Sakat Chauth 2020: कब है सकट चौथ? | Future Point

Sakat Chauth 2020: कब है सकट चौथ?

By: Future Point | 07-Jan-2020
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Sakat Chauth 2020: कब है सकट चौथ?

संकष्टी चतुर्थी हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान गणेश को सभी देवी-देवताओं में प्रथम पूजनीय माना गया है। इन्हें, बुद्धि, बल और विवेक का देवता माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन अगर पूरे विधि विधान के साथ भगवान गणेश की पूजा की जाए तो सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। तो, आइए जानते हैं संकष्टि चतुर्थी की पूजन विधि, शुभ मुहूर्त, कथा और महत्व के बारे में...

संकष्टि चतुर्थी क्या है?

संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिसका मतलब है , संकट से मुक्ति पाना। इस तरह संकष्टी चतुर्थी का अर्थ हुआ ‘ दुख़ या संकट को दूर करने वाली चतुर्थी। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी अगर मंगलवार को पड़ती है तो इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। इसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं। पश्चिम और दक्षिण भारत में विशेष रूप से महाराष्ट्र और तमिलनाडु में इसे बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए व्रत रखते हैं और गणपति की आराधना करते हैं।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रमा के उदय होने तक व्रत रखा जाता है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी नकारात्मतक शक्तियों का नाश होता है और घर में शांति और सुख-समृद्धि का वास होता है। रुका हुआ धन वापिस आता है। आपकी हर मनोकामना पूरी होती है और आपके सब कष्ट दूर होते हैं।

साल 2020 में कब है संकष्टी चतुर्थी?

संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने रखा जाता है। हर महीने संकष्टी के दिन भगवान गणेश के अलग-अलग रूप की पूजा की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार पूरे वर्ष में 13 संकष्टी चतुर्थी व्रत रखे जाते हैं। हर व्रत की पूजन विधि और व्रत कथा अलग होती है। इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए हमारे विशेषज्ञ ज्योतिष से परामर्श लें।

यहां हम आपको संकष्टी चतुर्थी 2020 की तारीख़ें बता रहे हैं:

जनवरी 13, 2020: सकट चौथ या लंबोदर संकष्टी चतुर्थी (माघ, कृष्ण चतुर्थी)

फरवरी 12, 2020: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (फाल्गुन, कृष्ण चतुर्थी)

मार्च 12, 2020: भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी (चैत्र, कृष्ण चतुर्थी)

अप्रैल 11, 2020: विकट संकष्टी चतुर्थी (वैशाख, कृष्ण चतुर्थी)

मई 10, 2020: एकदंत संकष्टी चतुर्थी (ज्येष्ठ, कृष्ण चतुर्थी)

जून 8, 2020: कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी (आषाढ़, कृष्ण चतुर्थी)

जुलाई 8, 2020: गजानन संकष्टी चतुर्थी (श्रावण, कृष्ण चतुर्थी)

अगस्त 7, 2020: बहुला चतुर्थी या हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी (भाद्रपद, कृष्ण चतुर्थी)

सितंबर 5, 2020: विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी (अश्विन, कृष्ण चतुर्थी)

अक्टूबर 5, 2020: विभुवन, संकष्टी चतुर्थी (कार्तिक, कृष्ण चतुर्थी)

नवंबर 4, 2020: करवा चौथ या वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी (कार्तिक, कृष्ण चतुर्थी)

दिसंबर 3, 2020: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी (मार्गशीर्ष, कृष्ण चतुर्थी)

सकट चौथ 2020: शुभ मुहूर्त

माघ के दौरान पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी को उत्तर भारत में सकट चौथ के नाम से जाना जाता है। इसे लंबोदर संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। साल 2020 के लिए इसका शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:

प्रारंभ: शाम के 5 बजकर 32 मिनट पर (13 जनवरी, 2020)

समाप्त: दोपहर 2 बजकर 49 मिनट पर (14 जनवरी, 2020)

कुल अवधि: 9 घंटे 17 मिनट

यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि संकष्टी चतुर्थी का दिन व समय चंद्रोदय के आधार पर तय होता है। अब क्योंकि दो शहरों में चंद्रमा का उदय अलग-अलग समय पर हो सकता है इसलिए दो अलग-अलग शहरों में संकष्टि चतुर्थी के समय में थोड़ा अंतर हो सकता है!

संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि

संकष्टी चतुर्थी के दिन इस प्रकार भगवान गणेश की आराधना करें:

  • संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं।
  • स्नान करके लाल रंग के वस्त्र धारण करें। इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
  • सबसे पहले भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें और उसे लाल गुलाब के फूलों से सजाएं। साथ में देवी दुर्गा की मूर्ति या प्रतिमा भी रख लें।
  • इसके बाद भगवान गणेश की पूजा शुरु करें। भगवान गणेश की पूजा करते समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
  • पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल, ताम्बे के कलश में पानी, चंदन, धूप और प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रख लें।
  • अब भगवान गणेश को रोली लगाएं और फूल और जल अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान गणेश को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं।
  • फिर भगवान गणेश के आगे धूप और दीप जलाकर निम्न मंत्र का जाप करें। आपको इस मंत्र का 27 बार जाप करना है:
    गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
    उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
  • हालांकि व्रत वाले दिन सेंधा नमक से बना भोजन खाया जाता है लेकिन संकष्टी चतुर्थी के दिन सेंधा नमक का परहेज़ करें।
  • पूजा के बाद आप सिर्फ़ मूंगफली, फल, दूध और साबूदाने की खीर ही खा सकते हैं।
  • शाम को चांद निकलने से पहले गणपति की पूजा करें और संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें। इसके बाद सबको प्रसाद बांटे।
  • सूर्योदय से शुरु होने वाला यह व्रत रात को चांद निकलने के बाद खोला जाता है। इस तरह संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूरा होता है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा: माता पार्वती को मनाने के लिए भगवान शिव ने भी किया था यह व्रत

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती एक बार नदी किनारे बैठे थे। उस दिन माता पार्वती का चौपड़ खेलने का मन हुआ। लेकिन उस समय हार-जीत का फैसला करने के लिए उन दोनों के अलावा वहां और कोई नहीं था। तब माता पार्वती और भगवान शिव ने मिलकर एक बालक की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी। उन दोनों ने उसे संचालक की भूमिका दी। खेल शुरु होते ही माता पार्वती की जीत हुई और इस प्रकार तीन से चार बार उनकी जीत हुई। लेकिन बालक ने गलती से एक बार उन्हें हारा हुआ घोषित कर दिया। इस पर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को श्राप दे दिया। उनके श्राप से बालक लंगड़ा हो गया। उस बालक ने माता पार्वती से कई बार क्षमा मांगी और कहा कि उससे भूल हो गई। माता पार्वती कहती हैं कि श्राप वापिस नहीं लिया जा सकता लेकिन एक उपाय करके इससे मुक्ति पा सकते हैं। माता पार्वती कहती हैं कि इस स्थान पर संकष्टी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं। तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और श्रद्धापूर्वक यह व्रत करना।

संकष्टी के दिन उस बालक ने कन्याओं से व्रत की विधि पूछी और पूरे विधि विधान के साथ व्रत किया। इससे भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और दर्शन देकर उसकी इच्छा पूछते हैं। बालक कहता है कि भगवान गणेश उसे माता पार्वती और शिव के पास भेज दें। भगवान गणेश उसकी इच्छा पूरी करते हैं और वह भगवान शिव के पास पहुंच जाता है पर वहां माता पार्वती नहीं मिलतीं क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश पर्वत छोड़कर चली जाती हैं।

भगवान शिव बालक से पूछते हैं कि वह यहां कैसे आया तो बालक कहता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है। फिर माता पार्वती को मनाने के लिए भगवान शिव भी यह व्रत रखते हैं। इसके बाद माता पार्वती का मन बदल जाता है और वे कैलाश लौट आती हैं।

इस कथा के अनुसार संकष्टी के दिन व्रत करने से हर मनोकामना पूरी होती है और संकट दूर होते हैं।

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