नवरात्रि के छठे दिवस - माँ कात्यायनी की कथा एवं पूजा विधि।
By: Future Point | 04-Apr-2019
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नवरात्रि के छठे दिन माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप् की पूजा की जाती है. माँ कात्यायनी शत्रुहंता हैं इसलिए इनकी पूजा करने से शत्रु पराजित होते हैं और जीवन सुखमय बनता है. माँ कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओ का विवाह होता है. नवरात्रि के छठे दिन भक्त का मन अग्नये चक्र पर केंद्रित होना चाहिए. अगर भक्त खुद को पूरी तरह से माँ कात्यायनी को समर्पित कर दें तो माँ कात्यायनी अपने भक्तो पर अपना असीम आशीर्वाद प्रदान करती हैं साथ ही अगर भक्त पूर्ण विश्वास व श्रद्धा के साथ माँ कात्यायनी की पूजा करते हैं तो उन्हें बड़ी आसानी से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
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माँ कात्यायनी की कथा –
पुराणों के अनुसार कात्यायन नामक ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ भगवती ने पुत्री के रूप में उनके घर में जन्म लिया था इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ गया। इसके बाद माँ कात्यायनी ने महिषाशुर का वध कर तीनो लोकों को इसके आतंक से मुक्त कराया. माँ कात्यायनी का शरीर आभूषणों से सुसज्जित है इनका स्वरूप् अत्यंत चमकीला और भव्य है.
माँ कात्यायनी की चार भुजाएं हैं, इनके दाहिने तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे का हाथ वर मुद्रा में है, बायीं तरफ के ऊपर वाला हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है. माँ कात्यायनी का वाहन सिंह है।
माँ कात्यायनी की पूजा विधि –
- सर्वप्रथम हाथ में फूल लेकर माँ कात्यायनी को प्रणाम करें इस मन्त्र का जाप करते हुए या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
- धूप, दीप, रोली, पुष्प, जायफल से माँ कात्यायनी की पूजा करें
- माँ कात्यायनी की पूजा करते समय इस मन्त्र का जाप करें चन्द्र हासोज्ज वलकरा शार्दुलवर वाहना । कात्यायनी शुभंदघा देवी दानव घातिनी ।।
- माँ कात्यायनी को शहद अति प्रिय है अतः माँ कात्यायनी को शहद का भोग लगाएं
- इस दिन दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय का पाठ करें।
माँ कात्यायनी का ध्यान मन्त्र –
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृत शेखराम् । सिंह रूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम् ।। स्वर्ण वर्णा आज्ञा चक्र स्थिताषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम् । वराभींत काराष्ग पदधरां कात्यायन सुताभुजामि ।। पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम् । मंजीर हार केयूर किंकिण रत्न कुण्डल मण्डिताम् ।। प्रसन्न वंदना पज्ज्वाधरां कांत कपोला तुग कुचाम् । कमनीयां लावण्या त्रिवली विभूषि तनिम्र नाभिम ।।
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माँ कात्यायनी का स्त्रोत पाठ –
कंचनाभां करा भयं पदम धरा मृकुटोज्वलां । स्मेर मुखी शिव पत्नी कात्यायन सुते नमो अस्तुते ।। पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां । सिंह स्थिता पदम हस्तां कात्यायन सुते नमो अस्तुते ।। परम् दंद मयी देवि पर ब्रह्म परमात्मा । परम शक्ति, परम् भक्ति, कात्यायन सुते नमो अस्तुते ।। विश्व कर्ती, विश्व भर्ती, विश्व हर्ती, विश्व प्रीता । विश्व चिंता, विश्वतीता कात्यायन सुते नमो अस्तुते ।। कां कां बीज जप दास कां कां कां संतुता ।। कां कां रहषणी कां धनदा धन मासना । कां बीज जप कारिणी कां बीज तप मानसा ।। कां कारिणी कां मूत्र पूजिता कां बीज धारिणी । कां किं कुं कै कः ठ्ः छः स्वाहा रुपणी ।।
माँ कात्यायनी कवच –
कात्यायनौ मुख पातुकां कां स्वाहा स्व रुपणी । ललाटे विजया पातु पातु मालिनी नित्यं सुंदरी ।। कल्याणी ह्रदय पातु जया भग मालिनी ।
माँ कात्यायनी के मन्त्र, स्त्रोत, कवच का पाठ करने के लाभ –
भगवती कात्यायनी का ध्यान मन्त्र, स्त्रोत और कवच के जाप करने से भक्तो में आज्ञा चक्र जाग्रत होता है इससे रोग, शोक, संताप, भय से मुक्ति मिलती है।