हीरा रत्न का संपर्ण विवरण धारण विधि

By: Future Point | 08-Jun-2018
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हीरा रत्न का संपर्ण विवरण धारण विधि

हीरा रत्न शुक्र का रत्न हैं। नवग्रहों में शुक्र भौतिक भोग विलास, धन-संपत्ति, ऐश्वर्य, वाहन और वैवाहिक सुख से संबंधित ग्रह हैं। जीवन में सभी सुख-सुविधाएं शुक्र ग्रह की शुभता से ही प्राप्त होती हैं। सभी रत्नों में हीरा रत्न खूबसूरती और सौंदर्य का प्रतीक रत्न हैं। इसी वजह से यह रत्न सबसे अधिक मूल्यवान रत्नों की श्रेणी में भी आता है।

इसे धारण करने से धारक की आकर्षण क्षमता अत्यधिक बढ़ जाती हैं। अमेरिकी डायमंड को पेन्डेन्ट के रुप में भी इसे धारण किया जा सकता हैं. बहुत सुंदर रत्न होने के कारण यह महिलाओं में विशेष रुप से लोकप्रिय हैं। रत्नों का सम्राट भी इस रत्न को कहा जाता हैं। यह माना जाता हैं कि जिस व्यक्ति को यह रत्न शुभ हो जाएं उस व्यक्ति का जीवन राजाओं के समान हो जाता हैं।

हीरा रत्न तो एक हैं परन्तु इससे अनेक तरह की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। कोई इसे वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने का कार्य करता हैं। कोई इसे विपरीत लिंग में अपना आकर्षण बना बनाए रखने के लिए धारण करता हैं। व्यापार, सौंदर्य, वाहन और इसी प्रकार के अन्य विषयों के लिए हीरा रत्न धारण किया जाता हैं। सर्वगुण संपन्न हीरा रत्नों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैं। यह माना जाता है कि पुत्र संतान की कामना रखने वाली स्त्रियों को हीरा रत्न धारण नहीं करना चाहिए।

हीरे के विषय में प्रचलित मान्यताएं-

  • हीरा रत्न सिर्फ हीरे से ही काटा जा सकता है। अन्य किसी रत्न से इसे काट्ना संभव नहीं हैं।
  • हीरा रत्न में आभा सैदव ऊपर की ओर रहती हैं। अन्य सभी रत्नों में यह नीचे की ओर होती हैं।
  • टूटा हुआ या दोषयुक्त हीरा धारण करने से बचना चाहिए। अन्यथा यह लाभ की जगह हानि का कारण भी बनता हैं।
  • दांपत्य जीवन में किसी भी तरह की कमी होने पर यह रत्न अवश्य धारण करना चाहिए। यह रत्न वैवाहिक सुख में शुभता लाता है।

हीरा रत्न कौन धारण करें-

  • वृषभ और तुला लग्न के व्यक्तियों को हीरा रत्न अवश्य ही पहनना चाहिए। इसके विपरीत मेष और वृश्चिक लग्न के व्यक्तियों को हीरा बिल्कुल धारण नहीं करना चाहिए।

  • यह रत्न नीलम, पन्ना और गोमेद के साथ धारण किया जा सकता हैं।

  • जिन व्यक्तियों की कुंडली में शुक्र की महादशा प्रभावी हों उन व्यक्तियों को हीरा रत्न धारण करने से लाभ होता हैं।

  • हीरे रत्न को माणिक्य, मोती, मूंगा और पीला पुखराज पहनने से बचना चाहिए।

  • हीरा रत्न के बारे में कहा जाता हैं कि हीरा रत्न जितने अधिक वजन का पहना जाए वह उतना ही अधिक शुभ होता हैं।

  • जब कुंडली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी होकर, शुभ भाव में स्थित हों तो शुक्र रत्न धारण करना उपयोगी साबित होता हैं।

  • शुक्र ग्रह के सभी शुभ फल प्राप्ति के लिए हीरा रत्न धारण करना चाहिए।

  • शुक्र अपनी नीच राशि, वक्री, अस्त या पाप ग्रहों से पीड़ित हों और 6, 8 या 12वें भाव में स्थित हों तो हीरा रत्न धारण नहीं करना चाहिए।

  • कला, संगीत और अभिनय के क्षेत्रों से जुड़े व्यक्तियों का भी हीरा रत्न धारण करना लाभप्रद रहता हैं।

  • जीव-जंतुओं से भय रखने वाले व्यक्तियों को हीरा रत्न पहनना चाहिए।

  • हीरा रत्न प्रेमी वर्ग को विशेष शुभ रहता हैं। यह रत्न धारण कर प्रेम संबंधों में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

  • इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों को भूत-प्रेम और ऊपरी बाधा का भय रहता हैं उन सभी व्यक्तियों को भी हीरा रत्न धारण करना चाहिए।

  • दोषयुक्त हीरा अपने धारक को कष्ट और नुकसान देता हैं।

हीरा रत्न धारण विधि

हीरा रत्न शुक्लपक्ष के शुक्रवार के दिन स्वर्ण धातु में जड़ित कराना चाहिए। यह रत्न वाईट गोल्ड या चांदी धातु में भी धारण करना चाहिए। संभव हों तो शुभ मुहूर्त का प्रयोग करें। अन्यथा प्रात:काल के समय का प्रयोग करें। अंगूठी बनवाने के बाद इस अंगूठी की पूजा, प्राण-प्रतिष्ठा एवं हवन आदि भी कराना चाहिए। सोने की धातु में जड़वाने के बाद इस रत्न को शुक्ल पक्ष के शुक्रवार के दिन ही इसे प्रात:काल में ईष्टदेव का पूजन करने के बाद पूर्ण विधिवत विधि से इसे अभिमंत्रित करायें। शुक्र मंत्र का जाप करते हुए इस रत्न को धारण करें।

शुक्र मंत्र- ऊं शुं शुक्राय नमः

एक बार अभिमंत्रित करने के बाद हीरा लगभग 7 वर्ष तक धारण किया जा सकता हैं। 7 साल के बाद इस रत्न को बदल देना चाहिए। यह रत्न कनिष्ठिका (सबसे छॊटी अंगुली) में धारण करना चाहिए। पूर्णत: अभिमंत्रित हीरा ही अपना प्रभाव देता हैं। इसे धारण करने पर व्यक्ति को सम्मान, विलासिता, सुख, ऐश्वर्य और वैभव देता है।


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