हमारी पृथ्वी पर सूर्यादि ग्रहों का सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव सदैव से ही रहा है। सूर्यादि ग्रह नक्षत्रों पर घटने वाली घटनाओं से हमारी पृथ्वी अछूती नहीं रह सकती है। पृथ्वी पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव से मानव जीवन सदैव ही प्रभावित होता रहता है। यह बात किसी से छुपी नही है। धरा पर रहने वाले प्राणियों में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है। जो सभी से अग्रणी है, उसकी सूझबूझ बड़ी ही उत्कृष्ट है, जिससे वह पृथ्वी सहित आकाशीय घटनाओं के बारे भी हानि-लाभ का भली-भांति मूल्यांकन करता रहता है। सूर्य व चंद्र ग्रहण ऐसी घटनाएं है। जिसको प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में हम समुद्र मे उठते हुए ज्वार भाटा में तो देखते ही हैं, साथ ही पृथ्वी पर होने वाले ऋतु परिवर्तन आदि भी सूर्यादि ग्रहों के कारण ही है। सूर्य जगत् की आत्मा है और चंद्र इस संसार की माता है। दोनों ही ग्रहण से प्रभावित होते हैं और दोनों का हमारे जीवन में बड़ा ही महत्व है अर्थात् पृथ्वी पर जीवन का सहारा सूर्य ही है। साल 2018 में पड़ने वाले ग्रहणों का प्रभाव आप पर किस प्रकार का रहने वाला है। इस आलेख के माध्यम से हम आज आपको यही बताने जा रहे हैं- सन 2018 में तीन सूर्य ग्रहण और दो चंद्र ग्रहण होंगे। इस प्रकार 2018 में कुल पांच ग्रहण होंगे।

31 जनवरी 2018, संवत्सर 2074, माघ पूर्णिमा, बुधवार - चंद्रग्रहण
- ग्रहण का समय - सायं 16:21 से 21:38 तक, कुल 5 घंटे 17 मिनट का ग्रहण रहेगा।
- ग्रहण किन स्थानों में दिखाई देगा - एशिया, आस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर, पश्चिमी उत्तर अमेरिका, भारत।
- भारत में दिखाई देगा।
17 फरवरी 2018, संवत्सर 2074, फाल्गुण अमावस्या, शुक्रवार - सूर्यग्रहण
- ग्रहण का समय – 00:25 रात्रि से 04:17 मिनट प्रात: तक, कुल 3 घंटे 52 मिनट का ग्रहण रहेगा।
- ग्रहण किन स्थानों में दिखाई देगा - दक्षिणी अमेरिका, अंटार्कटिका।
- भारत में दिखाई नहीं देगा।
13 जुलाई 2018, संवत्सर 2075, आषाढ़ अमावस्या, शुक्रवार- सूर्यग्रहण
- ग्रहण का समय – 07:18 मिनट से 09:43 मिनट तक रहेगा, कुल 2 घंटे 25 मिनट का ग्रहण रहेगा।
- ग्रहण किन स्थानों में दिखाई देगा - दक्षिणी आस्ट्रेलिया।
- भारत में दिखाई नहीं देगा।
27 जुलाई 2018, संवत्सर 2075, आषाढ़ पूर्णिमा, शुक्रवार- चंद्रग्रहण
- ग्रहण का समय - 22:44 रात्रि से 04:58 मिनट तक रहेगा, कुल 6 घंटे 14 मिनट का ग्रहण रहेगा।
- ग्रहण किन स्थानों में दिखाई देगा - दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया, आस्ट्रेलिया, भारत।
- भारत में दिखाई देगा।
11 अगस्त 2018, संवत्सर 2075, श्रावण अमावस्या, शनिवार- सूर्यग्रहण
- ग्रहण का समय - 13:32 से 17:00 मिनट तक रहेगा, कुल 3 घंटे 28 मिनट का ग्रहण रहेगा।
- ग्रहण किन स्थानों में दिखाई देगा - उत्तरी यूरोप, उत्तरी पूर्वी एशिया।
- भारत में दिखाई नहीं देगा।
साल 2018 में होने वाले ग्रहणॊं की जानकारी इस प्रकार है -
2018 में सूर्य ग्रहण
16 फरवरी 2018 | आंशिक |
13 जुलाई 2018 | आंशिक |
11 अगस्त 2018 | आंशिक |
2018 में चंद्र ग्रहण
31 जनवरी 2018 | पूर्ण |
27 जुलाई 2018 | पूर्ण |
ग्रहण क्या है?
