नवरात्रि का चौथा दिवस - देवी कुष्मांडा के स्वरूप् का महत्व एवं पूजा विधि ।

By: Future Point | 04-Apr-2019
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नवरात्रि का चौथा दिवस - देवी कुष्मांडा के स्वरूप् का महत्व एवं पूजा विधि ।

नवरात्रि के चौथे दिन माँ दुर्गा के कुष्मांडा देवी के स्वरूप् की उपासना की जाती है. माँ कुष्मांडा की कृपा से भक्तो के सभी प्रकार के रोग- शोक दूर हो जाते हैं, अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और मनुष्य शक्तिशाली बन जाता है।

माँ कुष्मांडा के स्वरूप् का महत्व –

ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि की रचना नही हुयी थी उस समय अंधकार का साम्राज्य था तब देवी कुष्मांडा द्वारा ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ, अपनी मंद मंद मुस्कान भर से ही ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति करने के कारण ही इन्हें कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है अतः ये देवी कुष्मांडा के रूप से विख्यात हुईं इसलिए ये सृष्टि की आदि स्वरूपा, आदि शक्ति हैं.

माँ कुष्मांडा का निवास सूर्य मण्डल के मध्य है और ये सूर्य मण्डल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं. देवी कुष्मांडा अष्ट भुजा से युक्त हैं अतः इन्हें देवी अष्ट भुजा के नाम से भी जाना जाता है. माँ कुष्मांडा के सात हाथो में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है और माँ कुष्मांडा के आठवे हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है. माँ कुष्मांडा सिंह के वाहन पर सवार रहती हैं।

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माँ कुष्मांडा की पूजा विधि –

    • सर्व प्रथम कलश और उसमे उपस्थित देवी देवताओ की पूजा करनी चाहिए
    • इसके बाद माँ कुष्मांडा की पूजा के लिए सबसे पहले हाथो में फूल ले के इस मन्त्र के साथ माँ को प्रणाम करें

ॐ सुरासपूर्ण कलश रुधिराप्लुतमेव च । दधाना हस्तपदमाभ्यं कुष्मांडा शुभदास्तु मे ।।

    • इसके बाद माँ कुष्मांडा की पूजा धूप , दीप व दूर्वा से करें
    • माँ कुष्मांडा की पूजा करते समय इस मन्त्र का जाप करें

या देवी सर्वभूतेषु माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

    • माँ कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं ये प्रसाद घर में सबको बाँट कर ब्राह्मण को भी दान करें इससे माँ कुष्मांडा प्रसन्न होती हैं।
    • पूजा आरती के बाद एक सौ आठ बार इसमन्त्र का जप करें

ॐ देवी कुशमाण्डायै नमः ।

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देवी कुष्मांडा की ध्यान मन्त्र –

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्धकृत शेखरम् । सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्मांडा यशस्वनिम ।। भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम् । कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधा कलश चक्र गदा जपवटीधराम ।। पटाम्बर परिधानां कमनीया क्रदूहगस्या नानालंकारम भूषिताम् । मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल मण्डिताम् । प्रफुल्ल वंदना नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम् । कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्रनाभि नितम्बनीम् ।।

माँ कुष्मांडा स्त्रोत मन्त्र –

दुर्गतिनाशिनी त्वहिं दरिद्रादि विनाशिनीम् । जयंदा धनंदा कुष्मांडा प्रणमाम्यहम ।। जगन्माता जगत कत्री जगदाधार रूपणीम् । चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम ।। त्रैलोक्यसुंदरी त्वहिं दुःख शोक निवारिणाम् । परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ।।

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