जाने क्या लड़की का मांगलिक होना लड़के के लिए सच में खतरनाक है?
By: Future Point | 15-Feb-2019
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विवाह होने पर केवल वर-वधू दोनों का ही नवजीवन शुरु नहीं होता है, बल्कि यह दो परिवारों को जोडने का कार्य भी करता है। विवाह के बारे में कहा जाता है कि विवाह सात जन्मों का बंधन है। वैवाहिक जीवन सुख-शांति से युक्त हो इसके लिए वैदिक ज्योतिष शास्त्रों में अनेक नियम दिए गए हैं। यह नियम मांगलिक योग मिलान और अष्टकूट मिलान अर्थात कुंडली मिलान के नियम कहलाते हैं। किसी योग्य ज्योतिषाचार्य के द्वारा मांगलिक योग और अन्य आवश्यक कुंडली मिलान के नियम लगाने के बाद ही विवाह की सहमति दी जाती है। कई बार जब यह ज्योतिष प्रक्रियाएं नहीं की जाती है तो परिवार में कलह, तनाव और अशांति की स्थिति बनती है।
मांगलिक योग आज हम सभी के सामने एक भयावह रुप में सामने आता है। इस योग को लेकर अनेक प्रकार की भ्रांतियां हम अपने आसपास देखते है। मंगल शब्द का शाब्दिक अर्थ शुभ मंगल है। सभी शुभ कार्यों को मांगलिक कार्यों का नाम दिया जाता है। किसी भी विवाह के पूर्व कार्यक्रमों में लोकमंगल गीतों को गाया जाता है। जब प्रत्येक अच्छे कार्य में मंगल शब्द प्रयोग किया जाता है तो फिर इस शब्द से बना मांगलिक योग कैसे अशुभ या कष्टकारी हो सकता है। मांगलिक योग विभिन्न भावों में मंगल योग की स्थिति के फलस्वरुप निर्मित होता है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार जन्मपत्री में जब मंगल प्रथम, द्द्वितीय, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित हो तो व्यक्ति की कुंडली को मांगलिक योग से युक्त कहा जाता है। यह विचार उत्तर भारतीय है। दक्षिण भारतीय विचारधारा के अनुसार दूसरा भाव भी इन भावों में सम्मिलित किया जाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब मंगल कुंडली के प्रथम, दूसरे, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित हों तो मांगलिक योग बनता है। ग्रहों में मंगल को सेनापति का स्थान दिया गया है। मंगल ग्रह जोश, ऊर्जा, उत्साह, पहल भावन, क्रोध और आवेश का कारक ग्रह है। साहस और पुरुषार्थ मंगल के दो अस्त्र है।
यह माना जाता है कि जिन व्यक्तियों की कुंडली में मंगल उच्च स्थिति में होकर उपरोक्त भावों में स्थिति हों उन व्यक्तियों का वैवाहिक जीवन कष्ट्मय रहता है। विवाह योग्य किसी व्यक्ति की कुंड्ली में मांगलिक योग बन रहा हो तो ऐसे व्यक्ति का विवाह मांगलिक योग वाली कन्या के साथ ही करना चाहिए। मांगलिक योग भावी वर और वधू दोनों की कुंड्लियों में होना अनुकूल माना जाता है। इसके विपरीत जब एक की कुंडली में मांगलिक योग बन रहा हो और दूसरे की कुंड्ली में यह योग नहीं बन रहा हो तो विवाह उपरांत समस्याएं आने की संभावनाएं बनती है।
तब इसे मांगलिक योग की कुंडली माना जाता है लेकिन दक्षिण भारत में इन भावों के साथ दूसरे भाव के मंगल को भी मांगलिक योग में शामिल किया गया है। अब कुंडली के 12 में छ्: भावों में मंगल की स्थिति से मांगलिक योग बनता है तो आधी से ज्यादा लोगों की कुंडली मांगलिक योग की बन जाएगी। यह योग मुख्यत: लग्न भाव से, चंद्र कुंडली से और शुक्र कुंड्ली से देखा जाता है। यदि कोई व्यक्ति लग्न, चंद्र और शुक्र तीनों में से दो प्रकार या तीनों प्रकारों से मांगलिक योग हो तो मांगलिक योग का स्तर बढ़ जाता है।
मंगलिक योग, मांगलिक योग, मंगली दोष या इसे कुज योग के नाम से भी जाना जाता है। यह सर्वविदित है कि मांगलिक योग मंगल ग्रह से निर्मित योग है। इस योग को लेकर समाज में अनेक प्रकार की अफवाहें पायी जाती है। मांगलिक योग से युक्त जातक विशेष प्रकार की पहल योग्यता से युक्त होता है। इस वर्ग के व्यक्तियों में नेतृत्व शक्ति बहुत अधिक होती है। दूसरों की आवाज को ऊपर उठाने में ऐसे व्यक्ति आगे आते है।
मंगल दोष के विषय में यह मान्यता है कि यह योग होने पर व्यक्ति का विवाह देर से होता है, विवाह तय होने में बार बार परेशानियां भी आती है। विवाह के बाद सुख-शांति की कमी भी देखने में आती है। मांगलिक योग अत्यधिक हो तो अलगाव और संबंध विच्छेद का कारण भी बनता है। इस योग के विषय में यह भी कहा जाता है कि योग कष्ट्कारी हो तो पति-पत्नी दोनों में से एक की मृत्यु भी हो सकती है। वर-वधू दोनों की कुंड्लियों में हो तो दोनों का जीवन में सुख, स्वास्थ्य, धन, परिवार और सामंजस्य बना रहता है।
केवल मंगल दोष को अशुभ या अमंगलकारी मान लेना सही नहीं है। जबकि सप्तम भाव में मंगल के अतिरिक्त यदि शनि, राहु या केतु इनमें से कोई दो ग्रह एक साथ हो तो वैवाहिक जीवन अधिक कष्टमय होता है। विवाह की सफलता के लिए आवश्यक है कि जन्म पत्री में लग्न भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव पर किसी भी प्रकार का अशुभ प्रभाव ना हो, अन्यथा मंगलिक योग से अधिक तनावपूर्ण स्थिति यह योग दे सकते हैं। विवाह भाव में सूर्य का होना भी वैवाहिक जीव्न में तनाव देता है।
इसलिए जन्मपत्री का मिलान करते समय सिर्फ मांगलिक योग को महत्व ना देते हुए, अन्य योगों को भी महत्व देना चाहिए। सिर्फ एक योग के आधार पर किसी भी प्रकार का निर्णय नहीं लेना चाहिए। संभव हो तो आवश्यक उपाय भी करने के लिए कहना चाहिए।
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