कालसर्प योग से कैसे बचें | Future Point

कालसर्प योग से कैसे बचें

By: Future Point | 19-Jul-2019
Views : 8034कालसर्प योग से कैसे बचें

कालसर्प योग का निर्माण राहु-केतु के एक ही ओर सारे ग्रहों के आ जाने से होता है। किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में कालसर्प योग बनने से उसे विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विशेषकर राहु अथवा केतु के महादशा / अंतर्दशा काल में इस योग का दुष्प्रभाव बढ़ जाता है। इसके दुष्प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए ज्योतिष में अनेक उपायों की अनुशंसा की गई।

कालसर्प योग

जब राहु और केतु के एक ही तरफ सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग कहलाता है। जब राहु और केतु के मध्य सभी ग्रह हों और कोई भी भाव खाली न हो तो पूर्ण कालसर्प योग कहा जाता है। जब राहु और केतु की गिरफ्त से एक ग्रह बाहर होता है तो आंशिक कालसर्प योग कहलाता है। जब दो ग्रह बाहर हो जाते हैं तो कालसर्प योग खत्म हो जाता है। राहु और केतु की गिरफ्त में आने से बाकी ग्रह अपना पूरा प्रभाव देने में असमर्थ हो जाते हैं, फलस्वरूप जातक भाग्य के हाथों का खिलौना बनकर रह जाता है। उसे अपने कर्मों का फल नहीं मिल पाता। पूर्व जन्म के कर्मों का फल भोगते हुए पांच प्रकार के दुर्भाग्य उसे घेरे रहते हैं :

1. मेहनत का पूरा फल न मिलना या देर से फल मिलना।

2. विवाह में देरी एवं वैवाहिक जीवन में तनाव।

3. संतान में देरी एवं संतान से सुख न मिलना।

4. शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलता।

5. अकाल मृत्यु या मृत्यु के समय कष्ट।

वास्तव में राहु-केतु छाया ग्रह हैं। समुद्र मंथन के समय देवताओं के साथ राहु द्वारा अमृत पान करने पर विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र द्वारा राहु का सिर काट दिया। किन्तु अमृतपान के कारण वह अमर हो चुका था। सिर कटने पर सिर वाले भाग को राहु और धड़ वाले भाग को केतु कहा जाने लगा। राहु का जन्म नक्षत्र भरणी और केतु का जन्म नक्षत्र अश्लेषा है।

कालसर्प योग के उपाय

राहु के जन्म नक्षत्र भरणी के देवता काल हैं और केतु के जन्म नक्षत्र अश्लेषा के देवता सर्प हैं। राहु और केतु के नक्षत्र देवताओं के कारण राहु केतु से बनने वाले योग को कालसर्प योग का नाम दिया गया। कालसर्प योग वाले जातक पर जब भी राहु या केतु की महादशा या अन्तर्दशा आती है तो इस योग का प्रभाव बढ़ जाता है। गोचर में राहु और केतु का जन्मकालिक राहु-केतु व चन्द्र पर भ्रमण भी इस योग को सक्रिय कर देता है।

द्वादश भावों में राहु की स्थिति के अनुसार कालसर्प योग मुख्यतया द्वादश प्रकार के होते हैं। वे हैं :

1. अनंत कालसर्प योग

2. कुलिक कालसर्प योग

3. वासुकि कालसर्प योग

4. शंखनाद कालसर्प योग

5. पद्म कालसर्प योग

6. महापद्म कालसर्प योग

7. तक्षक कालसर्प योग

8. कर्कोटक कालसर्प योग

9. शंखचूड़ कालसर्प योग

10. घातक कालसर्प योग

11. विषधर कालसर्प योग

12. शेषनाग कालसर्प योग

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अगर राशियों के हिसाब से देखा जाए तो 12 राशियां हैं और लग्न सारिणी में 12 लग्न है। इस तरह 144 तरह का कालसर्प योग बनता है। सभी के उपाय अलग होने चाहिए। लेकिन मोटे तौर पर निम्नलिखित उपाय करने से कालसर्प योग वाले जातक को लाभ होता है :

1. राहु और केतु की पूजा

2. राहु और केतु का मंत्र जाप

3. सिद्ध कालसर्प योग यंत्र के आगे सरसों के तेल का दीपक जला कर ¬ नमः शिवाय का

4. भगवान कृष्ण का पूजन करें तथा प्रतिदिन ¬ नमो भगवते वासुदेवाय का 108 बार जप करें।

5. नव नाग स्तोत्र का पाठ करें।

6. शिवलिंग पर जल चढ़ायें और शिवजी की पूजा करें।

7. सोलह सोमवार का व्रत करें।

8. सर्पों की पूजा करें व सांप को दूध पिलाएं।

9. नाग पंचमी पर नागों की पूजा करें।

10. श्रावण मास में 30 दिन तक महादेव का अभिषेक करें।

11. श्रावण मास के सोमवारों का व्रत करें। इन चार सोमवारों का व्रत करने से 16 सोमवारों के कालसर्प योग के उपाय द्य 51 व्रत का फल मिलता है।

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12. हनुमान जी का पूजन करें।

13. गणेश व सरस्वती की पूजा करें।

14. तिरूपति बाला जी के समीप कालहस्ती शिव मन्दिर में जाकर कालसर्प योग की शान्ति का उपाय विधि विधान से करायें।

15. शिवलिंग पर चांदी के नाग और नागिन का जोड़ा चढ़ाएं या तांबे का सर्प अनुष्ठान पूर्वक चढ़ाएं।

16. गोमेद और लहसुनिया एक ही अंगूठी में जड़वा कर पहनें।

17. चांदी के नाग स्वरूप लॉकेट में गोमेद और लहसुनिया जड़वाकर गले में धारण करें। (लॉकेट या अंगूठी राहु और केतु के षोडशोपचार पूजन के बाद धारण करें।)

18. पितरों का श्राद्ध करें।

19. पितरों की गति कराएं। (नारायण बली कार्य)

20. महामृत्युंजय का जप करें।

21. राहु और केतु की वस्तुओं का दान करें। जैसे : काले तिल, तेल, स्वर्ण, काले रंग का वस्त्र, काले और सफेद रंग का कम्बल, कस्तूरी, नारियल आदि। यदि यह योग अधिक बलवान हो तो अपनी आय का दस प्रतिशत भाग अवश्य दान करें। दीन दुखियों की सेवा करें व प्रभु स्मरण करें।

22. लाल किताब में कालसर्प योग की शांति के लिए राहु और केतु के भाव अनुसार इन ग्रहों के उपाय कराये जाते हैं जिससे इस योग के प्रभाव में कमी आती है।

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