बसंत पंचमी महात्म्य, तिथि 2024, प्रादुर्भाव और मुहूर्त | Future Point

बसंत पंचमी महात्म्य, तिथि 2024, प्रादुर्भाव और मुहूर्त

By: Acharya Rekha Kalpdev | 03-Jan-2024
Views : 5011बसंत पंचमी महात्म्य, तिथि 2024, प्रादुर्भाव और मुहूर्त

माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि बसंत पंचमी के नाम से जानी जाती है। इस दिन ज्ञान और विद्या की देवी माता सरस्वती जी का प्रादुर्भाव हुआ था। इसे विद्या जयंती के नाम से भी जाना जाता है। माता सरस्वती जी साहित्य,  कला, ज्ञान, संगीत और ललितकलाओं की देवी है। इन क्षेत्रों में सफलता अर्जित करने के लिए माता सरस्वती जी का आशीर्वाद अवश्य लिया जाता है।

वाणी की देवी कौन है? उनके क्या नाम हैं?

माता सरस्वती जी के कई नाम है जिसमें से कुछ प्रमुख बागेश्वरी, शारदा, वाग्देवी, वीणावादिनी आदि नाम है। इस संसार में, इस प्रकृति में सभी को स्वर देने वाली देवी माता सरस्वती जी ही है। इन्हीं के आशीर्वाद से सब जीव जंतु और प्राणी अपनी वाणी द्वारा भाव अभिव्यक्ति करते है। चिड़ियों का चहकना और भवंरों का गुंजन भी माता सरस्वती जी की ही देन है। इस जगत को मधुर नाद देने वाली माता सरस्वती जी ही है। नदी हो या जीव जगत, सभी में नाद, वाणी, स्वर देने वाली माता सरस्वती जी है। प्रकृति के पंचतत्वों में कोहलाहल देने वाली माता सरस्वती जी है।

 

Read in English: Basant Panchami 2024

माता सरस्वती जी का प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ?

इस सारे जगत को जीवन देने वाले परमपिता ब्रह्मा जी है। सभी जीव जंतुओं और प्राणिमात्र को जन्म देने वाले ब्रह्मा है। ब्रह्मा जी ने जब सारे जगत को निर्माण किया। तो उन्हें कुछ अधूरा लगा, निस्तेज, शांति और वाणी विहीन लगा, इस पर देवताओं ने ब्रह्मा जी से विनती कि, की वो कुछ करें। 

देवताओं की विनती सुनकर ब्रह्मा जी ने जल की कुछ बूंदे ली और उन्हें पृथ्वी पर छिड़का, जल की बूंदों  से पृथ्वी पर माता सरस्वती जी का प्रादुर्भाव हुआ। प्रादुर्भाव के समय माता के दो हाथ से वीणा को थामें हुए, एक हाथ में ग्रन्थ, एक हाथ में माला थी। देवों ने माता से वीणा बजाने का आग्रह किया, वीणा के सुर बजाते ही, पृथ्वी पर वाणी का जन्म हुआ। सभी जंतुओं में वाणी के स्वर गूंजने लगे। माता सभी को ज्ञान और विवेक देने वाली देवी है। जिस दिन माता सरस्वती जी का इस धरा पर प्रादुर्भाव हुआ, वह दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। जिसे हम सभी बसंत पंचमी पर्व के रूप में मानते है। माता सरस्वती जी को संगीत और ज्ञान की देवी के रूप में प्रमुख रूप में पूजा जाता है।  संगीत और ज्ञान के साधक नित्य माता सरसवती जी की उपासना, दर्शन, पूजन करते है। सभी संगीत विद्यालओं और शिक्षा संस्थानों में माता की प्रतिमा स्थापित कर नित्य पूजन किया जाता है।

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बसंत पंचमी के दिन क्या क्या कार्य करने चाहिए

शिक्षा और संगीत की शिक्षा शुरू करने के लिए बसंत पंचमी के दिन का मुहूर्त सबसे अधिक शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस दिन का प्रयोग गृहप्रवेश मुहूर्त के लिए भी किया जाता है।  माघ माह शुभता के पक्ष से अतिशुभ माह की श्रेणी में आता हैं। माघ माह धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से भी विशेष माह है।  माता सरस्वती जी नवचेतना और नवनिर्माण के लिए जानी जाती है।  इस दिन का सम्बन्ध कृषि और कुम्भ स्नान के लिए बहुत शुभ मानी जाती है। कुम्भ मेले में इस दिन शाही स्नान अघाड़ों के संतों के द्वारा किया जाता है।  

बसंत पंचमी के दिन क्या करें ? माता सरस्वती जी की वंदना विधि? मुहूर्त काल 

इस वर्ष बसंत पंचमी 14 फरवरी 2024 को मनाई जायेगी. 14 फ़रवरी 2024 की सुबह सूर्योदय से पूर्व उठे. प्रात: काल में स्नानादि से निवृत होकर, पीले रंग के शुद्ध वस्त्र धारण करें। माता सरस्वती जी के विग्रह और प्रतिमा की धूप, दीप और फूल से माता सरस्वती जी की पूजा करें। माता को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाया जाता है। माता सरस्वती जी के जन्म की कथा का पाठ किया जाता है। और सरस्वती जी की वंदना की जाती है। किसी भी प्रकार की शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र इस दिन माता सरस्वती जी का पूजन कर, बुद्धि, और विवेक का आशीर्वाद मांगते है। प्रथम बार स्कूल जाने वाले बच्चों को माता सरस्वती जी का आशीर्वाद दिलाया जाता है। 
माता सरस्वती जी का ध्यान करते हुए माता सरस्वती जी की वंदना गाये

माता सरस्वती जी वन्दना

या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।
 
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
 
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
 
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
 
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌ ।
 
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌ ॥२॥
 

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भावार्थ

जो विद्या की देवी माता सरस्वती कमल के फूल, चन्द्रमा, हिमराशि और मोती के हार की समान श्वेत वर्ण की हैं, माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, श्वेत कमलों पर माता आसीन है, ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं के द्वारा जिनकी सदा पूजा की जाती है, वही देवी इस जगत की सम्पूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर करने वाली देवी माता सरस्वती हमारी रक्षा करें।  

शुक्लवर्ण वाली, सम्पूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिन्तन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलङ्कृत, माता शारदा की मैं वंदना करती हूँ।

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