पृथ्वी की छाया सूर्य से 6 राशि के अन्तर पर भ्रमण करती है तथा पूर्णमासी को चन्द्रमा की छाया सूर्य से 6 राशि के अन्तर होते हुए जिस पूर्णमासी को सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों के अंश, कला एवं विकला पृथ्वी के समान होते हैं अर्थात एक सीध में होते हैं, उसी पूर्णमासी को चन्द्र ग्रहण लगता है। विश्व में किसी सूर्य ग्रहण के विपरीत, जो कि पृथ्वी के एक अपेक्षाकृत छोटे भाग से ही दिख पाता है, चन्द्र ग्रहण को पृथ्वी के रात्रि पक्ष के किसी भी भाग से देखा जा सकता है। जहाँ चन्द्रमा की छाया की लघुता के कारण सूर्य ग्रहण किसी भी स्थान से केवल कुछ मिनटों तक ही दिखता है, वहीं चन्द्र ग्रहण की अवधि कुछ घंटो की होती है। इसके अतिरिक्त चन्द्र ग्रहण को सूर्य ग्रहण के विपरीत किसी विशेष सुरक्षा उपकरण के बिना नंगी आँखों से भी देखा जा सकता है, क्योंकि चन्द्र ग्रहण की उज्ज्वलता पूर्ण चन्द्र से भी कम होती है।
ग्रहणों के प्रकार
सूर्य ग्रहण
भौतिक विज्ञान की दृष्टि से जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढ़क जाता है, उसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चंद्र पृथ्वी की। कभी-कभी चाँद, सूर्य और धरती के बीच आ जाता है। फिर वह सूर्य की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है जिससे धरती पर साया फैल जाता है। इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। यह घटना सदा सर्वदा अमावस्या को ही होती है। अक्सर चंद्र, सूर्य के सिर्फ़ कुछ हिस्से को ही ढ़कता है। यह स्थिति खण्ड-ग्रहण कहलाती है। कभी-कभी ही ऐसा होता है कि चंद्र सूर्य को पूरी तरह ढँक लेता है। इसे पूर्ण-ग्रहण कहते हैं। पूर्ण-ग्रहण धरती के बहुत कम क्षेत्र में ही देखा जा सकता है। इस क्षेत्र के बाहर केवल खंड-ग्रहण दिखाई देता है। पूर्ण-ग्रहण के समय चंद्र को सूर्य के सामने से गुजरने में दो घण्टे लगते हैं। चंद्र-सूर्य को पूरी तरह से, ज़्यादा से ज़्यादा, सात मिनट तक ढँकता है। इन कुछ क्षणों के लिए आसमान में अंधेरा हो जाता है, या यूँ कहें कि दिन में रात हो जाती है। चंद्र द्वारा सूर्य के बिम्ब के पूरे या कम भाग के ढ़के जाने की वजह से सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं जिन्हें पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण व वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
चंद्र ग्रहण
चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते है जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में अवस्थित हों। इस ज्यामितीय प्रतिबंध के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा को घटित हो सकता है। चंद्रग्रहण का प्रकार एवं अवधि चंद्र आसंधियों के सापेक्ष चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करते हैं। किसी सूर्यग्रहण के विपरीत, जो कि पृथ्वी के एक अपेक्षाकृत छोटे भाग से ही दिख पाता है, चंद्रग्रहण को पृथ्वी के रात्रि पक्ष के किसी भी भाग से देखा जा सकता है। जहाँ चंद्रमा की छाया की लघुता के कारण सूर्यग्रहण किसी भी स्थान से केवल कुछ मिनटों तक ही दिखता है, वहीं चंद्रग्रहण की अवधि कुछ घंटों की होती है। इसके अतिरिक्त चंद्रग्रहण को, सूर्यग्रहण के विपरीत, आँखों के लिए बिना किसी विशेष सुरक्षा के देखा जा सकता है, क्योंकि चंद्रग्रहण की उज्ज्वलता पूर्ण चंद्र से भी कम होती है। चन्द्र ग्रहण दो प्रकार का नज़र आता है -
