नवरात्री के नौवें दिन इस प्रकार कीजिये मां सिद्धिदात्री की पूजा आराधन। | Future Point

नवरात्री के नौवें दिन इस प्रकार कीजिये मां सिद्धिदात्री की पूजा आराधन।

By: Future Point | 18-Sep-2019
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नवरात्री के नौवें दिन इस प्रकार कीजिये मां सिद्धिदात्री की पूजा आराधन।

नवरात्री के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है,जगतजननी मां जगदम्बा का नवां स्वरुप मां सिद्धिदात्री का है, भगवान “शंकर द्वारा प्राप्त सभी सिद्धियां इनमें निहित है, मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लहिमा, प्राप्ति, प्राकाम्या, इषक, वषित्र आठ मूख्य सिद्धियां हैं, देवी पुराण के अनुसार भगवान “शंकर का अर्द्धनारिश्वर स्वरूप देवी सिद्धिदात्रि का ही है।

मां सिद्धिदात्री का स्वरूप-

देवी सिद्धिदात्री का स्वरुप का दिव्य मांगलिक व अत्यन्त मनोहारी है, इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें क्रमश: चक्र, शंख, गदा और कमल पुष्प सुशोभित हैं, अचूक संग्राम के उपरान्त देवी ने दुर्गम नामक दैत्य का वध किया था, इसी कारण ये मां दुर्गा के नाम से भी विख्यात हैं, मंत्र-तंत्र यंत्र की अधिष्ठात्री देवी सिद्धिदात्री की उपासना से साधक को समस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं, माता अपने भक्तों के संपूर्ण मनोरथ को पूर्ण करती हैं, मां भगवती के परम पद को पाने के उपरान्त अन्य किसी भी वस्तु को पाने की लालसा नहीं रह जाती है।

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माँ सिद्धिदात्री की कथा-

माँ सिद्धिदात्री के बारे अनेक कथा प्रसंग प्राप्त होते हैं, जिसमें दुर्गा सप्तशती के कुछ प्रसंग माँ सिद्धि दात्री के विषय में है, क्योंकि इन्हीं के द्वारा ही व्यक्ति को सिद्धि, बुद्धि व सुख-शांति की प्राप्ति होगीज़ और घर का क्लेश दूर होता है, पारिवार में प्रेम भाव का उदय होता है, अर्थात् यह देवी ही सर्वमय हैं, जिसे एक कथानक में देवी स्वतः ही स्वीकार किया है कि -इस संसार में मेरे सिवा दूसरी कौन है? देख, ये मेरी ही विभूतियाँ हैं, अतः मुझमें ही प्रवेश कर रही हैं, तदनन्तर ब्रह्माणी आदि समस्त देवियाँ अम्बिका देवी के शरीर में लीन हो गयीं उस समय केवल अम्बिका देवी ही रह गयीं। देवी बोली- मैं अपनी ऐश्वर्य शक्ति से अनेक रूपों में यहाँ उपस्थित हुई थी, उन सब रूपों को मैंने समेट लिया, अब अकेली ही युद्ध में खड़ी हूँ, तुम भी स्थिर हो जाओ, तदनन्तर देवी और शुम्भ दोनों में सब देवताओं तथा दानवों के देखते -देखते भयंकर युद्ध छिड़ गया, ऋषि कहते हैं – तब समस्त दैत्यों के राजा शुम्भ को अपनी ओर आते देख देवी ने त्रिशूल से उसकी छाती छेदकर उसे पृथ्वी पर गिरा दिया, देवी के शूल की धार से घायल होने पर उसके प्राण-पखेरू उड़ गये और वह समुद्रों, द्वीपों तथा पर्वतों सहित समूची पृथ्वी को कॅपाता हुआ भूमि पर गिर पड़ा।। तदनन्तर उस दुरात्मा के मारे जाने पर सम्पूर्ण जगत् प्रसन्न एवं पूर्ण स्वस्थ हो गया तथा आकाश स्वच्छ दिखायी देने लगा। पहले जो उत्पात सूचक मेघ और उल्कापात होते थे, वे सब शान्त हो गये तथा उस दैत्य के मारे जाने पर नदियां भी ठीक मार्ग से बहने लगीं।

नवरात्री के नोवे दिन की पूजा विधि-

देवी सिद्धिदात्री का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं, संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्र के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है, इनका स्वरुप मां सरस्वती का भी स्वरुप माना जाता है।

•सिद्धिदात्री देवी उन सभी भक्तों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं, जो सच्चे मन से उनके लिए पूजा करते हैं।

•इस दिन आप बैंगनी या जामुनी रंग पहनें। यह रंग अध्यात्म का प्रतीक होता है।

•यह नौ दुर्गा का आखरी दिन भी होता है तो इस दिन माता सिद्धिदात्री के बाद अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है। इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है।

•सर्वप्रथम माता जी की चौकी पर सिद्धिदात्री माँ की तस्वीर या मूर्ति रख इनकी आरती और हवन किया जाता है, हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए, बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए।

•दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत:सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार हवि दें।

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इस मंत्र से करें देवी का पूजन

सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैरसुरैररमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

•भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती करनी चाहिए।

•नौवें दिन सिद्धिदात्री को मौसमी फल, हलवा, पूड़ी, काले चने और नारियल का भोग लगाया जाता है। जो भक्त नवरात्रों का व्रत कर नवमीं पूजन के साथ समापन करते हैं, उन्हें इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

•हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है जाता है उसे समस्त लोगों में बांटना चाहिए।

•मां की पूजा के बाद कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। उन्हें मां के प्रसाद के साथ दक्षिणा दी जाती है और चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया जाता है।

•आठ दिन व्रत, नवमीं पूजा और कन्याओं को भोजन कराने के बाद मां को विदाई दी जाती है।

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

देवी सिद्धिदात्री का स्तोत्र मंत्र-

कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥



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