नवरात्र का पांचवा दिन: जानिए माँ स्कन्दमाता की पूजन विधि, मंत्र, भोग और आरती का महत्त्व | Future Point

नवरात्र का पांचवा दिन: जानिए माँ स्कन्दमाता की पूजन विधि, मंत्र, भोग और आरती का महत्त्व

By: Future Point | 22-Sep-2022
Views : 3227नवरात्र का पांचवा दिन: जानिए माँ स्कन्दमाता की पूजन विधि, मंत्र, भोग और आरती का महत्त्व

माता दुर्गा का स्वरूप ‘‘स्कन्द माता’’ के रूप में नवरात्रि के पांचवें दिन पूजा की जाती है। शैलपुत्री ने ब्रह्मचारिणी बनकर तपस्या करने के बाद भगवान शिव से विवाह किया। तदनन्तर स्कन्द उनके पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। ये भगवान् स्कन्द कुमार कार्तिकेय के नाम से भी जाने जाते हैं। छान्दोग्य श्रुति के अुनसार माता होने से वे ‘‘स्कन्द माता’’ कहलाती हैं। शास्त्रों के अनुसार, स्कंदमाता की विधि-विधान से पूजा करने से संतान सुख के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है और भक्तों की हर इच्छा पूरी होती है। स्कंदमाता की पूजा-आराधना करने से भक्तों के हर दुख दूर हो जाते हैं। मां अत्यंत दयालु हैं शीघ्र ही प्रसन्न होकर सुखी जीवन का आशीर्वाद देती हैं।  

''सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।''  

माँ स्कन्दमाता का स्वरुप :- 

स्कंदमाता का स्वरूप प्रत्येक व्यक्ति के मन को मोह लेने वाला है। स्कंदमाता की दाहिनी भुजा में कमल पुष्प और बाईं भुजा वरमुद्रा में है। इनकी तीन आंखें तथा चार भुजाएं हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और यह कमलासन पर विराजित है। सिंह इनका वाहन है। इसी लिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। पुत्र स्कंद इनकी गोद में बैठे हैं, वह हाथ में तीर लिए हुए नजर आ रहे हैं। देवी मां उन्हें चौथे हाथ से आशीर्वाद देते हुए नजर आ रही हैं।

आराधना महत्व :-

माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण, इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है, मोक्ष मिलता है। पुराणों की मान्यताओं के अनुसार, चैत्र नवरात्र के पांचवें दिन माँ स्कंदमाता की सच्चे दिल से पूजा आराधना करने से जीवन में आये  सभी संकट दूर होते हैं तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में से भी मुक्ति मिलती है। मुख्य रूप से त्वचा संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं से छुटकारा मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। साधक को अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है और उसे तुलना रहित महान ऐश्वर्य मिलता है। माँ स्कंदमाता की उपासना करने वाले लोगों के ज्ञान व पद प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है, साथ ही उनका मनोबल और आत्मविश्वास भी बढ़ता है। इसके अलावा यदि किसी के संतान बाधा हो तो माँ स्कंदमाता की कृपा से संतान की प्राप्ति होती है।

स्कंदमाता का बीज मंत्र :-

''या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥''

स्कंदमाता का जप मंत्र :-

ॐ स्कंदमात्रै नमः

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः

''रदव्यसिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

महाबले महोत्साहे महाभय विनाशिनी।

त्राहिमाम स्कन्दमाते शत्रुनाम भयवर्धिनि।।''

पौराणिक कथा -

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तारकासुर नाम का एक शक्तिशाली राक्षस था। उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने तथा उनसे वरदान प्राप्त करने के लिए घोर तप किया, तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। राक्षस तारकासुर ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा। तब भगवान ब्रह्मा जी ने उसे बताया कि जन्म लेने वाले हर प्राणी का अंत निश्चित है अर्थात जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु होना तय है।

ये सुनकर तारकासुर निराश हो गया लेकिन फिर बड़ी ही चालाकी से उसने पुनः वरदान मांगा, कि उसकी मृत्यु सिर्फ़ डिवॉन के देव महादेव शिव के पुत्र के हाथों ही हो। ऐसा उसने इसलिए कहा क्योंकि उसे लगता था कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे तो पुत्र भी नहीं होगा और वह हमेशा के लिए अमर हो जाएगा। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया। इसके बाद उसने लोगों के ऊपर अत्यचार करने शुरू कर दिए। उसके अत्याचारों से लोगों के मन में भय पैदा हो गया। फिर सभी तारकासुर के पीड़ित होकर भगवान शिव के पास गए और प्रार्थना की, कि तारकासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाएं प्रभु।

तब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया और उनसे एक पुत्र हुआ, जिसका नाम स्कन्द अर्थात कार्तिकेय रखा। फिर माता पार्वती ने अपने पुत्र स्कन्द को तारकासुर से युद्ध लड़ने के लिए प्रशिक्षित करने हेतु स्कंदमाता का रूप धारण किया। अपनी माता से प्रशिक्षण लेने के बाद शिव पुत्र स्कन्द/कार्तिकेय ने राक्षस तारकासुर का वध किया तथा सभी लोगों को उसके अत्याचारों से हमेशा के लिए मुक्त कर दिया।

माँ स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए करें ये उपाय -

यदि किसी व्यक्ति के विवाह में बाधाएं आ रही हैं या किसी कारण से बार-बार रुकावटें आ रही हैं तो आश्विन नवरात्र के पांचवें दिन माँ दुर्गा को 36 लौंग और 6 कपूर के टुकड़ों के साथ आहुति दें। ऐसा करने से आपकी यह समस्या हल हो जाएगी। आहुति देने से पूर्व लौंग और कपूर पर सर्वबाधा निवारण मंत्र की ग्यारह माला का जाप करें।

यदि कोई जातक संतान प्राप्ति के लिए लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहा है और उसको सफलता नहीं मिल पा रही है तो लौंग और कपूर के साथ अनार के दाने मिलाकर माँ दुर्गा को आहुति दें। ऐसा करने से उसकी समस्या का निवारण हो जाएगा। आहुति देने से पहले सर्वबाधा निवारण मंत्र जाप अवश्य करें।

यदि आपके व्यापार में कोई समस्या आ रही है तो आप लौंग और कपूर में अमलताश के फूल मिलाकर माँ दुर्गा को आहुति दें। यदि अमलताश के फूल न मिलें तो आप पीले रंग के किसी भी फूल को मिला सकते हैं। ऐसा करने से व्यावसायिक समस्याएं दूर होती हैं। आहुति देने से पूर्व सर्वबाधा निवारण मंत्र का जाप करें।

यदि कोई संपत्ति से संबंधित समस्या है तो लौंग और कपूर के साथ गुड़ और खीर मिलाकर माँ दुर्गा को आहुति अर्पित करें। आहुति देने से पहले सर्वबाधा निवारण मंत्र की माला का जाप अवश्य करें।