- पूरा चन्द्रमा ढक जाने पर सर्वग्रास चन्द्रग्रहण
- आंशिक रूप से ढक जाने पर खण्डग्रास (उपच्छाया) चन्द्रग्रहण
ग्रहण कितने प्रकार के होते हैं-
पूर्ण सूर्य ग्रहण
पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चन्द्रमा पूरी तरह से पृ्थ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले लेता है। इसके फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश पृ्थ्वी तक पहुँच नहीं पाता है और पृ्थ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब पृथ्वी पर पूरा सूर्य दिखाई नहीं देता। इस प्रकार बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।
आंशिक सूर्य ग्रहण
आंशिक सूर्यग्रहण में जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आए कि सूर्य का कुछ ही भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है अर्थात चन्दमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है। इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है तो पृथ्वी के उस भाग विशेष में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण
वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात चन्द्र सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।
ग्रहण का पौराणिक महत्व
मत्स्यपुराण के अनुसार राहु (स्वरभानु) नामक दैत्य द्वारा देवताओं की पंक्ति मे छुपकर अमृत पीने की घटना को सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया और देवताओं व जगत के कल्याण हेतु भगवान सूर्य ने इस बात को श्री हरि विण्णु जी को बता दिया। जिससे भगवान उसके इस अन्याय पूर्ण कृत से उसे मृत्यु दण्ड देने हेतु सुदर्शन चक्र से वार कर दिया। परिणामतः उसका सिर और धड़ अलग हो गए। जिसमें सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना गया। क्योंकि छल द्वारा उसके अमृत पीने से वह मरा नहीं और अपने प्रतिशोध का बदला लेने हेतु सूर्य और चंद्रमा को ग्रसता हैं, जिसे हम सूर्य या चंद्र ग्रहण कहते हैं।
ग्रहण और आपदाएं
- भारतीय ज्यातिष की मेदिनी सिद्धांत अनुसार जब कभी एक पक्ष अर्थात १५ दिन में दो ग्रहण पड़ते हैं तो उसके ६ मास के भीतर भूकम्प आते हैं।
- सिद्धांत अनुसार जब कभी शनि का संबंध बुध या मंगल से अथवा पृथ्वी तत्व राशियों (वृष, कन्या व मकर) के स्वामियों से हो तो भूकंप की संभावना बढ़ जाती है।
- सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण व चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा की कुंडली में सूर्यदेव अष्टमेश से पीड़ित हों।
- मंगल या बुध व शनि का आपस में संबंध हो या बुध व शनि या मंगल व शनि का संबंध लग्न, लग्नेश, अष्टम भाव या अष्टमेश से होता है।
- बुध वक्री या सूर्य से कम अंश का होता है या अस्त होता हो तो भूकंप की संभवना बढ़ जाती है।
- राहु व केतु के मध्य चार या अधिक ग्रह अशुभ स्वामियों के नक्षत्र पर होते हों गुरु-मंगल या गुरु-बुध का युति या दृष्टि संबंध होता हो तो भूकंप की संभवना बढ़ जाती है।
खगोलीय घटनाओं का पराशर, गर्ग, बादरायण व वराह मिहिर जैसे ऋषि हजारों वर्षों से अध्यन करते आए हैं। वैज्ञानिक युग में अभी भी प्राकृतिक आपदाओं की सटीक गणना लगाना असंभव है। ज्योतिषशास्त्र में कुछ ऐसे तथ्यों का उल्लेख है जिनके विश्लेषण से प्राकृतिक आपदाओं के आने की पूर्व सूचना प्राप्त की जा सकती है। विज्ञान अनुसार भूकंप टेक्टोनिक प्लेटों के आपस में टकराने के कारण आते हैं। ज्योतिष के अनुसार टेक्टोनिक प्लेटें ग्रहों के प्रभाववश खिसकती हैं। भूकंप की तीव्रता प्लेटों पर पड़ने वाले ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर करती हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य व चंद्र ग्रहण का प्राकृतिक आपदाओं पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।
