न धारण करने में दोष नहीं है। लेकिन हीरे के साथ माणिक्य, मोती एवं पुखराज को जाँच कर ही पहनना चाहिए।

रत्न शकुन का क्या अभिप्राय होता है?

यदि रत्न खो जाए, या चोरी हो जाए, तो समझें कि ग्रह के दोष खत्म हुए। यदि रत्न में दरार पड़ जाए, तो समझें कि ग्रह बहुत प्रभावशाली है। उसकी शांति भी करवाएं। यदि रत्न का रंग फीका पडे़, तो ग्रह का असर शांत हुआ समझें।

किस प्रकार बनते हैं रत्न?

भूमि के गर्भ में जब विभिन्न रासायनिक तत्व आपस में मिलते हैं, तो भूमि की अग्नि से पिघलकर रत्न बनते हैं। इस रासायनिक प्रक्रिया में तत्व आपस में एकजुट होकर विशिष्ट प्रकार के चमकदार, आभायुक्त रत्न बन जाते हैं तथा इनमें कई गुणों का प्रभाव भी समायोजित हो जाता है। खनिज रत्नों में कार्बन, मैंग्नीज, सोडियम, तांबा, लोहा, फासफोरस, बेरियम, गंधक, जस्ता, कैल्सियम जैसे तत्वों का संयोग होता है। इनके कारण ही रत्नों में रंग रूप, कठोरता व आभा का अंतर होता है। अपने इन्हीं गुणों के कारण ये लोगों को आकर्षित करते हैं।

कहां पाए जाते हैं रत्न?

ज्यादातर रत्न समुद्री इलाकों व पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये अफ्रीका महाद्वीप के कांगो, घाना व ब्राजील, बर्मा, भारत, श्री लंका, अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा रूस आदि विभिन्न देशों में पाए जाते हैं।

क्यों पहनें रत्न?

हम जिस भौतिक युग में जी रहे हैं, वहां व्यक्ति जल्दी प्रगति की सीढ़ियां चढ़ना चाहता है। इसलिए वह रत्न, ज्योतिष एवं मंत्र का सहारा लेता है, व्यक्ति सर्व सुख तत्काल चाहता है। भाग्य परिवर्तन में रत्नों का योगदान अवश्य रहा है। आप हर सौ लोगों में अस्सी लोगों को रत्न की अंगूठी पहने देखते हैं, वे इन्हें अकारण ही नहीं पहने रहते, बल्कि उनमें उनका भाग्य और भविष्य छिपा होता है।

कितने वजन का रत्न पहनें?

रत्न का वजन शरीर के वजन एवं ग्रह की निर्बलता के अनुपात में होना चाहिए। यदि ग्रह अति क्षीण है, तो अधिक वजन का नग पहनना चाहिए। हीरा एक अपवाद है यह कम वजन एवं कई टुकड़ों में भी हो सकता है। महिलाओं को तीन रत्ती से पांच रत्ती तक एवं पुरुषों को पांच रत्ती से आठ रत्ती तक के नग पहनने चाहिए। आम तौर पर रत्न का वजन कम से कम 3 रत्ती तो होना ही चाहिए। फिर भी सामान्यतः जातक के भारानुसार पहनाने पर अधिकांश विद्वानों की सहमति है ; अर्थात 10 किलो पर 1 रत्ती; ‘यानी जातक 60 किलो का है, तो 6 रत्ती का रत्न पहनना चाहिए। बच्चों को कम वजन के तथा वयस्क होने पर अधिक वजन के रत्न पहनाए जाते हैं।

रत्न कब तक पहनें?

कोई भी रत्न तीन साल तक ही पूर्णतया फल देने में सक्षम है। केवल हीरा पूर्ण काल तक पूरे फल देता है। अतः आवश्यक है कि तीन वर्ष बाद रत्न बदल लें, या उस रत्न को उतार कर रख दें एवं कुछ साल बाद दोबारा पहनें, या रत्न किसी और को दे दें। यदि वांछित कार्य हो गया हो, या दशा बदल गयी हो, तो भी रत्न उतार देना चाहिए।

विशेष रूप से नौ रत्नों का ही प्रयोग क्यो?

ब्रह्मांड में नौ ग्रह हैं जिनका महत्वपूर्ण प्रभाव जातक पर पड़ता है। इन ग्रहों से निकली रश्मियों को एकत्रित करने की क्षमता नवरत्नों में पाई जाती है, अतः ये रत्न ही प्रमुख रत्न हुए। अन्य रत्न अल्पमात्रा में इन रश्मियों को एकत्रित करने में सक्षम हैं, अतः वे उपरत्न कहलाए।

रत्न, उपरत्न, कृत्रिम रत्न व रंगीन कांच में क्या अंतर है?

चारों में अंतर उनकी ग्रह रश्मियों को अवशोषित करने की क्षमता पर आधारित है। रत्न सब से अधिक रश्मियां ग्रहण करते हैं। उनके बाद उपरत्न और फिर कृत्रिम रत्न। रंगीन कांच न के बराबर रश्मियां ग्रहण करता है।

क्या अच्छे रत्नों का प्रभाव अधिक होता है?

अच्छे रत्नों का प्रभाव निश्चय ही अधिक होता है क्योंकि ये रत्न रश्मियों को ज्यों की त्यों अवशोषित करने में सक्षम होते हैं। जैसे एक साफ शीशे के आरपार सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है और धुंधले शीशे के आरपार देखने में कठिनाई होती है।

रत्न धारण में आर्थिक बाधा होने पर क्या उपाय करें?

