मकर संक्रांति (Makar Sankranti) 2022 की तारीख, मुहूर्त और मान्यताएं | Future Point

मकर संक्रांति (Makar Sankranti) 2022 की तारीख, मुहूर्त और मान्यताएं

By: Future Point | 13-Jan-2022
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मकर संक्रांति (Makar Sankranti) 2022 की तारीख, मुहूर्त और मान्यताएं

Makar Sankranti 2022 : हिंदू धर्म में मकर संक्रांति एक प्रमुख पर्व है। सम्पूर्ण भारत में इस त्यौहार/Festival को स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष सामान्यत: मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है। 

इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के त्योहार पर गंगा स्नान, दान-पुण्य, जप और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि को छोड़ते हुए अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश कर जाता है। 

इस दिन से सूर्यदेव की यात्रा दक्षिणायन से उत्तरायण दिशा की ओर होने लगती है। दिन लंबे और राते छोटी होना आरंभ हो जाती है। इस वर्ष सूर्य का मकर राशि में परिवर्तन को लेकर पंचांग में भेद है जिस वजह से मकर संक्रांति का त्योहार दो दिन यानी 14 और 15 जनवरी को मनाया जाएगा। आइए जानते हैं मकर संक्रांति पर क्या कहता है फ्यूचर पंचांग।

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मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त -

इस वर्ष मकर संक्राति 14 जनवरी 2022 को मनाई जाएगी।

पुण्य काल मुहूर्त: 14 बजकर 12 से मिनट 17: बजकर 45 मिनट तक

अवधि: 3 घंटे 32 मिनट

महापुण्य काल मुहूर्त: 14 बजकर 12 मिनट से 14 बजकर 36 मिनट तक

अवधि: 0 घंटे 24 मिनट

सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण -

भारत में सांस्कृतिक और धार्मिक नजरिये से मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है। 

एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।

लौकिक मान्यताएं -

लौकिक मान्यताओं के अनुसार, जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, इस समय अवधि में सूर्य की किरणों को खराब माना गया है, लेकिन जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। 

इस वजह से साधु-संत और वे लोग जो आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े हैं उन्हें शांति और सिद्धि प्राप्त होती है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पूर्व के कड़वे अनुभवों को भुलकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है। 

स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 माह के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है। महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था। इसलिए उत्तरायण को प्रत्येक शुभ कार्य के लिए उत्तम माना जाता है।

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मकर संक्रांति से जुड़े त्यौहार -

सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रान्ति का त्यौहार विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रान्तों में इस त्यौहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं। भारत में मकर संक्रांति के दौरान जनवरी माह में नई फसल का आगमन होता है। इस मौके पर किसान फसल की कटाई के बाद इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। भारत के हर राज्य में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।

पोंगल -

दक्षिण भारत में पोंगल विशेषकर तमिलनाडु, केरल और आंध्रा प्रदेश में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है। इस मौके पर धान की फसल कटने के बाद लोग खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्यौहार मानते हैं। 

पोंगल का त्यौहार ‘तइ’ नामक तमिल महीने की पहली तारीख यानि जनवरी के मध्य में मनाया जाता है। 3 दिन तक चलने वाला यह पर्व सूर्य और इंद्र देव को समर्पित है। पोंगल के माध्यम से लोग अच्छी बारिश, उपजाऊ भूमि और बेहतर फसल के लिए ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हैं। पोंगल पर्व के पहले दिन कूड़ा-कचरा जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी की पूजा होती है और तीसरे दिन पशु धन को पूजा जाता है।

उत्तरायण -

उत्तरायण खासतौर पर गुजरात में मनाया जाने वाला पर्व है। नई फसल और ऋतु के आगमन पर यह पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस मौके पर गुजरात में पतंग उड़ाई जाती है साथ ही पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो दुनियाभर में मशहूर है। उत्तरायण पर्व पर व्रत रखा जाता है और तिल व मूंगफली दाने की चक्की बनाई जाती है।

लोहड़ी -

लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है। यह प्राय: 13 जनवरी को पड़ता है। लोहड़ी विशेष रूप से पंजाब में मनाया जाने वाला पर्व है, लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से इस 'त्योहार' पर वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि भेजा जाता है। यह पर्व 13 जनवरी को धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर शाम के समय होलिका जलाई जाती है और तिल, गुड़ और मक्का अग्नि को भोग के रूप में चढ़ाई जाती है।

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माघ/भोगली बिहू -

असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू यानि भोगाली बिहू पर्व मनाया जाता है। भोगाली बिहू के मौके पर खान-पान धूमधाम से होता है। इस समय असम में तिल, चावल, नरियल और गन्ने की फसल अच्छी होती है। इसी से तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाकर खाये और खिलाये जाते हैं। भोगाली बिहू पर भी होलिका जलाई जाती है और तिल व नरियल से बनाए व्यंजन अग्नि देवता को समर्पित किए जाते हैं। भोगली बिहू के मौके पर टेकेली भोंगा नामक खेल खेला जाता है साथ ही भैंसों की लड़ाई भी होती है।

कैसे प्रसन्न होंगे भगवान सूर्य नारायण?

मकर संक्रांति पर सूर्य और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। यह व्रत भगवान सूर्य नारायण को समर्पित है। इस दिन भगवान को तांबे के पात्र में जल, गुड़ और गुलाब की पत्तियां डालकर अर्घ्य दें। गुड़, तिल और मूंगदाल की खिचड़ी का सेवन करें और इन्हें गरीबों में बांटें, इस दिन गायत्री मंत्र का जाप करना भी बड़ा शुभ बताया गया है। आप भगवान सूर्य नारायण के आदित्यहृदयस्त्रोत्र और मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं। 


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