पंचम नवरात्र देवी - देवी स्कंदमाता, पूजा का महत्व, स्तुति मंत्र और आरती
By: Acharya Rekha Kalpdev | 29-Mar-2024
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पांचवें नवरात्र के दिन देवी स्कंदमाता की पूजा आराधना होती है। देवी स्कंदमाता का नाम कार्तिकेयन के नाम पर पड़ा है। कार्तिकेयन का एक नाम स्कन्दकुमार भी है। और देवी पार्वती उनकी माता है। स्कंद कुमार की माता होने के कारण इनका एक नाम स्कंदमाता भी है। सर्विदित है कि देवी स्कंदमाता देवी पार्वती जी का ही एक रूप है। इनका यह नाम क्योंकि इनके पुत्र के नाम पर पड़ा है। इसलिए देवी स्कंदमाता मातृत्व और वात्सल्य की देवी है। देवीपुराण में नवरात्र की नौ देवियों का वर्णन है।
देवी स्कंदमाता की पूजा का महत्त्व
देवी स्कंदमाता का यह स्वरुप मुख्य रूप से मातृत्व और संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार देवी स्कंदमाता बुध ग्रह की देवी है। बुध ग्रह को ठीक करने के लिए विशेष रूप से देवी स्कंदमाता का दर्शन-पूजन किया जाता है। जिन दम्पतियों की कोई संतान नहीं है, और वो संतानसुख के लिए प्रतीक्षारत है, उन्हें, पांचवें नवरात्र के दिन देवी स्कंदमाता की आराधना अवश्य करनी चाहिए। देवी स्कंदमाता को वात्सल्य और अग्नि दोनों का रूप माना गया है। मातृत्व भाव से माता अपने आराधकों को माता के समान स्नेह देती है। माता स्कंदमाता का एक नाम बागेश्वरी देवी भी है।
देवी स्कंदमाता चार भुजाओं वाली है, मातृ समान स्नेह करने वाली है। इसीलिए उन्हें वात्सल्य स्वरूपा भी कहा गया है। देवी स्कंदमाता के इस स्वरुप की पूजा-आराधना करने से संतानहीनता का दोष हटाता है। साधक के सब काम पूरे होते है। वाराणसी क्षेत्र में देवी स्कंदमाता का एक सिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में संतानहीन देश-विदेश से संतान कामना को लेकर आते है। इस मंदिर में दर्शन पूजन से साधकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। पूरे भारत में देवी स्कंदमाता का यह एक विशेष और अपनी तरह का एक अलग मंदिर है।
माता स्कंदमाता की कथा
माता स्कंदमाता को लेकर पुराणों में एक कथा का वर्णन मिलता है। एक बार असुर तारकासुर का आतंक बढ़ा। अनेक वर्षों तक असुर तारकासुर ने गहन तपस्या की उनकी तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। असुर तारकासुर ने वरदान के रूप में अमरता का वरदान माँगा। जिसे ब्रह्मा जी ने देने से मना कर दिया।
अंत: में तारकासुर ने वरदान में मांगा की भगवान् शिव का पुत्र ही मुझे मार पाए। उस समय भगवान शिव देवी सती की मृत्यु के बाद वियोग में जाने के बाद समाधि में चले गए थे। असुर तारकासुर को लगा की भगवान् शिव तो अन्नत समाधी में है और उनके तो पुत्र होने से रहा। इसी बात का लाभ असुर तारकासुर ने लेने की कोशिश की। ब्रह्मा जी उसे यह वरदान दे दिया। वरदान पाकर असुर तारकासुर ने अपना आतंक और बढ़ा दिया। तारकासुर का अत्याचार बढ़ता गया और सभी देवी देवता उनके अत्याचार से परेशान होकर भगवान् शिव की शरण में गए। देवी देवताओं का आग्रह स्वीकार कर भगवान् शिव ने देवी पार्वती जी से विवाह किया। शिव-पार्वती के यहाँ पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने ही बड़े होकर असुर तारकासुर का वध किया।
देवी स्कंदमाता का रहस्य
देवी स्कंदमाता नवरात्रि की नौ देवियों में से पांचवी देवी है। देवी स्कंदमाता मातृ भाव और वात्सल्य भाव की पूर्ण प्रतिमा है। उनकी गोद में पुत्र कार्तिकेय है, उनके हाथों में कोई भी अस्त्र-शस्त्र नहीं है। देवी के एक हाथ में कमल है। एक अन्य हाथ में कमल है, सीधे हाथ की एक भुजा वर मुद्रा में है। माता का वहां सिंह है। इसके अलावा माता का वाहन कमल भी है। इसलिए माता को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है।
पंचम देवी स्कंदमाता की पूजा आराधना
देवी स्कंदमाता नवरात्र के नौ दिनों में से सबसे विशेष दिन पांचवें दिन की देवी है। देवी स्कंदमाता सभी देवियों में इसलिए विशेष है क्योंकि देवी स्कंदमाता इस रूप में मातृ रूप में है। पांचवें नवरात्र के दिन साधकों की हर कामना पूरी करती है, क्योंकि मां अपने भक्त को कभी उदास, निराश और खाली हाथ नहीं लौटती है। देवी स्कंदमाता की आराधना से लौकिक जीवन में ही अलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है। मोक्ष मार्ग को खोलने वाली देवी स्कंदमाता जी ही है। देवी की गोद में देव कार्तिकेय है, ऐसे में जो भक्त देवी स्कंदमाता की पूजा आराधना करता है, तो देवी की गोद में बैठे कार्तिकेय की पूजा आराधना स्वत: ही हो जाती है।
