अष्टम नवरात्री देवी - महागौरी माता का भोग, फूल और पूजन विधि | Future Point

अष्टम नवरात्री देवी - महागौरी माता का भोग, फूल और पूजन विधि

By: Acharya Rekha Kalpdev | 04-Jan-2024
Views : 1467अष्टम नवरात्री देवी - महागौरी माता का भोग, फूल और पूजन विधि

आठवाँ नवरात्रा देवी महागौरी को समर्पित है। नवरात्रों के आठवें दिन नौ देवियों में से आठवीं देवी महागरु के स्वरुप की पूजा पाठ का विधान है। इस दिन महागौरी का दर्शन पूजन और उपासना करना अतिशुभ माना जाता है। देवी महागौरी के चार हाथ है। उनका एक हाथ अभय मुद्रा में है। नीचे वाली भुजा में त्रिशूल धारण किया हुआ है। एक हाथ में डमरू लिया हुआ है। इसके अलावा एक हाथ वरद मुद्रा में है। देवी महागौरी की पूजा आराधना करने से सौभाग्य और समृद्धि की वृद्धि होती है।माता महागौरी अपने साधक को वैवाहिक जीवन में शुभता और वैवाहिक स्थिरता देती है। अविवाहितों को वैवाहिक जीवन का वरदान देती है देवी।

भगवान् शंकर और देवी पार्वती दोनों पूर्व जन्म में भी पति पत्नी थे। मां की उपासना से भक्त की सभी कामनाएं पूर्ण होती है। जीवन साथी की कामना और सुखद वैवाहिक जीवन पाने के लिए देवी महागौरी की आराधना की जाती है। जिन लोगों के विवाह में देरी हो रही हो उन, लोगों को आठवें नवरात्र में महागौरी के लिए व्रत, उपवास और आराधना अवश्य करनी चाहिए। देवी महागौरी की पूजा करने से दाम्पत्य जीवन खुशहाल और अविवाहितों को विवाह सुख प्राप्त होता है। विवाह में विलम्ब का अयाह अचूक उपाय है।

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देवी महागौरी का स्वरुप कैसा है?

देवी महागौरी का रूप अत्यंत मधुर, सौम्य, मनमोहक और सरल है। अपने नाम के अनुरूप देवी महागौरी अत्यंत गौरी है। देवी के वस्त्र और आभूषण भी श्वेत है। माता महागौरी वृषभ की सवारी करती है। इनकी चार भुजाएं है। जिसमें एक हाथ अभय मुद्रा में है। दूसरे हाथ में त्रिशूल है। एक अन्य हाथ में डमरू और चौथे हाथ से देवी वरद मुद्रा में है।

अष्टमी तिथि के दिन भक्त को किस रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए?

देवी महागौरी की पूजा में साधक को लाल रंग या, केसरिया रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए।

देवी महागौरी को कौन सा भोग लगाना चाहिए?

देवी महागौरी को भोग में कच्चे नारियल को अर्पित किया जाता है।

देवी महागौरी को कौन सा फूल अर्पित करना चाहिए?

देवी महागौरी को रात की रानी के फूल अर्पित करने चाहिए।

नवरात्रि का आठवां दिन और नवां दिन सबसे अधिक खास समझा जाता है। चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्रि दोनों में ही अष्टमी तिथि को छोटी कन्याओं का पूजन कर, उन्हें भोग लगाया जाता है। अष्टमी तिथि को कन्याओं के चरण धोकर, उन्हें एक आसान पर बिठाकर उनका तिलक लगाया जाता है। देवी पुराण में ऐसी मान्यता है की इस दिन कन्याओं का अपने हाथ से श्रृंगार करने, उन्हें उपहार और, दक्षिणा देकर सम्मान से विदा किया जाता है। कन्याओं के पैरों पर कुमकुम, फूल और अक्षत रखे जाते है। एक देवी के समान उनका पूजन किया जाता है। इस प्रकार कन्याओं का पूजन करने से नौ देवियां प्रसन्न होती है और अपने भक्त की सभी कामनाएं पूर्ण करती है। अष्ठमी तिथि के दिन विवाहित स्त्रियां लाल रंग के चुनरी माता को भेंट कर अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती है।

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माता महागौरी की पूजा कैसे करें?

नवरात्र के आठवें दिन साधक सुबह सूर्योदय से पहले उठे। स्नान आदि से मुक्त होकर लाल या केसरिया रंग के वस्त्र धारण करें। प्रतिपदा तिथि पर जो मूर्ति स्थापना के है, पिछले सात दिन आप जिस विग्रह या प्रतिमा की आप पूजा कर रहे हैं, उससे पुराने फूल हटा दें, दीपक से तेल और बत्ती बदल दें। कोई नई प्रतिमा स्थापित इस दिन नहीं करनी है। देवी महागौरी का ध्यान करें, और उन्हें फूल माला, फूल, धूप और दीप दिखाएँ। देवी को भोग लगाएं। माता महागौरी को सफ़ेद रंग के वस्त्र और सफ़ेद रंग के फूल पसंद है। नारियल का भोग देवी को लगाएं। देवी दुर्गासप्तसती और माता महागौरी की आरती करें।

मंत्र

ॐ देवी महागौर्यै नमः॥

पसंदीदा फूल

रात में खिलने वाली चमेली (रात की रानी)

प्रार्थना

श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यान

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशस्विनीम्॥
पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम्॥

स्तोत्र

सर्वसङ्कट हन्त्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमङ्गल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददम् चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

कवच

ॐकारः पातु शीर्षो माँ, हीं बीजम् माँ, हृदयो।
क्लीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटम् कर्णो हुं बीजम् पातु महागौरी माँ नेत्रम्‌ घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा माँ सर्ववदनो॥

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मां महागौरी की आरती

जय महागौरी जगत की माया। जय उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरा वहा निवास॥
चन्द्रकली और ममता अम्बे। जय शक्ति जय जय माँ जगदम्बे॥
भीमा देवी विमला माता। कौशिक देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती (सत) हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥

देवी महागौरी की पूजा के लाभ

देश भर में देवी महागौरी के अनेकोनेक सिद्ध प्रसिद्द मंदिर है। अष्ठमी तिथि पर देश भर के देवी मंदिरों में दर्शन के लिए भक्तों का ताँता लगा रहता है। नवरात्री के आठवें दिन सोम चक्र जिसे सौम्य चक्र भी कहा जाता है। देवी महागौरी की पूजा आराधना करने से सोमचक्र जागृत होता है और साधक को सभी शक्तियां इसी चक्र के द्वारा प्राप्त हो जाते है।

देवी महागौरी की कृपा से सभी काम बनते है और देवी सब सुख साधन देने वाली देवी है। भौतिक सुख साधनों के साथ साथ देवी मन का सुख देने का सामर्थ्य भी रखती है। देवी महागौरी बहुत गौरी है, उनके उज्जवल वर्ण से यह साड़ी सृष्टि प्रकाशित है। देवी की शक्ति अद्भुत और अमोघ है। जिसके समान अन्य कोई नहीं है। देवी सभी के कष्टों को हरती है और सबका मंगल करती है। जो भक्त देवी महागौरी की नित्य आराधना करता है, उसके सारे कष्ट दूर होते है और साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।