होलाष्टक शुरु हो रहें हैं - 23 फरवरी से 1 मार्च तक सभी शुभ कार्य वर्जित

By: Future Point | 21-Feb-2018
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होलाष्टक शुरु हो रहें हैं - 23 फरवरी से 1 मार्च तक सभी शुभ कार्य वर्जित

होलाष्टक अपने नाम के अनुरुप होली से ठीक पहले के आठ दिन होते हैं। इन आठ दिनों को अशुभ दिनों की श्रेणी में रखा जाता हैं इसलिए इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य, गृहप्रवेश, शादी-विवाह आदि कार्य करने वर्जित हैं। सामान्यत: यह आठ दिन के होते हैं, लेकिन इस बार यह सात दिन के हैं। 23 फरवरी से शुरु होकर 1 मार्च तक होलाष्ट्क रहेंगे। इसमें चतुर्दशी तिथि का क्षय होने के कारण इनका एक दिन कम होगा।

होलाष्टक होली के आने की सूचना लेकर आता है। होलाष्टक के साथ ही होली की तैयारी विधिवत और जोर शोर से शुरु हो जाती हैं। इस दिन से ही गांव के चौराहे या शहर की कालोनी के मुख्य द्वार पर लकड़ी के २ डंड़े गाड़ दिए जाते हैं। जिनमें से एक होलिका और दूसरा ड़ंडा प्रह्लाद का प्रतीक होता है। होलाष्टक का होलिका दहन से बहुत गहरा संबंध हैं। होली पर्व हिन्दु वैदिक कैलेंडर का अंतिम पर्व भी होता हैं। 1 मार्च को होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक समाप्त हो जाएगा।

रंगों का त्यौहार होली अपने पौराणिक और सामाजिक महत्व के कारण विशेष रुप से जाना जाता हैं। मथुरा और बरसाने की होली विश्व प्रसिद्ध हैं। होलाष्टक के आठ दिन शुभ न होने के कारण इन दिनों को प्रत्येक अच्छा कार्य शुरु करने के लिए वर्जित माना जाता हैं। इन दिनों के विषय में यह भी मान्यता है कि इन आठ दिनों में अलग अलग दिन आठ ग्रह भारी माने जाते हैं। किस दिन कौन सा ग्रह किस दिन भारी रहेगा।

 

जहां तक संभव हो इन दिनों में निम्न कार्य की शुरुआत न करें-

होलाष्टक में 16 संस्कार कार्य करना पूर्णत: निषेध माना गया है। यहां तक की अंतिम संस्कार के कार्य को भी करने से पूर्व शांति कार्य किए जाते हैं। नया व्यापार, गृह प्रवेश, विवाह, गर्भाधान, वाहन क्रय, जमीन व मकान की खरीदारी सहित अन्य मांगलिक कार्य। शास्त्रों के अनुसार यह मान्यता है कि होलाष्टक के आठ दिनों में नवग्रह भी उग्र रहते हैं। यही वजह है कि नवग्रहों की इस स्थिति में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।

  • अष्टमी तिथि के दिन चंद्रमा उग्र
  • नवमी तिथि के दिन सूर्य उग्र
  • दशमी तिथि के दिन शनि उग्र
  • एकादशी तिथि के दिन शुक्र उग्र
  • द्वादशी तिथि के दिन गुरु उग्र
  • त्रयोदशी तिथि के दिन बुध उग्र
  • चतुर्दशी तिथि के दिन मंगल उग्र
  • पूर्णिमा तिथि के दिन राहु उग्र

होलाष्टक के विषय में एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध हैं। कथा के अनुसार एक बार कामदेव जी भगवान भोलेनाथ की तपस्या भंग हो गई थी। तपस्या के भंग होने पर भगवान शिव रुष्ठ हो गए, और अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। यह देखकर कामदेव की पत्नी ने अपने पति की गलती के लिए भगवान शिव से प्रार्थना कि। देवी रति की क्षमा प्रार्थना पर भोलेनाथ ने द्वापर युग में उन्हें फिर से जीवन देने के लिए कहा। कथा के अनुसार यह माना जाता है कि जिस समय कामदेव जी से भोलेनाथ के तपस्या भंग हुई थी यही वो आठ दिन थे, जिन्हें होलाष्टक के नाम से जाना जाता है।

एक अन्य मत के अनुसार फाल्गुन मास की अष्टमी से लेकर अगले 8 दिनों तक राजा हिरण्यकश्यप ने विष्णु भक्त प्रह्लाद को बहुत यातनाएं दी थी। इसी कारण इन आठ दिनों को अशुभ मानते हुए होलाष्टक मानने की परम्परा आरंभ हुई। देश के जिन स्थानों पर होली की तैयारी पूर्ण शास्त्रोक्त विधि-विधान से की जाती हैं उन सभी जगहों पर होलाष्टक के साथ ही होली पर्व की औपचारिक घोषणा हो जाती हैं। भगवान शिव ने कामदेव को इसी तिथि में भस्म किया था। वहीं गृह प्रवेश, मुंडन, गृह निर्माण कार्य आदि भी प्रारंभ नहीं कराए जाते हैं।

होलाष्टक के दिन होलाष्टक पूजन की विधि संपन्न की जाती हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए होली से 8 दिन पूर्व ही होलिका दहन वाली जगह पर गंगा जल छिड़ककर उसे पवित्र कर लिया जाता है और वहां पर सूखी लकड़ी, उपले और होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन डंडा गाड़ा जाता है, उसी दिन से होलाष्टक की शुरुआत मानी जाती है। डंडा गाड़ने से लेकर होलिका दहन के दिन तक सभी मांगलिक कार्य वर्जित बताए गए हैं।


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