देवी पूजा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि, माता की पूजा निश्चल और निर्मल मन से करनी चाहिए। माता मातृ रूप में होने के कारण साधक को बालक, संतान के रूप में ही स्वीकार करती है। यदि किसी साधक को देवी स्कंदमाता को अपनी पूजा उपासना से प्रसन्न करना है तो उन्हें बालक के समान बनकर, एकदम निश्छल भाव से आना चाहिए।
जो निश्छल भाव से माता की शरण में आता है, उसके फिर कोई भी कार्य अपूर्ण नहीं रहते है। दुखों से मुक्ति पाने का इससे सरल मार्ग अन्य कोई नहीं है। माता स्कंदमाता का आशीर्वाद पाने के लिए यह जरुरी है कि साधक कभी भी किसी भी स्त्री का अपमान न करें। घर और बाहर की सभी स्त्रियों का मां सम्मान करें और उन्हें यथा संभव उपहार और सम्मान देते रहें। आचार- विचार, मन और शब्दों से भी स्त्रियों का अपमान नहीं करना है। परिवार और समाज की कन्या और स्त्रियों का आप जितना अधिक मान सम्मान करते है, आपकी नवरात्रि पूजा उतनी अधिक सार्धक होती है।
नव देवियों के नौ नवरात्र में देवी कवच पाठ पढ़ने का क्या महत्त्व है?
चैत्र नवरात्र के नौ रात्रियों को दुर्गा कवच और दुर्गा सप्तसती के 13 अध्यायों का पाठ करना चाहिए। नवरात्रि में दुर्गा सप्तसती और दुर्गा कवच का पाठ करना विशेष पुण्य देता है। देवी दुर्गा के नौ रूपों कि हम और आप नवरात्रि में पूजा करते है। महिसासुर और तारकासुर जैसी असुरों का वध माता ने किया। जब भी इस धरा पर आसुरी शक्तियों का भार बढ़ने लगता है तो माता असुरों का नाश करने किसी न किसी रूप में इस धरती पर अवश्य आती है। देवी शक्तियों का आभार व्यक्ति करने के लिए ही वर्ष में दो बार चैत्र और शारदीय नवरात्र में देवी दर्शन पूजन किया जाता है। इसी समय में दुर्गा कवच और दुर्गा सप्तसती का पाठ करने से लौकिक और अलौकिक दोनों प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
देवी स्कंदमाता का मन्त्र, पाठ और कवच
देवी स्कंदमाता मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः
देवी स्कंदमाता प्रार्थना
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
देवी स्कंदमाता स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
देवी स्कंदमाता ध्यान
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम्॥
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पञ्चम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
देवी स्कंदमाता स्तोत्र
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरम् पारपारगहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रदीप्ति भास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमार संस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलाद्भुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालङ्कार भूषिताम् मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेदमार भूषणाम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्र वैरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनीं सुवर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम्।
सहस्रसूर्यराजिकां धनज्जयोग्रकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभृडवृन्दमज्जुलाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरम् सतीम्॥
स्वकर्मकारणे गतिं हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनः पुनर्जगद्धितां नमाम्यहम् सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवी पाहिमाम्॥
देवी स्कंदमाता कवच
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयम् पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री ह्रीं हुं ऐं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वाङ्ग में सदा पातु स्कन्दमाता पुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृते हुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्ने च वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासिताङ्गी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥
देवी स्कंदमाता आरती
जय तेरी हो स्कन्द माता। पांचवां नाम तुम्हारा आता॥
सबके मन की जानन हारी। जग जननी सबकी महतारी॥
तेरी जोत जलाता रहूं मैं। हरदम तुझे ध्याता रहूं मै॥
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा॥
कही पहाड़ों पर है डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा॥
हर मन्दिर में तेरे नजारे। गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥
इन्द्र आदि देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए। तू ही खण्ड हाथ उठाए॥
दासों को सदा बचाने आयी। भक्त की आस पुजाने आयी॥