जैसे कोई गरीब व्यक्ति अपना डॉक्टरी इलाज नहीं करा पाता है वैसे ही वैदिक रत्न धारण करने में असमर्थ व्यक्ति रत्न के उपाय से वंचित रह जाता है। जिस प्रकार डॉक्टरी इलाज में भी कम मूल्य की दवाइयां होती हैं जिनका सेवन कर या फिर परहेज या संयम द्वारा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है, उसी प्रकार, रत्न के अभाव में जातक अन्य उपाय जैसे दान, व्रत, मंत्र जप आदि के द्वारा कष्ट का निवारण कर सकता है।

क्या रत्न को धातु विशेष में पहनना आवश्यक है?

धातु रत्न की क्षमता को कम या अधिक कर देती है। अतः उपयुक्त धातु में ही रत्न धारण करना उचित है जैसे नीलम, गोमेद व लहसुनिया पंचधातु में, मोती चांदी में, हीरा प्लैटिनम में व अन्य रत्न स्वर्ण में धारण करने चाहिए।

रत्न खो जाए, टूट जाए या उसमें दरार आ जाए तो क्या करना चाहिए?

रत्न का टूटना या उसमें दरार आना अशुभ माना गया है। ऐसे में उपयुक्त ग्रह शांति करानी चाहिए और नया, बड़ा तथा अच्छी गुणवत्ता का रत्न धारण करना चाहिए।

यदि रत्न खो जाए तो इसे शुभ माना गया है। ऐसे में समझना चाहिए कि ग्रह दोष दूर हुआ। रत्न का पाना अशुभ है। माना जाता है कि दूसरे के ग्रह कष्ट पाने वाले को प्राप्त हो रहे हैं।

सवाए में रत्न पहनने का क्या अर्थ है?

सवाए में रत्न पहनने का अर्थ है उसका निर्दिष्ट भार से अधिक होना। यदि पांच रत्ती का रत्न बताया गया हो तो उससे अधिक अर्थात साढ़े पांच, छह या सात रत्ती का रत्न धारण करना चाहिए। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि केवल सवा पांच रत्ती का रत्न ही धारण करना है, पौने छह रत्ती का नहीं।

पौने छह रत्ती का रत्न लगभग सवा पांच कैरेट और सवा पांच रत्ती का पौने पांच कैरेट के बराबर होता है। अतः पौना या सवाया मापक इकाई पर निर्भर करता है।

कौन सा रत्न कब तक धारण करना चाहिए?

कुछ रत्न जीवनपर्यंत पहन सकते हैं, कुछ रत्नों को समयानुसार परिवर्तित करना चाहिए, और कुछ रत्न आपको बिल्कुल नहीं पहनने चाहिए। यह आपकी कुंडली में ग्रह स्थिति के अनुसार ही जाना जा सकता है। योगकारक या शुभस्थ ग्रहों के रत्न सर्वदा धारण किए जा सकते हैं। किंतु मारक या अशुभ स्थान में स्थित ग्रहों के रत्न धारण नहीं करने चाहिए। अन्य ग्रहों के रत्न दशानुसार धारण करने चाहिए।

अंगूठी और लॉकेट में रत्न धारण करने में क्या अंतर है?

मस्तिष्क के विशेष केंद्र बिंदु हमारी उंगलियों पर स्थित हैं। अतः उंगली विशेष में धारण करने से रत्न द्वारा एकत्रित रश्मियों का प्रभाव अधिक प्राप्त होता है। उतना प्रभाव रत्न को लॉकेट में पहनने से नहीं मिलता। अतः लॉकेट में लगभग दोगुने भार का रत्न पहनना चाहिए ताकि पूर्ण प्रभाव प्राप्त हो सके।

क्या दूसरे के पहने हुए रत्न को धारण करना चाहिए?

दूसरे का पहना हुआ रत्न पहनना सर्वथा वर्जित है क्योंकि उसके माध्यम से पहले जातक के ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव भी, जो उसमें अवशोषित हो चुका होता है, दूसरे जातक पर पड़ सकता है। यदि पहनना ही हो, तो नजदीकी रिश्तेदार का पहना हुआ रत्न ही धारण करें, जैसे माता-पिता, पति या पत्नी का पहना हुआ रत्न, किसी अन्य का नहीं। ऐसे रत्न को भी धारण करने से पहले उसे पूरी तरह शुद्ध करा लें।

क्या तप्त रत्न कम प्रभावशाली होते हैं?

रत्नों को गर्म करने से उसकी गुणवत्ता पर विशेष असर पड़ता है, अतः वे उतने प्रभावशाली नहीं रहते जितने कि प्राकृतिक।

क्या छोटे-छोटे कई रत्न एक रत्न के बराबर होते हैं?

यह इस तथ्य के समानांतर है कि जैसे एक कमरे में सौ मोमबत्तियां जल रही हों और दूसरे कमरे में बड़ा बल्ब जला रहा हो। बड़े बल्ब की रोशनी सौ मोमबत्तियों की रोशनी से कहीं ज्यादा होगी। अतः एक बड़ा रत्न धारण करना ही उत्तम है।

रत्न धारण करने के समय का क्या महत्व है?

रत्न में ग्रह के देवता का वास माना गया है। बिना देव के रत्न कांच के टुकड़े के बराबर होता है। रत्न धारण करते समय उसमें देवता का आवाहन किया जाता है। आवाहन से देव उस रत्न में बस जाएं इसके लिए उनका वार व होरा का समय चुना जाता है। अतः रत्न को प्रभावशाली बनाने के लिए उपयुक्त समय पर धारण करने का विशेष महत्व है। धारण करते समय ग्रह बल भी पूर्ण होना आवश्यक है।


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