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Rahu and Ketu are the shadowy planets in Astrology with no physical existence. Yet, they are both essential celestial bodies and have been termed planets by our ancient scholars. Rahu is a head and Ketu is a torso of the demon Swarnabahu. So, they both have demonic tendencies. Rahu connects a person with worldly things. Rahu is one of the most powerful planets; it can swallow the Sun and the Moon. Rahu rests in each zodiac sign for around 1.5 years.
वैदिक ज्योतिष में ग्रहण को बहुत महत्व दिया जाता है। जब सूर्य और चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है, तब ग्रहण लगता है। ज्योतिष में ग्रहण को एक महत्वूपर्ण घटना के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि सूर्य या चंद्रमा को ग्रहण लगना एक अशुभ घटना होती है इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलवा ग्रहण के समय कुछ विशेष सावधानियां बरतने की भी आवश्यकता होती है। ग्रहण का हर मनुष्य के जीवन पर प्रभाव पड़ता है। यह आपके लिए शुभ समाचार भी ला सकता है और दुखों का पहाड़ भी तोड़ सकता है।
प्राचीन हिंदू ज्योतिष में राहू और केतु को छाया ग्रह माना गया है। राहू को सबसे शक्तिशाली ग्रहों में से एक माना गया है और इसका अपना एक अलग महत्व है। राहू एक राशि में लगभग 18 महीने तक रहता है। राहू के गोचर का प्रभाव लगभगर हर राशि पर पड़ता है। राहू की स्थिति के कारण व्यक्ति की सांसारिक वस्तुओं के प्रति इच्छा बढ़ जाती है। राहू तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर लाभ देता है। वहीं अगर राहु पहले, दूसरे, चौथे, पांचवे, सातवें, आठवें, नौवें, दसवें और बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति को इसके बुरे परिणाम देखने पड़ते हैं।
केतु एक छाया ग्रह है लेकिन इसे काफी शक्तिशाली ग्रह भी माना जाता है। जब यह अलग-अलग भावों से गोचर करता है तो इसका प्रभाव उस भाव पर भी पड़ता है। यह एक अशुभ ग्रह है जिसके कई भावों में नेगेटिव प्रभाव देखने को मिलते हैं। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, आठवें, नौंवें और दसवें भाव में केतु अशुभ प्रभाव देता है। वहीं तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर केतु शुभ प्रभाव देता है।
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