ग्रहण के समय ध्यान रखने योग्य बातें-
ग्रहण के बाद नहाना चाहिए
यह भारतीय मान्यता है कि ग्रहण के पहले या बाद में राहु का दुष्प्रभाव रहता है जो नहाने के बाद ही जाता है। इस मान्यता के पीछे भी एक विज्ञान है। सूर्य के अपर्याप्त रोशनी के कारण जीवाणु या कीटाणु ज्यादा पनपने लगते हैं जिसके कारण इंफेक्शन होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। इसलिए ग्रहण के बाद नहाने से शरीर से अवांछित टॉक्सिन्स निकल जाते हैं और बीमार पड़ने के संभावना को कुछ हद तक दूर किया जा सकता है।
ग्रहण के दौरान उपवास
ग्रहण प्रेरित गुरुत्वाकर्षण के लहरों के कारण ओजोन के परत पर प्रभाव पड़ने और ब्रह्मांडीय विकिरण दोनों के कारण पृथ्वीवासी पर कुप्रभाव पड़ता है। इसके कारण ग्रहण के समय जैव चुंबकीय प्रभाव बहुत सुदृढ़ होता है जिसके प्रभाव स्वरूप पेट संबंधी गड़बड़ होने की ज्यादा आशंका रहती है। इसलिए शरीर में किसी भी प्रकार के रासायनिक प्रभाव से बचने के लिए उपवास करने की सलाह दी जाती है। इसके साथ मंत्रोच्चारण करने से मन शांत रहता है और व्यक्तिगत कंपन के प्रभाव को भी कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
अन्य
वैदिक व पौराणिक ग्रथों में ग्रहण के संदर्भ में कहा गया है कि ग्रहण काल मे सौभाग्यवती स्त्रियों को सिर के नीचे से ही स्नान करना चाहिए, अर्थात् उन्हें अपने बालों को नहीं खोलना चाहिए। उन्हे जल स्रोतों से बाहर स्नान करना चाहिए। सूतक व ग्रहण काल में देवमूर्ति को स्पर्श कतई नहीं करना चाहिए। ग्रहण काल में भोजन करना, अर्थात् अन्न, जल को ग्रहण नहीं करना चाहिए। सोना, सहवास करना, तेल लगाना तथा बेकार की बातें नहीं करना चाहिए। बच्चे, बूढे, रोगी एवं गर्भवती स्त्रियों को आवश्यकता के अनुसार खाने-पीने या दवाई लेने में दोष नहीं होता है।
सावधानी-गर्भवती महिलाओं को होने वाली संतान व स्व के हित को देखते हुए यह संयम व सावधानी रखना जरूरी होता है कि, वह ग्रहण के समय में नोकदार जैसे सुई व धारदार जैसे चाकू आदि वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस समय उन्हें प्रसन्नता से रहते हुए भगवान के चरित्र को स्मरण करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के एक दिन पहले और ग्रहण के दिन तथा इसके पश्चात् तीन से चार दिनों तक किसी शादी व मंगल कार्य को व किसी व्रत की शुरूआत तथा उसका उद्यापन वर्जित रहता है। अर्थात् देव व संस्कृति में आस्था रखने वालों को यथा सम्भव नियमों का पालन करना चाहिए। जिन्हें लगता है, कि इससे कुछ नहीं होता उन्हें ग्रहण से संबंधित पुराणों व साहित्यों को पढ़ना चाहिए फिर उसके निष्कर्ष को लोगों के मध्य प्रस्तुत करना चाहिए।
सूतक क्या है?
सूतक समय को सामान्यता अशुभ मुहूर्त समय के रुप में प्रयोग किया जाता है। सामान्य शब्दों में इसे एक ऎसा समय कहा जा सकता है, जिसमें शुभ कार्य करने वर्जित होते है। धार्मिक नियमों के अनुसार ग्रहण सूर्यग्रहण में 12 घंटे और चंद्रग्रहण में 9 घंटे पूर्व ही सूतक शुरु हो जाता है और यह ग्रहण समाप्ति के मोक्ष काल के बाद स्नान धर्म स्थलों को फिर से पवित्र करने की क्रिया के बाद ही समाप्त होता है।